जन्मदिन विशेष: जाने स्व.मोहम्मद रफ़ी की कभी ना भूलने वाली बातें

जन्मदिन विशेष: जाने स्व.मोहम्मद रफ़ी की कभी ना भूलने वाली बातें
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समय पूर्व रफी साहब अपने गाये गीतों का कार्यक्रम प्रस्तुत करने अमरीका गये थे, वहाँ एक प्रवासों भारतीय ने उनसे लता मंगेशकर के बारे में अपनी राय प्रकट करने को कहा तो उन्होंने तत्काल उत्तर दिया सारी दुनिया में “लेडीज़ फर्स्ट! का रिवाज है

लता लेडीज फर्स्ट के हिसाब से सबसे श्रागे हैं और सबसे आगे रहेंगी उनकी सुरीली आवाज सबसे आगे है झौर हमेशा सबसे भागे रहेगी

मेरा नाम मोहम्मद रफ़ी है पर मेरे गले में जो स्वर है क्या उसे आप हिन्दू या मुस्लिम कह सकते हैं क्या उसका कोई नाम है?

Late M.D rafi

रफी साहब पूर्ण श्रौर कटूरपंथी मुस्लिम थे, पर उन्होंने बड़ी भावुकता झौर आत्मीयता के साथ ऊंचे दर्ज के भजन गाये हैं “मन तड़पत हरि दर्शन को आज”, 'मधुबन में राधिका नाचे रे’ तथा और भी कई भजन आज भी कानों में गूँजते हैं तो भक्ति भाव की लहर उमड़ पड़ते हैं

एक बार एक अन्य कट्टरपंथी मुस्लिम ने उनसे कहा आप भजन क्यों गाते हैं. उनके लिए इन्कार क्‍यों नहीं कर देते” यह सुनते  ही रफी साहब की आँखें गीली हो गई और बोले-'आप मुसलमान होकर ऐसी बातें करते हैं

मेरा नाम मोहम्मद रफ़ी है पर मेरे गले में जो स्वर है क्या उसे आप हिन्दू या मुस्लिम कह सकते हैं क्या उसका कोई नाम है?

मैं तो सबसे यही कहता हूं-'तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा' इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा.” रफी साहब की इन बातों को सुन कर वे कट्टूर- पंथी मुस्लिम बहुत शर्मिंदा हुए.

रफी साहब के उथल-पुथल वाले जीवन में एक बार, ऐसा समय भी आया जब उनकी ख्याति मंद होने लगी-और उनके स्थान पर किशोर कुमार का बोलबाला होने लगा

इस पर उनके एक अंतरंग मित्र ने चिंता प्रकट की तो उन्होंने मुस्करा कर कहा “इसमें चिंता की क्‍या बात है. किशोर कुमार अपने स्वरों से गाते हैं, मेरे स्वरों की चोरी करके तो नहीं गाते. जब मेरे स्वर मेरे पास हैं तो फिर चिंता किस बात की

।”

उस समय में कुछ नये  गायक रफी साहब की नकल करने लगे थे. इस बात की ओर जब एक पत्रकार ने उनका ध्यान आकर्षित किया तो हंसते हुए बोले-'जब मैं इस तरह की बातें सुनता हूं तो खुशी से मेरी छाता फूल जाती है

मुझे लगता है कि मेरी तरह और भी कई रफ़ी आगे आ रहे हैं और अब मैं अकेला नहीं रहा हूं

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एक संगीत महफिल में एक समीक्षक ने रफ़ी साहब की तुलना सहगल से की तो उन्होंने उस पर एतराज किया और कहा-“वह तो पूरे आकाश में छाये हुए बादल थे-मैं तो बादल का एक टुकड़ा हूं

।”

संगीत-निर्देशक नौशाद के साथ उनकी जोड़ी खूब जमी. इस पर वे हमेशा यही कहते रहे-'जिस तरह जिगर के दो हिस्से होते हैं उसो तरह हम संगीत जिगर के दो हिस्से हैं जो कभी अलग नहीं होंगे

।”

एक क्लब में नवोदित गायक गायिकाओं के बारे में उनसे कुछ बोलने को कहा गया तो उन्होंने कहा “जिनके बारे में कड़ी से कड़ी आलोचना हो तो समझ लेना चाहिए वह आवाज एक दिन अवश्य पसन्द की जायेगी. मैंने जब गाना शुरू ही किया था तो आलोचक मुंह फट कहने लगे कि मेरे गले में पत्थर-कंकर पड़े हैं

।”

वतंमान फिल्‍म संगीत के बारे में जब उनसे पूछा गया कि वह संगीत है या आर्केस्ट्रा का शोरगुल. इस पर  उन्होंने तपाक से कहा-'जिस दिन संगीत के बदले केवल आर्केस्ट्रा का शोरगुल सुनायी पड़ेगा उस दिन संगीत की समझ रखने वाले कानों में उंगलियाँ डाल लेंगे

।”

मोहम्मद रफी ने संगीत निर्देशक सी. रामचनु के निर्देशन में एक तेलगू फिल्‍म के लिए गाने गाये जो हिट हो गये. उन्हें तेलगू भाषा बिल्कुल नहीं आती-इस पर उन्होंने हिट गाने गाये, यह आश्चर्य की बात थी

'संगीत की भाषा संगीत ही होती है चाहे गाना हिन्दी में हो या बंगाली में या फिर तेलगू में' मोहम्मद रफ़ी

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इस बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा संगीत की भाषा संगीत ही होती है चाहे गाना हिन्दी में हो या बंगाली में या फिर तेलगू में

।”

अपने संगीत की प्रेरणा के बारे में रफी साहब ने बताया-'एक दिन वे किसी बात को लेकर दुखी थे तभी अ्रचानक एक सूरदास दर्द भरी गजल गाते हुए उनके पास से गुजरा

उस गजल को सुनते ही उनका दर्द खुद ब खुद गुनगुनाने लगा. जीवन का वही दर्दे संगीत की प्रेरणा बन गया. जीवन में जब तक दर्द नहीं होता-संगीत की रचना नहीं हो सकती

।”

संगीत के प्रति उनमें गहरा भात्म- विश्वास कब उत्पन्न हुआ-इस पर प्रश्न के बारे में रफ़ी साहब ने बताया “एक दिन उनक गुरू जी ने डांटा और कहा-'जाओ, भाग जाओ यहाँ से संगीत सीखने आये हो पर संगीत क्या है उसके बारे में कुछ पता नहीं है

संगीत के लिए बड़ी तपस्या करनी पड़ती है, गुरू जी के इस कथन पर वे एक कोने में बेठ कर वे फूट-फूट कर रोने लगे

जब रोते-रोते उनका गला रूंघ गया तो गुरू जी उनके पास आये और प्यार से उनके माथे पर हाथ फेरने लगे और बोले-'अब जब तुम्हें भीतर से रोना आ गया है तो इसी तरह गाना आ जायेगा जाओ, गाने का रियाज करो. उसी क्षण उनके भीतर संगीत के प्रति आत्मविश्वास की लौ जल उठी.”

एक बार एक पत्रकार ने रफी साहब से दिलचस्प सवाल किया-'आपने अनेक हीरो के लिए झावाज दी है तो बताइये झापका सबसे प्रिय हीरो कौन है ?” इस पर रफी साहब ने जवाब दिया-'जब मैं जिसके लिए गाता हूं उस वक्‍त वही सबसे प्रिय हीरो होता है मेरा उस वक्‍त.”

आपके संगीतमय जीवन का सुनहरा क्षण कौन सा होगा- इस संबंध में उन्होंने स्पष्ट किया-'जिस दिन मेरी आवाज खामोश होकर चारों झोर गूंजने लगेगी वही क्षण मेरे संगोतमय जीवन का सुनहरा क्षण होगा

-पन्ना लाल व्यास

स्व. मोहम्मद रफ़ी अनदेखी तस्वीरें

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