दीपशिखा नागपाल: मैं जो नहीं हूँ, वह पर्दे पर अच्छे ढंग से निभा लेती हूँ

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-शान्तिस्वरुप त्रिपाठी

फिल्मी माहौल में पली बढ़ी अभिनेत्री, लेखक व निर्देषक दीपषिखा ने कभी भी अभिनेत्री बनने की बात नही सोची थी। षुरू में उन्होने कई फिल्मों के आॅफर ठुकराए। मगर उनकी तकदीर में अभिनेत्री बनना लिखा था, तो वह एक दिन अभिनेत्री बन ही गयीं। उन्होने 1993 में अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। अब तक पचास से अधिक फिल्मों व तकरीबन 35 सीरियलों में अभिनय कर चुकी हैं। उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में परबीन बाबी की हमशक्ल के तौर पर भी देखा जाता है। हाल ही में ‘‘दंगल’’टीवी पर समाप्त हुए सीरियल ‘‘रंजू की बेटियां’’ में उन्होने ललिता के किरदार में जबरदस्त षोहरत बटोरी। अभिनय के अलावा 2012 में बतौर लेखक व निर्देषक उनकी फिल्म ‘‘ये दूरियां’’ भी आयी थी, जिसमें उन्होने अभिनय भी किया था। इन दिनों वह ‘दंगल टीवी’के लिए एक क्राइम सीरियल बना रही हैं। तो वही ओटीटी प्लेटफार्म ‘उल्लू प्राइम’ के लिए एक रोमांटिक थ्रिलर वेब सीरीज का लेखन व निर्देषन करने के साथ ही उसमें अभिनय भी कर रही हैं।

प्रस्तुत है दीपषिखा नागपाल से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंष...

आप अपने अब तक के कैरियर को किस तरह से देखती हैं?

पहली बात तो मैं खुद को लक्की मानूंगी। क्योंकि मैं कभी भी अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थी। जबकि मेरी मां गुजराती फिल्न्मों की चर्चित अदाकारा थीं। मेरे पिता निर्माता व निर्देषक थे। घर में कोई रहता ही नहीं था। मैं सोचा करती थी कि यह कैसा घर है। मेरे घर में कोई रहता ही नहीं है। सभी बच्चों की मां घर मंे खाना बनाती हैं। यहां तो मेरे घर पर खाना बनाने के लिए मां रहती ही नही हैं। इसलिए मैं कहती थी कि मैं मर जाउंगी,लेकिन अभिनय को कैरियर नहीं बनाउंगी। लेकिन नियति का खेल अलग है। आज मेरी पहचान एक अदाकारा के रूप में ही है। मगर मैंने कभी भी अपने कैरियर को लेकर कोई योजना नहीं बनायी थी। पर मेरे कैरियर में सब कुछ होता रहा। मैं देव आनंद साहब से मिलने गयी, उन्होेने अपनी फिल्म के लिए मुझे आफर दिया। राकेष रोषन ने मुझे फिल्म ‘करण अर्जुन’ का आफर दिया,तो मैंने यह सोचकर मना कर दिया था कि वह मेरी जगह मेरी बहन को ले लेंगें। सच कहॅूं तो उस वक्त मुझे अक्ल नही थी। जबकि मेरे माता पिता चाहते थे कि मैं अभिनय करुं। उस वक्त राकेष रोषन को अपनी फिल्म के एक किरदार के लिए दुबली पतली लड़की चाहिए थी। और उस किरदार में मेरी बहन फिट नहीं बैठ रही थी। तो नासमझी के चलते इस तरह के ब्लंडर मैंने काफी किए हैं। सुभाष घई ने फिल्म ‘‘परदेस’’ का आफर दिया था। ‘लाड़ला’ में ‘लड़की क्या है बाबा..’गाने के लिए अनिल कपूर के साथ करने का आफर मिला, उस वक्त मैं अनिल कपूर की बहुत बड़ी फैन थी। मैने अनिल कपूर जी से कहा कि ‘अनिल जी मैं आपके साथ फिल्म करुॅंगी, गाना नही करुंगी।’ उस वक्त मेेरे अंदर अल्हड़पन था। मुझे कोई सही राह दिखाने वाला नही था। सौ बात की एक यह कि उन दिनों हम किसी की सुनते नहीं थे। इस तरह मैने अपने कैरियर में गलतियंा काफी की। अब देखती हॅूं तो समझ में एक ही बात आती है कि यदि मंैने अपने कैरियर की योजना बनायी होती,तो आज मेरा कैरियर किसी अन्य मुकाम पर होता। फिर भी मैं बहुत आषावादी हॅूं.मैं आधे खाली गिलास को ‘आधा भरा हुआ गिलास’ देखती हॅूं। पिछले 22 वर्षों से इस फिल्म इंडस्ट्री में मैं काम कर रही हॅूं, तो इसके लिए मैं ख्ुाद को खुषनसीब मानती हॅूं। टीवी ने मुझे बहुत प्यार दिया। फिल्मों ने मुझे प्यार दिया।

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आपके कैरियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?

मेरे साथ सब कुछ अपने आप होता रहा है। फिर चाहे वह केन घोष का गाना ही क्यों न हों। ख्ुाद दलेर मेंहदी ने मुझे फोन किया था। उस वक्त मैं तो घर में सो रही थी। मेरे घर का काम चल रहा था। दलेर मेहंदी ने कहा कि,‘दीपषी,तुझे यह गाना करना है।’और मैने वह गाना कर लिया। वह गाना हिट हो गया। ‘फिर तुम’ को लेकर भी ऐसा ही हुआ। मैने 104 के टेम्परेचर में सोहेल खान के कहने पर फिल्म ‘‘पार्टनर’’ का गाना किया था। उनके कहने पर हमने फिल्म ‘पार्टनर’ की थी। जब मैं फिल्म ‘कोयला’ कर रही थी, तब षाहरुख खान ने फिल्म ‘बादषाह’ के लिए मेरा नाम सुझाया था।

राकेष रोषन अपनी फिल्म ‘कोयला’ के बिंदिया किरदार के लिए अभिनेत्री की तलाष कर रहे थे,उसी दौरान मैने एक सीरियल में अभिनय किया था। राकेष रोषन जी वह सीरियल देख रहे थे। मुझे देखा तो उन्होने सतीष जी से मेरा नंबर लेकर मुझे फोन करके बुलाया। ‘कोयला’ मंे ंषाहरुख खान ने मेरे साथ काम किया और उन्होने मेरा नाम फिल्म ‘बादषाह’ के लिए सुझाया। इस तरह मुझे फिल्में मिलती गयीं। ‘बादषाह’ करते हुए मैं ‘जानम समझा करो’ नही कर पायी। इसलिए मैं खुद को लक्की मानती हॅूं। मैने कोई संघर्ष नही किया। संघर्ष तो वह होता है कि आप अपने घर बार से दूर रह कर दिन रात कठिन मेहनत करते हैं। जो मैं कभी नही चाहती थी। मैं हमेषा अपने परिवार व बच्चों के पास रहना चाहती थी। मेेरे लिए यही सबसे बड़ा और इमोषनल संघर्ष है. मैं जहां भी हॅॅूं,उससे खुष हॅूं।

आपको नहीं लगता कि यदि आपने अपने माता पिता की सलाह मानकर षुरू से ही अभिनय पर ध्यान दिया होता,तो आपकी गिनती सफलतम हीरोईनों में होती?

माता पिता की सलाह को छोड़िए, यदि मैं हीरोईन बनना चाहती, तो मैं जरुर बनती। पर मैं ख्ुाद नही बनना चाहती थी। देखिए, आज यदि मैं अपनी बेटी को समझाऊं, तो वह नहीं समझेगी। उसे जो बनना है, वही बनेगी। मुझे अभिनय करने या फिल्म हीरोईन बनने में रूचि नहीं थी। यदि मेरी रूचि होती,तो मेरे क्ररियर का ग्राफ कुछ और ही होता। पर मुझे किसी बात का कोई अफसोस नही है।

आप नगेटिब किरदार में काफी पसंद की जाती हैं.रंजू की बेटियांमंे भी आपने नगेटिब किरदार ही निभाया?

क्या करुं। लोग मुझे नगेटिब किरदार में काफी पसंद करते हैं। पर मैं बुरी नही हॅूं। निजी जिंदगी मंे मैं बहुत इमोषनल हॅूं। मगर किरदार को मैं बहुत सषक्त ढंग से निभाती हॅूं। मैं मस्तीखोर हॅूं। मैं किसी का बुरा कभी नही कर सकती। पर जो मैं नही हॅंू, वह परदे पर अच्छे ढंग से निभा लेती हूंू। यह मेरी कल्पना षक्ति का कमाल है। लोग मुझे ग्लैमरस नगेटिब किरदार में ज्यादा पसंद करते हैं।

नगेटिव किरदार निभाते हुए बतौर कलाकार कितनी संतुष्टि मिलती है?

मैंने पहले ही कहा कि नगेटिब किरदार करते हुए हम ज्यादा इंज्वाॅय करते हैं। हम निजी जीवन में जो नहीं है, उसे परदे पर निभाना ही चुनौती होती है। दूसरी बात नगेटिब किरदार हमेषा बहुत पावरफुल और स्ट्रॉन्ग होते हैं। मसाला और तड़का हमेशा नगेटिव किरदार से ही आता है। दर्शकों को लगता है कि अब यह आयी है,तो कुछ जरूर करेगी।

लेकिन पहले जैसे नगेटिब किरदार अब फिल्म या सीरियल में नजर नही आते?

अब तो हीरो भी नगेटिव किरदार करने लगे हैं.पहले हीरो, विलेन अलग अलग कलाकार होते थे,पर अब सब गड़बड़ झाला है। अब हर कलाकार को लगता है कि जहां परफार्मेंस का सवाल हो, वहां नगेटिब या पाॅजीटिब या काॅमेडी वाली बात नहीं होती। सिर्फ परफार्म करते हैं। क्योंकि अब सिनेमा का ट्ेंड बदल गया है। दर्षक बदल गया है। अब तो ‘बधाई हो’ जैसी फिल्में सफल हो जाती हैं। अब आफबीट सिनेमा की तरफ लोगों का झुकाव बढ़ा है। अब किरदार और लेखक महत्वपूर्ण हो गए हैं।

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तो क्या अब आपको लगता है कि आपके लिए अवसर कुछ कम हो गए हैं?

जी नहीं... मेरे अवसर बढ़ गए हैं। अब सीमाएं खत्म हो गयीं। जैसे कि आपने सीरियल ‘रंजू की बेटियां’में देखा होगा कि मेरा ललिता का किरदार नगेटिब नही है। ललिता का मकसद अपने पति व बच्चांे को अपने पास रखना है। जबकि उसके पति का झुकाव कहीं और है, तो वह अपने परिवार को एकजुट करने के लिए कुछ चालें चलती है। साम दाम दंड भेद अपनाती है।

2011 में निर्माता, निर्देषक के रूप मंे फिल्म बनायी। फिर दस वर्ष तक कुछ नही बनाया। कोई वजह?

मेरी जिम्मेदारी काम की थी।  2011 में फिल्म बनायी, जिसे 2012 में रिलीज किया। 2012 में दूसरी षादी की, तो मैं परिवार में व्यस्त हो गयी। पर काम करती रही.मैने ‘नच बलिए’ किया। ‘बिग बाॅस’ में गयी। फिर दूसरे पति से तलाक हो गया। उसके बाद लाॅक डाउन हो गया। इससे पहले मैं जयपुर में ‘एंड टीवी’के सीरियल की षूटिंग में व्यस्त थी। अब ‘दंगल क्राइम’ कर रही हॅूं। एक पारिवारिक ड्ामा सीरियल बना रही हॅंूं ‘उल्लू प्राइम’ के लिए वेब सीरीज का निर्देषन कर रही हॅूं। यह रोमांटिक थ्रिलर है। इसमे मैं ख्ुाद अभिनय करने वाली हूंू। इसका लेखन भी मैंने ही किया है।

शौक क्या हैं?

गायन, नृत्य करना व यात्राएं करना। लिखने का भी षौक है। लेखन का षौक तो मेरे पापा की देन है। षायरियां व कहानियंा लिखती हॅूं।

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