मायापुरी अंक 9.1974
खार में बब्बर का गैराज आजकल बड़ा मशहूर हो रहा है। बहुत से आर्टिस्टों की गाड़ियां उसके पास आती है। कई बार कोई आर्टिस्ट भी चला आता है और वहा ऐसे भीड़ इकट्ठी हो जाती है जैसे किसी स्टूडियो के बाहर दिखाई देती है। उस दिन जब डिम्पल वहां आई तो अच्छी खासी भीड़ जमा हो गई। एक बार उसने कहा था लोग उसे अभी भी नही पहचानते और वह बिना किसी डर के कई जगह घूम आती है। शायद इसी बात को परखने के लिये वह अपनी छोटी बहन सिम्पल के साथ गाड़ी ठीक कराने गैराज में चली आई। हालांकि वह गाड़ी अपने ड्राईवर कबीर के हाथ या खुद छोड़ कर जा भी सकती थी लेकिन वह दोनों एक घन्टा वह पर रही। जबतक गाड़ी न ठीक हो गई। और भीड़…भीड़ तो वहां पर देखने वाली थी। लेकिन दोनों बहने घबराने की जगह इस बात का मजा ले रही थी।
डिम्पल ने थोड़ी देर बाद जानबूझ कर दिखाने के लिए सिगरेट निकाली और इतमिनान से धूएं के गुब्बारे बनाने लगी।