मैंने अभिषेक बच्चन को बचपन से देखा था। मैंने उन्हें बड़ा होता हुए देखा था व एबीसीएल प्रोड्क्शन के मैनेजर के रूप मे काम संभालते देखा है। एबीसीएल प्रोड्क्शन अभिषेक बच्चन के पिता अमिताभ बच्चन द्वारा गठित किया गया। इसके बाद मैंने उन्हें बतौर एक्टर फिल्म ‘तेरा जादू चल गया’ में देखा, इस फिल्म के डायरेक्टर ए मुथु हैं व फिल्म की अभिनेत्री कीर्ति रेड्डी थी। यह कीर्ति की पहली हिन्दी फिल्म रही, उनकी फिल्म फ्लॉप रही जैसा कि उनके पिता के करियर के शुरूआती दिनों में हुआ था। अभिषेक को अपनी फिल्मों को लेकर फ्लॉप का मुंह देखना पड़ा, उनकी फिल्में भले ही फ्लॉप साबित हो रही हो लेकिन उन्होंने हर फिल्म में बेहतरीन अभिनय के साथ खुद को अच्छा एक्टर साबित किया है। लेकिन दुर्भाग्य से उनकी कोई भी फिल्म बॉक्स- ऑफिस की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई। अगर लक जैसी कोई चीज होती है तो यह कह सकते हैं कि लक अभिषेक के पक्ष में नहीं रहा क्योंकि उनकी शुरुआती फिल्में फ्लॉप रही। मैंने उनकी ‘ऑल इज वैल’ फिल्म देखी है और मैं उनके अभिनय को देखकर हैरान रह गया, उन्होंने एक दिग्गज और बहुमुखी एक्टर ऋषि कपूर के बेटे की शानदार भूमिका निभाई थी। फिल्म में वह एक ऐसे बेटे के किरदार में थे जो अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है, वह अपने पिता बिजनेस नहीं सम्भालना चाहता था। फिल्म में वह सिंगर बनना चाहते हैं, जिस कारण पिता व पुत्र के बीच में टकराव होता है।

फिल्म में सुप्रिया पाठक अभिषेक की मां के रोल में नजर आती है। मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि अभिषेक ने ऋषि कपूर व सुप्रिया पाठक जैसे अभिनेताओं के साथ सहजता के साथ काम किया। संयोग से ऋषि कपूर व अमिताभ बच्चन ने बहुत सी फिल्मों में एकसाथ काम किया है। इन दिनों ‘ऑल इज वैल’ जैसी फिल्में कम बनती हैं। यह सार्थक और प्रासंगिक फिल्म रही, जो कि आज एक विषय बन गयी है, अगर कोई व्यक्ति है जिसे इस फिल्म का श्रेय मिलना चाहिए तो वो है अभिषेक बच्चन। लेकिन सार्थक और प्रासंगिक विषय होने के बावजूद फिल्म अपना जादू नहीं चला पाई क्योंकि विशेषज्ञों के अनुसार फिल्म गलत समय पर रिलीज हुई। यह फिल्म उस समय रिलीज हुई जब इस फिल्म से पहले ना कोई बड़ी फिल्म रिलीज हुई थी ना ही इस फिल्म के बाद। बड़ी फिल्में ऑडियंस को एकत्रित करती हैं जिससे छोटी फिल्मों के लिए भी ऑडियंस खुद ब खुद एकत्रित हो जाते हैं। जिस कारण ‘ऑल इज वैल’ जैसी बेहतरीन विषय की फिल्म भी नहीं चल पाई व सारा दोष अभिषेक बच्चन जैसे बेहतरीन एक्टर पर डाल दिया गया।

मुझे पता है कि बिजनेस पर्सन ऐसे हैं जो अभिषेक की क्षमताओं के बारे में लिखने को तैयार है लेकिन अभिषेक इन सारी बातों की बिलकुल भी चिंता नहीं करते। क्योंकि उनके पिता ने इन्ही बिजनेस पर्सन के द्वारा की कई कठोरता का सामना किया था। अभिषेक को भी अपने पिता की तरह विश्वास था कि एक एक्टर को तभी बेहतर माना जाता है जब वह फिल्म में हिट साबित होता है। जब वाणिज्यिक और समीक्षकों दोनों के द्वारा ही उसकी तारीफ होती है। मुझे लगता है कि अभिषेक को अपने लेजेंडरी पिता से अनुभव लेना चाहिए। मुझे लगता है कि यही समय है कि अभिषेक बच्चन की बेहतरीन परफॉर्मेंस को याद किया जाए। भला कोई कैसे कह सकता है कि वह फिल्मों में अच्छा अभिनय नहीं करते। ‘धूम’, ‘गुरु’, ‘खेलेंगे हम जी जान से’,‘बोल बच्चन’, ‘बंटी और बबली’, ‘उमराव जान’, ‘रक्त’, ‘सरकार’ सहित कुछ फिल्में ऐसी भी रही जिसमें उन्होंने अपने दुर्जेय पिता का सामना भी किया व एक विजेता के रूप में उभरे। यह तो बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने पंद्रह सालों में जो अठारह फिल्में की वह सब अच्छी नहीं रही। उनकी फिल्मों को देखने के बाद मैं उन्हें एक विनम्र राय देना चाहता हूं कि वह यंग व बेहतर डायरेक्टर के साथ काम करें। ताकि डायरेक्टर अभिषेक की प्रतिभा को पहचान सकें।

अभिषेक को फिल्म में सोलो एक्टर की भूमिका में काम करना चाहिए। इसके साथ उन्हें ऐसी फिल्में भी करनी चाहिए जिसमें उनके साथ कई एक्टर्स भी काम करें जैसा कि उन्होंने ‘हैप्पी न्यू ईयर’ व ‘दोस्ताना’ जैसी फिल्म की थी, इसके साथ ही उन्हें यंग एक्ट्रेसेस प्रियंका चोपड़ा, कंगना रनोट, श्रद्धा कपूर, परिणीति चोपड़ा व आलिया भट्ट के साथ भी काम करना चाहिए। उनके एक के बाद एक सराहनीय प्रदर्शन के लिए क्या हम अभिषेक को बतौर एक्टर उस मुकाम पर देख पाएंगे जिसके वह हकदार हैं?