मायापुरी अंक 51,1975
मोहन स्टूडियो में अमिताभ बच्चन से मुलाकात हो गई। वह दो नंबर फ्लोर के आगे अपनी कार के मडगार्ड पर बैठा हुआ चाय-वाय पी रहे थे। हमने उन्हें इस तरह गुमसुम अकेले देखकर पूछा।
अमित जी, आज आप इस तरह अकेले क्यों बैठे हैं?
कुछ नहीं, आज सुबह से शूटिंग कर रहा हूं। सुबह एक शिफ्ट में ‘दो अनजाने’ में काम किया। अब ‘हेराफेरी’ की शूटिंग कर रहा हूं। अमिताभ बच्चन ने बताया।
अमित जी, सुना है आजकल आपकी और सलीम-जावेद की ट्यूनिंग में कुछ फर्क आ गया है, क्या यह सच है?
सवाल ही पैदा नहीं होता। हमारे बीच संबंधो में कोई अंतर नहीं आया है। लेकिन लोग हमारे बीच गलतफहमी पैदा कराने के लिए नित नई-नई अफवाहें फैलाया करते हैं। अमिताभ ने खंडन करते हुए कहा।
पिछले दिनों हमने महमूद का इंटरव्यू किया था तो महमूद ने कहा था कि मैने जिन लोगों का मदद की। उन्हीं लोगों ने मेरे बुरे दिनों में आंखे फेर ली। किसी ने अपनी फिल्म में काम नहीं दिलवाया। क्या आपने भी उनकी कोई मदद नहीं की थी? हमने पूछा।
जहां तक फिल्में दिलाने की बात है तो आजकल की फिल्मों में कॉमेडियन के लिए कोई स्कोप नहीं है। इसीलिए फिल्में दिलाना बड़ा कठिन काम था। हां, जहां तक सहायता की बात है तो मैं वह समय कभी नहीं भूलूंगा जब भाईजान मुझे लेकर घूमते थे। मेरे दिल में उनके लिए जो इज्जत है जो स्थान है वह वैसा ही रहेगा, मैं चाहे कुछ हो जाऊं। इसीलिए जब उन्होंने ‘गरम मसाला’ और ‘कुंवारा बाप’ में अतिथि की भूमिका निभाने के लिए कहा तो मैंने निभा दी। भाईजान औरों के बारे में चाहे कुछ कहें किंतु मेरे बारे में नहीं कह सकते हैं और न मैं कभी कहने का मौका दूंगा अमिताभ ने आश्वास्त स्वर में कहा।