मायापुरी अंक 15.1974
हेमा की मां इस वक्त, दुनिया भर की सभी माताओं से सबसे अधिक दुखी व्यक्ति है। (भगवान करे-उसे कुछ न हो) एक और वह चाहती है कि उसकी प्यारी बेटी के लिए उसके मन पसन्द का वर मिल जाय और वह उसकी जल्दी से जल्दी शादी कर डाले, दूसरी ओर वह यह भी चाहती रहै कि उसकी बेटी का फिल्मी करोबार भी चलता रहे और वह करोबार हमेशा-हमेशा के लिए हेमा की प्राइम मिनिस्टर भी बनी रहना चाहती है। पर हेमा के मन में क्या है वह शायद आज तक नही समझ पायी है इसी कारण अब दोनों के प्यार में खिंचाव और तनाव पैदा हो रहा है। पिछले दिनों जब मैनें हेमा से सम्पर्क करने को कोशिश की तो पता चला कि वह तो बैंगलौर गयी है और उसकी मां ऋषिकेश-गंगा स्नान के लिए गयी है शायद वह देवी देवताओं से मनौती मांगने गयी कि उसकी दोनों इच्छाएं पूरी हो जायें। ऋषिकेश से आते ही वह एक दिन के लिए पूना भी गयी। पहले तो हेमा की मां जया चक्रवर्ती हमेशा उसके साथ-साथ रहती थी पर अब क्या हेमा इतनी सयानी हो गयी है कि वह अपनी देखभाल खुद करने लगी है। कही ऐसा तो नही है कि हेमा की प्राइम मिनिस्टर का शासन ही डोलने लगा है। इस दिलचस्प नाटक में धर्मेन्द्र भी एक पात्र है जो इस राजनीति में पूरा जय प्रकाश नायरायण बना हुआ है वह ओम-ओम शांति ओम, के साथ कुछ क्रांति करना चाहता है। लाठी न टूटे और साँप भी मर जाय-इस निति के साथ धर्मेन्द्र हेमा के साथ अपना संबंध बनाये रखना चाहता है। तो क्या वह हेमा में मीना कुमारी की छाया ढूंढने लगा है?