क्या कमाल है यह फिल्मी दुनिया। अजब दस्तूर है इसका। यहां रात को सूरज निकलता है। सुबह खामोश लिहाफ में दुबकी रहती है। यहां सभी अपने आप को बेहतर समझते हैं। एक दूसरे से आगे निकल जाने की एक अंधी दौड़ यहां सौ साल के सिनेमा-इतिहास से चल रही हैं।
यहां डूबते को पानी पिलाया जाता है और चढ़ते सूरज को आगे सजदा किया जाता है। एक जमाना था जब पूरी फिल्मी दुनिया में एक ही ही-मैन होता था। पंजाबी बब्बर शेर-धर्मेन्द्र। उस की बॉडी देखकर मीना कुमारी से लेकर हेमा मालिनी तक की जवानी में करंट दौड़ने लगता था।
मैं धर्मेन्द्र का खास दीवाना रहा हूं पर चच्चा फिल्मी जितना नही। वो धर्मेन्द्र की फिल्मों के लिए कॉलेज से गायब हो जाते थे। ‘अब क्या बताएं मांकड़ साहब वो जमाना और था तब धर्मेन्द्र शेर से लड़ जाता था।‘ अपनी मिचमिची सुरमई आंखों में फ्लैश बैक के सीन देखते हुए चच्चा फिल्मी फुनफुनाएं।
‘पर चच्चा, आजकल भी तो ही-मैन है। अपने सलमान भाई को लो। पर्दे पर भी और जाति जिंदगी में भी वो बिग बॉस है। उनकी बॉडी देखो।…. छ: के छ: पैक मानो ऊपर वाले ने फेवीकोल से चिपका कर दिए है। मैंने आजकल की फिल्मों पर आते हुए कहा। चच्चा तो बौरा गये। तीन-तीन फुट की छलांग लगाने लगे। ईंजन की सीटी में उनका ‘बम’ डोलने लगा। ‘क्या बात करते हो… अजी छ: पैक का जमाना गया। अपना फौजी, अपना दीवाना, अपना बादशाह तो पचास साल में आकर मोहम्मद अली बन गया है।“चच्चा फिल्मी अपनी दो ईंच की मछलियां फड़फड़ा कर चरमराये।
मैं समझ गया कि चच्चा फिल्मी ने शाहरुख खान की नई फोटो देख ली है।
“पर चच्चा, वैसे इस उम्र में आठ पैक बनाना मुश्किल है। आठ पैग तो बन्दा फिर भी गटक सकता है पर शाहरुख जैसा अपनी बॉडी को इतना कष्ट देना वाकई मुश्किल है।“
“क्या बात कर दी मियां, अपना शाहरुख बन्दा मेहनती है.. फिल्म चलवानी है उसे.. चाहे शरीर का अंग-अंग नया लगवा ले। देख लेना अगली फिल्म में बारह पैक बनायेगा।“ चच्चा पीकदान में आधा मुंह डालकर पिकपिकाए।
मैं सोच में पड़ गया। क्या हो रहा है फिल्मी लोगों को। रियलटी दिखाने के चक्कर में कोई गंजा हो रहा है तो कोई छमकछल्लो वजन बढ़ा रही है। कभी घटा रही है। स्टारडम बचाने के लिए यह अपनी सेहत से भी खिलवाड़ कर रहे है। अब चच्चा फिल्मी तो खर्च हो चुके खोटे सिक्के है वो हवा भी हो गये तो फर्क नही पड़ेगा। पर हमें अपने मासूम चेहरे वाले शाहरुख, सलमान, प्रियंका चोपड़ा की बहुत जरूरत है।
बदलो पर सेहत बचा के। बाकी अल्लाह मेहरबान तो चच्चा फिल्मी पहलवान।
(लेखक हरविन्द्र मांकड़)