मायापुरी अंक 5.1974
मारपीट, घुड़सवारी जैसे खतरनाक दृश्यों में आमतौर पर हमेशा फिल्म स्टारों की बजाय डुप्लीकेट्स से काम लिया जाता है इसलिए चहेते कलाकारों के चेहरे दिखाई देने का सवाल ही नही उठता। आम जनता यही समझती है कि तथाकथित कारनामे उनके चहेते सितारे ही दिखा रहे हैं।
स्व.महबूब की फिल्म अन्दाज में दिलीप कुमार, नरगिस और राजकपूर ने काम किया था। उसी फिल्म के शुरू में एक दृश्य में एक घोड़े पर नरगिस घबरा कर सहायता के लिए चिल्लाती है। दिलीप कुमार यह देखकर उसका पीछा करता है और उसे बचा लेता है जैसाकि हमारे हीरो किया करते है।
यह दृश्य चूकिं लांग शॉट में लेना था और तेज रफ्तार घोड़ों के साथ फिल्म बन्द करना था इसलिए महबूब साहब ने तय किया था कि यह दृश्य चूंकि जोखिम के है इसलिए डुप्लीकेट की मदद से फिल्मा लिए जाए लेकिन दिलीप कुमार और नरगिस डुप्लीकेट की बजाय खुद करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने डुप्लीकेट लेने से इन्कार कर दिया उन्होंने एक स्वर से कहा, ‘जब हम दोनों ही वास्तविक शॉट देना चाहते है तो फिर डुप्लीकेट के बारे में क्यों सोच रहे हैं?
‘मैं तुम्हारी जान खतरे में डालना नही चाहता हू महबूब ने कहा। लेकिन नरगिस और दिलीप कुमार अपनी जिद पर अड़े रहे। राजकपूर ने भी दोंनो को बहुत समझाया लेकिन वह दोनों टस से मस न हुए आखिर महबूब साहब को हथियार डालने पड़े और उन दोनों लिए घुड़सवारी सीखने का प्रबन्ध किया। पन्द्रह दिन में दोनों घुड़सवारी में माहिर हो गए।
शूटिंग के लिए ‘अन्दाज’ का यूनिट खन्डाला गया। शूटिंग स्थल पर दो घोड़े और कैमरामैन फरीदून इरानी पहले ही पहुंच गए थे। नरगिस और दिलीप कुमार एक एक घोड़े पर जा बैठे। महबूब साहब ने ‘स्टार्ट’ कहा। नरगिस ने घोड़े की एड़ लगाई किन्तु वह जगह से हिला तक नही और दिलीप का घोड़ा जरा सी एड़ से सरपट दौड़ने लगा। उसको दौड़ता देखकर तमाम लोग हंसने लगे क्योंकि असल में तो दिलीप कुमार को नरगिस का पीछा करना था और यहां सब उल्टा हो गया था। दोनों को वापस बुलाया गया और फिर से ‘टेक’ शुरु किया लेकिन फिर वही उल्टी दौड़ शुरू हो गई। लोग हैरान रह गए कि यह चक्कर क्या है ?
फरीदून इरानी को कुछ सूझा तो बोले बाबा ! दिलीप का घोड़ा नरगिस को दे दो और नरगिस का घोड़ा दिलीप को दे दो शायद इस तरह अपना टेक पूरा हो जाए।
पास खड़ा घोड़े वाला पारसी बाबा की अकल पर हंसता हुआ बोला, बाबा यह दोनों घोड़े नही हैं। इनमे एक घोड़ा है और दूसरी घोड़ी है।
अब बात समझ में आ गई। वरना इसमें पूर्व किसी ते ध्यान ही नही दिया था। महबूब साहब घोड़े वाले पर गुस्सा होकर बोले साला इतनी देर से क्यों बोला ?
घोड़े की अदला बदली से तीन शॉट तो हो गए लेकिन इसके बाद मौसम ने साथ देने से इन्कार कर दिया और शूटिंग पैक अप कर दी गई। अगले दिन फिर शूटिंग पर पहुंचे लेकिन सहायक निर्देशक को सजगता के कारण शूटिंग न हो सकी। घोड़े वाला सफेद की जगह काला घोड़ा ले आया था और इस से कण्टिन्यूटी में फर्क आ रहा था। ऐसा लगता कि कोई जादुई फिल्म बन रही है जिसमें सफेद घोड़ा काला हो गया है।
दूसरे दिन घोड़े वाला काले की जगह सफेद घोड़ा ले आया। शूटिंग की भागते हुए घोड़े को नरगिस ने निर्देशानुसार रोक लिया किन्तु दिलीप का घोड़ा न रूका। उसे रोकने के लिए दिलीप ने लगामें खींच ली। लगाम खीचने से घोड़ा पिछली टांगों पर खड़ा हो गया और दिलीप कुमार बाल-बाल गिरते बचा लगाम खींचने पर वह घोड़ा और भी ज्यादा तेज दौड़ने लगा। दिलीप के हाथ से लगाम छूट गई। अगर वह तुरंत जीन न पकड़ लेता तो कब का गिर कर खत्म हो जाता। जीन पकड़ते समय घोड़ा और तेज दौड़ने लगा। महबूब साहब चिल्लाए, ‘साला ऐसा तूफानी घोड़ा लाया था तो बोला क्यों नही। देख अगर दिलीप को कुछ हो गया तो तेरी खैर नही।
घोड़े वाला इतना सुनकर नरगिस से घोड़ा लेकर दिलीप के पीछे भागा किन्तु देखते ही देखते दिलीप नजरों से ओझल हो गया।
उस दिल असल में घोड़े वाला पैसों के लालच में कुछ बोला न था पहले दिन वाला घोड़ा कोई और ले गया था। उसके बदले में उसे जो घोड़ा मिला वह ऐसा था कि उस पर अच्छे से अच्छा घुड़सवारी नही कर सकता था फिर भला दिलीप किस खेत की मूली था।
थोड़ी देर बाद दिलीप कुमार एक ढलान पर पड़ा हुआ मिला। उसे तुरंत उसके होटल पहुंचाया गया। अगर वह होटल की बजाए कही और पहुंच जाता तो बीमा कम्पनी को दो लाख रुपये की चपत पड़ जाती।
इसके बाद बाकी के शॉट डुप्लीकेट की मदद से ही लिए गए और फिर न कभी नरगिस ने और न ही दिलीप कुमार ने वास्तविक शॉट देने की इच्छा प्रकट की।