एक स्टार जब किसी विषय पर बात करता है तो यह बहुत ज्यादा मायने रखता है। दीपिका पादुकोण ने इस बात को स्वीकारा कि वह अपने जीवन में डिप्रेशन से लड़ी थी। उन्होंने इस बात का जिक्र न्यूज पेपर व हर चैनल से किया। दीपिका पादुकोण ने कई चैनल्स पर अपनी कहानी भी बताई क्योंकि कोई भी बड़ा स्टार इस बीमारी के बारे मे बात करने को तैयार नहीं होता। कड़वा सच तो यह है कि लगभग हर स्टार, डायरेक्टर, लेखक, संगीतकार, गायक इस स्थिति से गुजर चुका है। मैं दीपिका की सराहना करता हूं कि क्योंकि उन्होंने वो कर के दिखाया है जो इतने सालों में फिल्म इंडस्ट्री मे कोई न कर सका। दीपिका ने एनडीटीवी की बरखा दत्त से डिप्रेशन से लड़ने की दास्तां बयां की। जनवरी 2015 में दीपिका ने पहली बार अपनी चिंता व डिप्रेशन से अपने संघर्ष का खुलासा किया। वह उस समय इन सब स्थिति को झेल रही थी जब उन्होंने इस इंडस्ट्री में अपनी एक नई पहचान बनाई थी।
यह वो लेख है जिसमें दीपिका ने उस समय के बारे मे बताया जब वो डिप्रेशन से लड़ी व उन्हें इस सघर्ष मे जीत हासिल हुई।
2014 की सुबह जब मैं उठी तो मुझे कुछ अलग सा महसूस हुआ। एक दिन पहले मैं थकावट से बेहोश हो गई थी। मैं अपने पेट में एक अजीब सा खालीपन महसूस कर रही थी। मुझे लगा ऐसा तनाव के कारण हो रहा है। इन सब से बाहर आने के लिए मैं अपना पूरा ध्यान काम पर लगाने लगी, लोगो से घिरे रहने की कोशिश करने लगी। मेरी सांस उथल-पुथल होने लगी, मैं अपने अंदर एकाग्रता की कमी महसूस करने लगी। जैसे-जैसे समय बीतता गया स्थिति और खराब होती चली गई। जब मेरे माता-पिता मुझसे मिलने मुम्बई आए तब मैं उनके सामने साहसी बन कर दिखाने लगी क्योंकि वह हमेशा ही मेरे अकेले रहने व घंटो काम करता देख चिंतित रहा करते थे। इसके बाद एक दिन जब मैं अपनी मां (उजाला पादुकोण) से बात कर रही थी तब मैं टूट गई। उन्हें मेरी समस्या का अहसास हो गया था और एक दिन उन्होंने अपनी एक मनोवैज्ञानिक सहेली अन्ना चांडी से मेरे बारे में बात की।
हर सुबह, जगना व फिल्म ‘ हैपी न्यू इयर ‘ के शूट पर जाना मेरे लिए एक संघर्ष बन गया था। मैंने अनना आंटी से फोन पर बात की, इसके बाद वह बेंगलुरू से मुंबई आ गई। मैंने उनसे अपने दिल की सारी बातें की, मेरी सारी बात सुनने के बाद उन्होंने निष्कर्ष निकाला और मुझसे कहा कि दीपिका तुम चिंता व डिप्रेशन से पीड़ित हो। जब उन्होंने मुझे सुझाव दिया कि मुझे अपना इलाज करना चाहिए तब मैं इसके विरोध में थी। मैंने सोचा बात करना ही काफी नहीं होगा। इसके बाद मैं बेंगलुरू गई, वहां मनोवैज्ञानिक डॉक्टर श्याम भट्ट से मिली। एक समय ऐसा भी आया जब मैं अच्छा महसूस करने लगी थी पर कुछ दिनों के बाद फिर से वैसा ही महसूस होने लगा था। अंत में, मैंने अपनी स्थिति को स्वीकारा। काउंसलिंग से मुझे मदद मिली पर एक हद तक। इसके बाद मैंने इलाज करवाया और आज मैं बेहतर महसूस कर रही हूं। जब मैं फिल्म ‘हैपी न्यू ईयर’ की शूंटिग कर रही थी मुझे बहुत बार इस स्थिति से गुजरना पड़ा था। इन सब के बाद सुजीत सरकार के साथ काम करने से पहले मैंने 2-3 महीनों का ब्रेक लिया ताकि मैं मानसिक व शारीरिक रूप से ठीक हो सकूं। मैंने बेंगलुरू में अपने परिवार के साथ समय बिताया व जल्द ही बेहतर महसूस करने लगी थी पर जब मैं वापिस मुम्बई आई तब मैंने अपने दोस्त की
आत्महत्या के बारे मे सुना वह चिंता व डिप्रेशन से पीडि़त था। इस बात से मुझे बहुत बड़ा झटका लगा। मेरे व्यक्तिगत अनुभव के साथ-साथ मेरे दोस्त की मौत ने मुझे इस मुद्दे को सबसे सामने लाने का आग्रह किया। लोग डिप्रेशन के बारे में बात करना शर्म और कलंक मानते है। जबकि आज चार व्यक्ति में से एक व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है।
द वर्ल्ड हैल्थ ऑरगेनाइजेशन ने कहा कि यह बीमारी कुछ सालों में व्यापक हो जाएगी। मैंने डिप्रेशन की स्थिति को समझा व काबू भी पाया। इस संघर्ष से लड़ते-लड़ते मैंने खुद में एक मजबूत व्यक्ति की छवि पाई। मैंने अपना इलाज करवाना भी बंद कर दिया था। मैं आशा करती हूं कि मेरा उदाहरण लोगों की मदद करेगा इन सब से बाहर आने में।
मुझे लगता है उस समय मरीज अपनी बीमारी के बारे में बात करना चाहता है, सलाह लेना नहीं चाहता लेकिन, शुभचिंतक इस तरह की बाते करते है- ‘सब ठीक हो जाएगा, चिंता मत करो’ हो सकता है कि इस तरह की बाते हानिकारक हो। उदास होना व डिप्रेस्ड होना दो अलग-अलग बातें है। जब व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार होता है तो वह डिप्रेस्ड नजर नहीं आता वहीं दूसरी तरफ व्यक्ति अगर उदास है तो उसकी उदासी साफ-साफ नजर आ जाती है। सबसे आम प्रतिक्रिया तो लोगों से ये आती है कि ‘आप डिप्रेशन के शिकार कैसे हो सकते है ? आपके पास तो सब कुछ है- आप बॉलीवुड की टॉप अभिनेत्रियों में से एक है, आपके पास गाड़ी है, बंग्ला है, फिल्में है। आपको और क्या चाहिए भला ?’ डिप्रेशन का शिकार होने का मतलब ये नहीं है कि मेरे पास क्या है और क्या नहीं। लोग शारीरिक फिटनेस की बात करते है पर मानसिक हैल्थ भी उतनी ही जरूरी होती है। मैंने देखा है जो लोग इस बीमारी से पीड़ित होते हैं उनका परिवार पीडि़त व्यक्ति की मदद करने के बावजूद शर्मिंदगी महसूस करता है। हमें जरूरत है उस व्यक्ति को समझने व उसका साथ देने की। लोगों की मदद करने व डिप्रेशन के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए मैं इस पहल पर काम कर रही हूं। मेरी टीम इस योजना को बनाने में मेरे साथ काम कर रही है, जिसका जल्द ही अनावरण किया जाएगा।