रेटिंग***
अभी तक बिग बजट और प्यौर कमर्शियल फिल्में देने वाले निर्देशक सोहेल खान ने इस बार एक विदेशी फिल्म से प्रेरित हो, छोटे बजट की ‘फ्रीक्री अली’ जैसी गुदगुदाती फिल्म का निर्देशन किया है। जो एक स्ट्रीट ब्वाय को उसके हुनर के तहत शीर्ष तक ले जाती है।
कहानी
स्ट्रीट ब्वाय फ्रीकी अली यानि नवाजुद्दीन का एक हिन्दू औरत सीमा बिस्वास ने पाला। जवान होने पर अली चड्डी बनियान से लेकर हफ्ता वसूली तक का धंधा करता है लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिल पाती। एक दिन वो अपने साथी मकसूद यानि अरबाज खान के साथ एक धनाढ्य शख्स सिंघानिया से हफ्ता वसूलने के लिये गोल्फ के मैदान में बैठकर उसके गेम खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। वहां अली सिघांनिया के खेल का मजाक उड़ाता जो गेंद को होल में नहीं डाल पा रहा है इस पर सिंघानिया उसे चेलेंज करता है कि वो गेंद को होल में डाल कर दिखाये। अली आराम से उस काम को अंजाम दे देता है। अली के मौहल्ले में रहने वाले किशन लाल यानि आसिफ बसरा उसके गोल्फ खेलने के टेलेंट को पहचान कर उसे वो गेम खेलने के लिये प्रेरित करता है। यहां उसकी मदद उसका साथी मकसूद भी करता है लेकिन गोल्फ चैंपियन विक्रम सिंह यानि जस अरोड़ा अली से खुंदक खाता है लेकिन उसकी मैनेजर मेघा यानि एमी जैक्सन उसके खेल की तारीफ करती है और बाद में उसे प्यार करने लगती है। इसके बाद अली की किस्मत पूरी तरह से बदल जाती है।
निर्देशक
सोहेल खान ने एक विदेशी कहानी को पूरी तरह इंडियन बनाकर प्रभावशाली तरीके से पेश किया है। कहानी बेहद सीधे सादे ढंग से दर्शक को हंसाती गुदगुदाती आगे बढ़ती है। फिल्म का पहला भाग खूब मनोरजंक है लेकिन बाद में कहानी थोड़ी सुस्त हो जाती है यहां तक क्लाइमेक्स काफी फिल्मी हो गया है। फिल्म की खास बात ये है कि क्रिकेट और फुटबाल जैसे खेलों की तरह गोल्फ जैसे बोरिंग समझे जाने वाले गेम में सोहेल रोमांच पैदा करने में सफल साबित हुये हैं। इसलिये आप कह सकते हैं कि फिल्म दर्शक का मनोरंजन करने में पूरी तरह सफल है।
अभिनय
नवाजू इससे पहले अपनी फिल्मों में बता चुके हैं कि वे एक ऑलराउंडर अभिनेता हैं यहां उन्होंने अपने किरदार को जिस प्रकार कॉमेडी ट्च दिया वो उनकी प्रतिभा के दर्शन करवाता है। अगर देखा जाये तो फ्रीकी अली की कहानी स्वंय नवाजू की अपनी पर्सनल लाइफ से भी काफी हद तक मिलती जुलती है जिसे उन्होंने खूब मजे लेकर निभाया है। मकसूद की भूमिका में अरबाज इस बार भी कुछ नया नहीं कर पाते। निकेतन धीर लोकल डॉन के तौर पर ठीक ठाक काम कर गये और बड़ा डॉन की छोटी सी भूमिका जैकी श्रॉफ भी हंसाने में कामयाब है। जस अरोड़ा अपने लुक में अमीर लगते हैं। सीमा बिस्वास को एक अरसे बाद परदे पर देखना भला लगा। आसिफ बसरा को किशन लाल के रोल में अच्छा अवसर मिला जिसे उन्होंने पूरी तरह यूज किया।
संगीत
इस बार साजिद वाजिद का म्यूजिक कुछ कमाल नहीं दिखा पाया।
क्यों देखें
नवाजुद्दीन को एक नये रूप में देखने के लिये उनके प्रशंसको के लिये ‘फ्रीक्री अली’ एक तौहफे की तरह है।