फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ के सुप्रसिद्ध सफल निर्देशक–के. बालचन्द्र ने इस फिल्म द्वारा हिन्दी सिने दर्शकों को दो जवान, तरोताजा कलाकार दिये। कमल हासन और रति अग्निहोत्री। जो देखते ही देखते सफलता के कई मुकाम तय कर गये। और अब के०बालचन्द्र फिल्म ‘बाली उमर को सलाम’ द्वारा एक बार फिर हिन्दी सिने दर्शकों को दो नये कलाकार दे रहे हैं–रघु खोसला और तन्वी। रघु खोसला निर्माता रमेश खोसला के बेटे हैं और तन्वी है जानी मानी अभिनेत्री उषा किरण की इकलौती बेटी।
पिछले दिनों हमने, तन्वी की उसके घर पर ही मुलाकात की। बांद्रा के उस इलाके में जहाँ फिल्म इंडस्ट्री के कई जाने माने व्यक्तित्व रहते हैं उन्हीं के बीच तन्वी भी अपने माता–पिता और भाई के साथ एक खूबसूरत बंगले में पली और बड़ी हुई। उसी बंगले के हॉल में सोफे पर हम आमने सामने बैठे थे।
“फिल्मों में आने का शौक कब से हुआ? हमने पहला प्रश्न यही पूछा।
तन्वी बोलीः– फिल्मों के प्रति आकर्षण बचपन से रहा है क्योंकि मम्मी के साथ अक्सर शूटिंग पर जाया करती थी। पर बचपन में पढ़ाई की तरफ कुछ ध्यान अधिक “रहा। ज्यों ज्यों समझदार होती गयी त्यों त्यों फिल्मों के प्रति मेरा आकर्षण शौक में बदलने लगा। मम्मी–पापा की तरफ से प्रोत्साहन मिला तो मन में गाँठ भी बंध गयी कि बस हीरोइन बनना है। अब तो यही इच्छा है, यही अभिलाषा और यही महत्वकांक्षा।
‘के. बालचन्द्र जैसे सफल निर्देशक के साथ काम करने का मौका कैसे मिला? हमने पूछा।
“इस मामले में मुझे अपनी मम्मी के नाम का फायदा हुआ। मम्मी के जरिये और उन्हीं के संबंधों के आधार पर मैं फिल्मवालों के बीच आयी। मैं फिल्म ‘बाली उमर को सलाम’ के निर्माता रमेश खोसला से मिली थी जब वे हमारे घर आये थे। गुलजार साहब को मम्मी के साथ मिली थी। रमेश जी के. बालचन्द्र को घर ले आये थे। और इस तरह सबने मुझे देखा, पसंद किया और अनुबंधित कर लिया।
“चूँकि फिल्म का हीरो निर्माता का अपना बेटा है फिल्म की कहानी और अन्य मुद्दे उसी पर केन्द्रित रहेंगे ऐसा तुम्हें नहीं लगता हमारे इस प्रश्न के उत्तर में तन्वी बोलीः– आप क्यों भूल रहे हैं कि इस फिल्म के निर्देशक के. बालचन्द्र जी हैं और लेखक गुलजार जी हैं। आप उन लोगों में से नहीं हैं जो कलाकारों को प्रमोट करते हैं। मैंने भी कहानी आदि सुनकर ही फिल्म साइन की है। मुझे विश्वास है कि इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं होगा जैसी आपने शंका व्यक्त की है। ‘बाली उमर को सलाम’ एक साफ सुथरीं लवस्टोरी है जिसमें मेरा और रघु खोसला, दोनों का रोल कहानी के महत्वपूर्ण अंग है समान रूप से।
“पहली हीं फिल्म में नायक कुमार गौरव या संजय दत्त या ऐसा ही कोई जाना पहचाना नायंक होता तुम्हारे साथ तो बेहतर होता, ऐसा तुम्हें नहीं लगता ” हमने उसकी भावनाओं को टटोलना चाहा।
वह बोलीः– नहीं। बल्कि अच्छा यही हुआ है कि मैं और रघु दोनों ही नये हैं। दोनों ही एक लैवल पर होने के नांते हम दोनों में जो रैपोर्ट कायम हुआ है वह शायद किसी एस्टेब्लिश्ड या अनुभवी नायक के साथ न हो पाता। इसमें कोई शक नहीं कि मेरी पहली फिल्म का नायक कोई स्टार होता तो वह ब्रेक अच्छा ब्रेक होता। पर मैं इस शुरूआत को ज्यादा बेहतर समझती हूँ।
“जोड़ी बनाने का इरादा है?’ हमने कुछ शरारती अंदाज में पूछा। वह जी मुस्करा पड़ी। उसकी मुस्कराहट उसके व्यक्तित्व की रहस्यमय करिश्में अधिक आकर्षक पैदा कर देती है।
जोड़ी बनाने का इरादा कतई नहीं है। एक ही हीरो के साथ हमेशा काम करना नहीं चाहती। जोड़ी स््टेल हो जाती है और ऑडियन्स भी साथ साथ देखकर ऊब जाती है। ऐसा भी नहीं है कि एक के साथ काम किया तो दुबारा उस हीरो के साथ काम करूंगी ही नहीं। अलग अलग लोगों के साथ काम करना चाहती हूँ।
“अपने नायक रघु खोसला के बारे में कुछ बताओगी?! हमने पूछा।
“वह बोलीः– रघु अच्छा लड़का है। ही ‘इज ए स्वीट ब्वॉय’।
“लव स्टोरी में एक साथ काम करते हुए ही जिस तरह कमार गौरव और विजयेता में प्यार हो गया था ऐसे हीं तुम्हारा और रघु…….?
हमारे वाक्य को बीच से ही काटते हुए वह बड़े तपाक से बोली— नो अफेयर्स फॉर मी। इंडस्ट्री में काम करने आयी हूँ। हार्ड वर्क करके अपने आपको प्रुव करने आयी हूँ आजु बाजू के लफड़े–नहीं–चाहिए। इसी के साथ, इंटरव्यू खत्म करते हुए हमने तन्वी से कहा–अपनी तरफ से पाठकों को कुछ कहना चाहती हो?
“हाँ, एक खास बात कि मैं चूँकि श्रीमती, उषा किरण की बेटी हूँ लोग मेरे नाम के पीछे भी किरण लगा देते हैं। मैं सिर्फ तन्वी हूँ