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औरतों के लिए आवाज उठाना आज भी जरूरी है, लेकिन साहिर साहब कहाँ है...

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By Mayapuri Desk
औरतों के लिए आवाज उठाना आज भी जरूरी है, लेकिन साहिर साहब कहाँ है...
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अगर मैं प्रधान मंत्री होता, तो मैं 8 मार्च को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करता, क्योंकि इस दिन जीवन और प्रेम के सबसे बड़े कवि साहिर लुधियानवी का सौवां जन्मदिन था! मैंने ‘परछाइयाँ’ को रेनवैट और पैंटे किया होता, जिस घर को उन्होंने बनाया और उसमे काम किया था और अंत में मर गए थे, ईश्वर द्वारा उन्हें मुझसे छीन लेने के लिए मैं भगवान को कभी माफ नहीं करूंगा क्योंकि साहिर जी जो उन सभी चीजों के प्रतीक थे जो जीवन और प्रेम में सर्वश्रेष्ठ थी, उनकी मृत्यु केवल 56 वर्ष की उम्र में हो गई थी जो कि उनके जैसे कवि के लिए बहुत कम उम्र थी!
-औरतों के लिए आवाज उठाना आज भी जरूरी है, लेकिन साहिर साहब कहाँ है...

साहिर के रूप में मुझे क्या याद है? क्या मैं उन्हें एक ज्वलंत कवि के रूप में याद करता हूँ, जिसका बचपन बहुत ही अशांत बीता था और उसे अपनी माँ के साथ लाहौर भागना पड़ा था, जिनके लिए उनकी माँ उनका सब कुछ थी। क्या मैं उन्हें एक ऐसे कवि के रूप में याद करता हूं जिसने भारत के बारे में कुछ सबसे यादगार गीत लिखे और भारत के लिए उनका प्यार अमूल्य था? क्या मैं उन्हें आम आदमी, मजदूर और किसान के कवि के रूप में याद करता हूँ? क्या मैं उन्हें सबसे बड़े प्रेमी के रूप में याद करता हूं जिसने हमें प्यार के बारे में ऐसा सबक दिया हैं जो भगवान भी हमें नहीं सिखा सकते थे? क्या मैं उन्हें उस कवि के रूप में याद करता हूँ जिसका दिल महिलाओं के लिए और उनकी उन सारी समस्याओं के लिए है जो उन्हें आदमी द्वारा दी गई थी? लेकिन, मुझे साहिर को क्यों याद रखना चाहिए जो अमर हैं और जिनकी कविता आने वाले समय के लिए भी अमर है?औरतों के लिए आवाज उठाना आज भी जरूरी है, लेकिन साहिर साहब कहाँ है...

साहिर को याद करने और उनके बारे में लिखने वाले सैकड़ों लोग होने चाहिए! लेकिन मैंने वो सब लिखा है जो मैं उनके बारे में जानता हूं जिनसे मुझे व्यक्तिगत रूप से मिलने और बात करने का सौभाग्य मिला था। उनकी जन्मशताब्दी पर, मैं बस आपको, मेरे पाठकों और दुनिया को उनकी कुछ कविताओं के साथ महिलाओं के लिए अपनी आवाज बुलंद करना चाहता हूं, क्योंकि मेरा मानना है कि उन्होंने महिलाओं के बारे में जो लिखा है, वह आज भी गहरी चिंता का विषय है। उनकी कविताओं को न केवल एक सदी बल्कि सदियों और सहस्राब्दियों के अद्भुत और बिल्कुल उत्कृष्ट कवि के द्वारा भी याद रखा जाएगा। इसलिए, यहां महिलाओं की दुर्दशा का वर्णन करते हुए साहिर लिखते हैं।

यह हँसते हुए फूल जिन्हें नाज है हिन्द पर
ये हंसते हुए फूल
ये महका हुआ गुलशन
ये रंग में ओरे नूर में
डूबी हुई राहें
ये रंग में ओर नूर मेंडूबी हुई राहें
फूलों का रस पी केमचलते हुए भवरे
मैं दूं भी तो क्या दूं तुम्हेंए शोख नजरो
ले दे के मेरे पास कुछ आँसू है कुछ आहें
ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के
ये लुटते हुए कारवा जिन्दगी के
कहाँ हैं, कहाँ है, मुहाफिज खुदी के
जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं
ये पुरपेच गलियाँ, ये बदनाम बाजार
ये गुमनाम राही, ये सिक्कों की झन्कार
ये इस्मत के सौदे, ये सौदों पे तकरार
जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं
ये सदियों से बेख्वाब, सहमी सी गलियाँ
ये मसली हुई अधखिली जर्द कलियाँ
ये बिकती हुई खोखली रंग-रलियाँ
जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं
वो उजले दरीचों में पायल की छन-छन
थकी-हारी साँसों पे तबले की धन-धन
ये बेरूह कमरों में खाँसी की ठन-ठन
जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं
ये फूलों के गजरे, ये पीकों के छींटे
ये बेबाक नजरें, ये गुस्ताख फिकरे
ये ढलके बदन और ये बीमार चेहरे
जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं
यहाँ पीर भी आ चुके हैं, जवाँ भी
तनोमंद बेटे भी, अब्बा, मियाँ भी
ये बीवी भी है और बहन भी है, माँ भी
जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं
मदद चाहती है ये हौवा की बेटी
यशोदा की हमजिंस, राधा की बेटी
पैगम्बर की उम्मत, जुलयखां की बेटी
जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं
जरा मुल्क के रहबरों को बुलाओ
ये कूचे, ये गलियाँ, ये मंजर दिखाओ
जिन्हें नाज है हिन्द पर उनको लाओ
जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं

औरतों के लिए आवाज उठाना आज भी जरूरी है, लेकिन साहिर साहब कहाँ है...

और यह महिलाओं पर हो रहे अन्याय के खिलाफ साहिर की सिर्फ एक नाराजगी है। उन लोगों के खिलाफ गुस्से का उनका क्लासिक शो, जिन्होंने स्त्री को एक निम्न प्रकार की स्त्री माना, जब मनुष्य की तथाकथित सुपर मानव प्रजाति की तुलना में गीत के रूप में उनकी पहली और लोकप्रिय कविताओं में से एक आता है जो अब कल्ट साॅन्ग था, “औरतों ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया” यह ‘साधना’ फिल्म के लिए लिखा गया था, बी.आर.चोपड़ा द्वारा निर्देशित सबसे टफ हिट फिल्मों में से एक, जो साहिर और उनकी कविता को हिंदी फिल्मों के लिए स्वीकार्य बनाने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार था।

साहिर साहब, आज जितना तुम्हारी जरूरत है, पहले कभी नहीं थी, आपका और हमारा हिंदुस्तान काले बादलों से गुजर रहा है, क्या आप आ कर हमारे हिंदुस्तान को हिन्दुस्तानियों से बचा सकते है? बचा लो नहीं तो हिंदुस्तान और हम इसके बच्चे बर्बाद हो जाएगे।

अनु-छवि शर्माऔरतों के लिए आवाज उठाना आज भी जरूरी है, लेकिन साहिर साहब कहाँ है...

#Sahir Ludhianvi
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