बॉलीवुड में जो कलाकार कामयाब हो जाते हैं उनका नाम सालों साल चमकता रहता है, रिसालाओं, मैगज़ीनों में, अख़बारों और टीवी ख़बरों में गाहे-बगाहे उनके नाम के ढोल बजते रहते हैं लेकिन आप ये यकीन के साथ जानिए कि जितने नाम बॉलीवुड के बीते सौ सालों में चमके हैं, उससे कई गुना ऐसे नाम भी हैं जो अच्छा भला टैलेंट होते हुए भी धूमिल हो गये हैं।
ऐसा ही नाम म्यूजिक डायरेक्टर विजय पाटिल उर्फ़ रामलक्ष्मण का भी है। अब आप पूछेंगे कि भला एक आदमी के दो नाम क्यों हैं?
तो इसके पीछे की हक़ीकत फ़क़त इतनी है कि विजय पाटिल जी श्रीराम के बहुत बड़े भक्त थे और उनके संगीत की शुरुआत भी उनके दोस्त कम बड़े भाई सुरेन्द्र के साथ हुई थी, जो इस डुओ के राम थे। सन 1977 में इन दोनों ने फिल्म एजेंट विनोद का संगीत कम्पोज़ किया था। वो दौर ही कुछ म्यूजिक डुओ का हुआ करता था जहाँ लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल, कल्याणजी आनंदजी, शंकर जयकिशन, आदि नामी संगीतकार हुआ करते थे। शायद उन्हीं से प्रेरणा लेकर सुरेन्द्र और विजय पाटिल ने भी अपनी जोड़ी का नाम राम-लक्ष्मण कर लिया था। लेकिन दुर्भाग्य से इस फिल्म की रिलीज़ से पहले ही सुरेन्द्र जी की आकस्मिक मृत्यु हो गयी।
विजय पाटिल जी ने फिर भी, अपनी म्यूजिक कम्पनी का नाम रामलक्ष्मण ही रखा और आने वाले दिनों में कई बी ग्रेड फिल्मों में संगीत दिया। इन दोनों की शुरुआत की बात करूँ तो मराठी फिल्मकार दादा कोंडके ने इन्हें पहली बार फिल्म पांडू हवलदार के लिए सन 1975 में पहला चांस दिया था। एजेंट विनोद इनकी पहली हिन्दी फिल्म थी।
इसके बाद मिथुन और अमजद खान की फिल्म ‘हमसे बढ़कर कौन’ (1981) में रामलक्ष्मण जी के म्यूजिक की काफी सराहना हुई। ये वो दौर था जब लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल और आरडी बर्मन संगीत उद्योग में राज कर रहे थे। उसी दौर में रामलक्ष्मण बॉलीवुड की बी और सी ग्रेट फिल्मों के साथ-साथ मराठी सिनेमा में भी अपना म्यूजिक दे रहे थे।
“देवा हो देवा गणपति देवा, स्वामी तुमसे बढ़कर कौन” उन्हीं की कम्पोजीशन थी।
आइन्दा दिनों में फिल्म हम से है ज़माना, आगे की सोच, वो जो हसीना, आख़िरी बाज़ी आदि फिल्मों में इनके संगीत को सराहा तो गया, पर काम कम ही मिलता रहा।
ताराचंद बड़जात्या जी रामलक्ष्मण के संगीत हुनर पर बहुत भरोसा करते थे, उन्होंने अपने बेटे सूरज और मशहूर राइटर सलीम खान के बेटे सलमान खान को लॉन्च करने के लिए फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ बनाई और उसमें रामलक्ष्मणजी का म्यूजिक सुना। बाकी आप जानते ही हैं कि इस फिल्म के गाने कितने पॉपुलर हुए और साथ ही सलमान खान को पहली म्यूजिकल ब्लॉकबस्टर भी मिली।
“आजा शाम होने आई”, “कबूतर जा-जा-जा” और सबसे मशहूर “दिल दीवाना, बिन सजना के, माने ना” आज भी लोकप्रिय गीतों में शुमार होते हैं।
यहीं से सलमान खान के लिए एसपी बालासुब्रमण्यम की आवाज़ फिक्स हो गयी। फिर जावेद अख्तर से अलग होने के बाद सलीम खान ने अकेले भी कुछ फ़िल्में बनाई, उनमें से एक ‘पत्थर के फूल’ फिल्म तो ठीक ठाक रही लेकिन उसके गाने बहुत लोकप्रिय हुए।
“कभी तू छलिया लगता है, कभी तू जोकर लगता है” में सलमान खान ने राज कपूर साहब के एक से बढ़कर एक गेटअप लिए थे और ये गाना बहुत पॉपुलर हुआ था।
इन दोनों फिल्मों की कैसेट सेल के आंकड़े जानें तो आप हैरान हो जायेंगे कि पत्थर के फूल के कैसेट्स 25 लाख से ज़्यादा और मैंने प्यार किया के कैसेट 1 करोड़ से भी ज़्यादा बिके थे।
इसके बाद माधुरी दीक्षित की फेमस थ्रिलर फिल्म '100 डेज़' का म्यूजिक भी इन्होने ही दिया था।
सूरज बड़जात्या ने अपनी सबसे बड़ी फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ (1994) में भी रामलक्ष्मण जी का संगीत ही चुना था और इसके कैसेट्स की सेल एक करोड़ बीस लाख से भी ज़्यादा थी। इस फिल्म के लिए रामलक्ष्मण फिल्मफेयर में नोमिनेट भी हुए थे।
इसका टाइटल ट्रैक ‘हम आपके हैं कौन’, ‘दीदी तेरा देवर दीवाना’ और ‘जूते दो पैसे लो’ की पॉपुलैरिटी का कोई जवाब आज भी नहीं है।
इसके बाद फिल्म सूरज ने इन्हें अपनी अगली फिल्म ‘हम साथ साथ हैं’ के लिए तीसरी बार रामलक्ष्मण को चुना था और इस फिल्म के गाने भी हिट हुए थे लेकिन इस बार रामलक्ष्मण पर संगीत चोरी करने का आरोप लग गया था। ख़ासकर गीत ‘ए बी सी डी’ को सरासर एक स्पेनिश गीत से उठाने का दावा किया गया था।
और संगीत जगत में भी शायद ये रामलक्ष्मण द्वारा कम्पोज़ की आख़िरी बड़ी फिल्म थी, इसके बाद सूरज बड़जात्या ने 2006 में विवाह ज़रूर बनाई लेकिन उसमें संगीत रविन्द्र जैन का था।
रामलक्ष्मण ने कुछ समय मराठी फिल्मों में संगीत दिया लेकिन फिर वहाँ से भी उनका नाम धीरे-धीरे गायब होता और इसी साल 22 मई 2021 को 78 साल की उम्र में विजय पाटिल जी की मृत्यु हो गयी और उनके साथ ही रामलक्ष्मण संगीतकार का नाम हमेशा के लिए विदा हो गया।
आज विजय पाटिल जी का जन्मदिवस है। हमारी ओर से उनकी दिवगंत आत्मा को कोटि कोटि नमन व श्रद्धांजली
- सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’