आज मशहूर पटकथा लेखक, गीतकार और बेहतरीन शख्सियत गुलज़ार का जन्मदिन है तो बात भी उन्हीं की चलनी चाहिए। आप गौर करिए कि मैंने सिर्फ गीतकार लिखा है, फिल्मकार नहीं, क्योंकि ये किस्सा उनके फिल्ममेकर बनने का सफ़र बताता है।
सन 1963 में बिमल रॉय के साथ बंदिनी, काबुली वाला आदि फिल्मों में काम करने के बाद जब बिमल दा गुज़र गये तो गुलज़ार हृषिकेश मुखर्जी और नोबेंदु घोष के साथ भी काम करने लगे थे। उसी समय, 1968 में तपन सिन्हा ने बांग्ला में ‘आपनजान’ नाम से एक फिल्म बनाई जो बहुत हिट हुई। तपन दा इस फिल्म को हिन्दी में भी बनाना चाहते थे। उन्होंने मशहूर फिल्म प्रोड्यूसर एनसी सिप्पी से बात भी की पर तपन दा अड़ गये कि हिन्दी फिल्म में भी कास्ट आपनजान वाली ही होगी। गुलज़ार को उस फिल्म की स्क्रिप्ट हिन्दी में लिखने का काम दिया गया। इस फिल्म की कहानी इन्दर सिन्हा ने लिखी थी। तपन सिन्हा के अड़ने की वजह से हिन्दी में आपनजान बनाने का आईडिया ड्राप हो गया।
गुलज़ार को ये कहानी पसंद आई, उन्होंने स्क्रीनप्ले के राइट्स ख़रीद लिए। हृषिकेश मुखर्जी और बाकी साथी लेखकों ने भी इनकरेज किया कि वह इस फिल्म को डायरेक्ट करें।
गुलज़ार ने एनसी सिप्पी से बात करनी चाही पर पता चला कि वह तो बहुत बिज़ी हैं। सिप्पी जी ने गुलज़ार साहब से दो टूक पूछा “स्क्रिप्ट रेडी है?”
गुलज़ार साहब बताया बिल्कुल, बल्कि हिन्दी फिल्म के हिसाब से स्क्रिप में जो चेंजेस ज़रूरी थे वो भी कर लिए हैं। एनसी सिप्पी फिर बोले “ठीक है, सुबह मिल सकते हो?”
हो सकता है ये सिप्पी साहब की तरफ से कोई टेस्ट हो पर वो शायद जानते नहीं थे कि गुलज़ार की दिनचर्या में सुबह 4 बजे उठना सबसे पहले आता था। वह पहुँच गये सुबह 5 बजे एनसी सिप्पी के घर। सिप्पी साहब के घर में ही एक दफ्तर बना हुआ था। जब स्क्रीनप्ले पर बात हुई तो सिप्पी साहब को बदलाव बहुत अच्छे लगे। फिल्म फाइनल हो गयी।
अब गुलज़ार के सामने एक और मुश्किल आन खड़ी हुई। फिल्म में बूढ़ी नानी के रोल के लिए उनकी नज़र में मीना कुमारी से बेहतर कोई नहीं हो सकता था लेकिन मीना उन दिनों बहुत बीमार चल रही थीं। अब ऐसे में उनसे काम के लिए कैसे कहा जाए। आख़िर वो उनकी दोस्त भी थीं।
पर जैसे हर दोस्त अपने दोस्त की बात समझ जाता है, वैसे ही मीना भी गुलज़ार के दिल की बात समझ गयीं और बहुत बीमार होते हुए भी उन्होंने शूटिंग करना कबूल किया।
गुलज़ार ने बाकी कास्ट जिनमें विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, डैनी डेन्जोंगपा, पेंटल, असरानी, आदि के संग मात्र 40 दिन में फिल्म ख़त्म कर दी थी।
फिल्म रिलीज़ हुई तो क्या क्रिटिक और क्या पब्लिक, सबको ये फिल्म बहुत पसंद आई और गुलज़ार एक फिल्मकार के रूप में तैयार हो गये। आने वाले दिनों में, कोशिश, परिचय, आंधी, मौसम, किनारा आदि एक से बढ़कर एक फिल्में गुलज़ार साहब ने बनाई और चौतरफा तारीफें बटोरीं।
-सिद्धार्थ अरोड़ा ‘सहर’