-शरद राय
'द कश्मीर फाइल्स' के लिए चर्चा और परिचर्चा का दौर शुरू है। कोई इस फिल्म को लेकर कह रहा है कि फिल्म एक दबे सत्य को बाहर लाने की कोशिश है तो कोई साम्प्रदायिक कहकर इसकी आलोचना कर रहा है। लेकिन, सबसे बड़ा सच यह है कि इस फिल्म को लेकर बात हर कोई कर रहा है। हर कोई फिल्म देखना चाहता है। फिल्म की कामयाबी का ग्रॉफ देखकर बड़े बड़े सिनेमा- कारोबारियों के कान खड़े हो गए हैं। हालात यह है कि लंबे समय से बंद पड़े सिनेमा घरों की तरफ जो दर्शक जाना तक भूल चुके थे, अब उन थियेटरों के बाहर लम्बी लम्बी कतारें दिखाई दे रही हैं।सिनेमा बाजार में 'द कश्मीर फाइल्स' की जय जयकार है और फिल्म की संवेदनशीलता पर देश भर में बहस छिड़ी है! मजे की बात है कि इस बहस में प्रधान मंत्री, गृह मंत्री और राज्यों के मुख्य मंत्रियों सहित बड़े बड़े सितारों और फिल्मकारों के नाम शामिल हो गए हैं।यहां तक की प्रदेश की सरकारें जो किसी फिल्म को 'टैक्स फ्री' देने में हमेशा आनाकानी किया करती थी, वे 'द कश्मीर फाइल्स'को टैक्स फ्री करने मे संकोच नहीं कर रही हैं।
और हो भी क्यों न, फिल्म की पसंदगी और बिजनेस में जो दिनोदिन बढ़ोत्तरी है वह इसे 'बाहुबली' जैसी कामयाबी की ओर लिए जा रही है। 18 करोड़ की लागत में बनी इस फिल्म की कमाई देखिए।पहले दिन ही फिल्म ने 3.55 करोड़ कमाया, दूसरे दिन की कमाई 8.55 करोड़ को छुई तो सात दिन में यह फिल्म 100 करोड़ क्लब में पहुंच गई। 11वें-12 वें दिन में 180 करोड़ के पास जिस फ़िल्म का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन हो जाए वो फिल्म दो हफ्ते में 200 करोड़ के कामाई क्लब में शामिल होगी, सहज ही समझा जा सकता है। यह दो सौ करोड़ी क्लब वाली फिल्में बॉलीवुड में कम संख्या में ही हैं। शुरुवात में सिर्फ 650 सिनेमा घरों में इस फिल्म को लगाया गया था आज दो हज़ार से अधिक सिनेमा घरों में एक्स्ट्रा शो लगाकर चलाया जा रहा है। फिल्म में ना कोई अमिताभ हैं, शाहरुख हैं, सलमान हैं,अक्षय कुमार या अजय देवगन हैं और ना ही साउथ के प्रभाष हीरो हैं। अनुपम खेर, मिथुन चक्रोबोरती, पल्लवी जोशी और दर्शन कुमार की भूमिका वाली इस संवेदनशील फ़िल्म में एक खास पीरियड का सच दिखाया गया है जिसके लिए हमारे प्रधान मंत्री तक ने कहा है कि ऐसी फिल्मों का निर्माण किया जाना चाहिए।
हाल फिलहाल तो हम यही कहेंगे कि 'द कश्मीर फाइल्स' ने सिनेमा घरों को नया आगाज़ दिया है।कोविड के लोकबन्दी के बाद से जो दर्शक थियएटर नही जा रहे थे, वे पुराने मनोरंजन द्वार पर लौट पड़े हैं। 'गंगु बाई काठियावाडी' ने दर्शकों को टाकीज लौटने का रास्ता दिखाया था, तो 'द कश्मीर फाइल्स' ने निर्माताओं में तिजोरी भरने की उम्मीद जगाया है।सचमुच भारतीय सिनेमा घरों को ज़रूरत है आज और भी ऐसी फिल्मों की जो 'द कश्मीर फाइल्स'की तरह दर्शकों को अपनी ओर खींचे!