-शरद राय
पूरा पखवारा भी नही गुजरा की बॉलीवुड के क्षितिज पर तीन तीन मौतों ने हर किसी को द्रवित कर दिया है। पहले स्वर कोकिला लताजी गयी फिर निर्माता-निर्देशक रवि टंडन और अब बप्पी दा! बप्पी लहरी एक धारा थे बॉलीवुड संगीत की दुनिया मे।
जब 70-80 के दशक में एक्शन और पारिवारिक कथानक की फिल्मों के संगीत के बीच मेकिंग का द्वंद मचा था, बप्पी लहरी संगीत की एक नई थिरकन के साथ सामने आए, थिरकन की वो धारा थी- डिस्को की। तब बप्पी के सिंथेसाइज़ और डिस्को संगीत की इस नई धड़कन के साथ जन मानस थिरक पड़ा - 'आई एम डिस्को डांसर...!'
लोकेश लहरी यानी- बप्पी दा अब जब हमारे बीच नहीं हैं, उनकी फिल्मों के नाम और गीतों की लंबी फेहरिश्त सामने खुली सी लग रही है। सृजन ही किसी कलाकार की स्मृति होती है। लेकिन, इस पल उनके ढेरों गीतों में याद आ रहा है- 'चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा ना कहना..!' और, 'अलविदा ना कहना' का संदेश देने वाला खुद ही अलविदा कह गया है।
बप्पी दा की फिल्में ('डिस्को डांसर', 'नमक हलाल', 'शराबी' , 'नौकर बीवी का', 'बेवफाई:, 'सुराग', 'साहेब' आदि) उनके क्रिएशन की गवाह हैं। फिल्म के अलावा भी उनका एक नहुमुखी व्यक्तित्व था। वह सिंगर भी थे, कम्पोज़र भी थे और श्रोता भी थे। जबतक अपने रेकॉर्ड किये गाने अपने वॉचमैन, रसोईया, धोबी और स्त्री वाले को नही सुना देते थे,अपने को अधूरा मानते थे।
अपना उनका एक सामाजिक दायरा भी था जो प्रोफेशन से अलग उनको सुकून देता था। वह 2014 के राष्ट्रीय चुनाव में अपनी इसी सोच के चलते वेस्ट बंगाल के श्रीरामपुर से लोक सभा का चुनाव भी लड़े थे। चुनाव हार भी गए थे। बप्पी के लिए हारजीत से बड़ा काम था काम मे लग जाना।
बप्पी की बहुत सी खासियतों में एक जो सबसे उल्लेखनीय है वो है उनका सोने (Gold) से लदा रहना जो उनको एक अलग छवि देती थी। मिथुन चक्रबोर्ति को डिस्को हीरो की छवि बप्पी ने अपने गानों से दिया था तो उनकी खुद की गोल्डन छवि उनकी मां ने दिया था। वह बंगाली कलाकारों को दिल से स्वागत देते थे और चाहते थे कि लोग अपनी भाषा का सम्मान करें।कुछ बंगला फिल्मों ('अमर संगी', 'आशा वो भलो बाशा', 'अमर तुमी' आदि) में भी वह संगीत दिए थे।
स्टेज पर बप्पी दा का मुकाबला नहीं था। आज जब पूरा बॉलीवुड बप्पी दा को स्मरण कर रहा है, 'मायापुरी परिवार' इतने सालों के इस संगीत साथी को नमन करते श्रद्धा सुमन अर्पित करता है-' 'दिल मे हो तुम....!'