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‘मैं चाटुकारिता और अवसर वादिता की राजनीति करने के लिए सियासत में नहीं आया था- शत्रुघ्न सिन्हा

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By Sharad Rai
‘मैं चाटुकारिता और अवसर वादिता की राजनीति करने के लिए सियासत में नहीं आया था- शत्रुघ्न सिन्हा
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अब तस्वीर क्लियर हो चुकी है। राजनीति में ‘बीजेपी’ से जुड़े रहकर जिस घुटन में शत्रुघ्न सिन्हा कुछ समय से जी रहे थे, उसके मुखोटे से वह मुक्त हो गये हैं। अब वह कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं और अपनी पुरानी संसदीय सीट पटना साहिब से प्रत्याशी हैं। उनके राजनैतिक जीवन में आये परिवर्तनों पर चर्चा होती है तो वह बड़ी तसल्ली की सांस लेते हुए कहते हैं-

 ‘अब सब कुछ ठीक हो गया है! मैंने जब राजनैतिक जीवन में उतरने का फैसला किया था। मुझ पर जयप्रकाश नारायण की सोच हावी थी। मैं जेपी के आदर्शों का मुरीद था और आज भी हूं। बहुत से नेता उस समय जेपी से आंदोलित होकर राजनीति में उतरे थे, मैं भी उनमें एक था। आज दूसरे बदल गये हैं, मैं उसी सिद्धांत पर जिन्दा हूं। बेशक मैं जेपी के आंदोलन का हिस्सा था पर तब मैं फिल्मों में एक्टर बनने आ गया था किन्तु उसके प्रभाव से अलग नहीं हो पाया था।  सन 1984 में जब राजनीति में आया, यह ठानकर आया था कि घटिया राजनीति नहीं करना है, लोगों की भलाई करना है। मुझे लगता है एक अंतराल के बाद आज फिर मैं उसी सोच से आगे बढ़ने की ओर अग्रसर हुआ हूं।’

फिर ‘कांग्रेस’ के साथ ही क्यों ?

- कांग्रेस पार्टी ही ‘ट्रू सेन्स’ में आज नेशनल पार्टी है। लालू यादव जी, जो हमारे पारिवारिक मित्र हैं, उनकी भी यही सलाह थी कि मुझे कदम उठाना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और ‘आप’ के. कन्वेनर श्री अरविन्द केजरीवाल सब चाहते थे, मैं उनके साथ जुड़ जाऊं। लेकिन, मेरा मानना था कि चुनाव मैं अपने चहेते वोटरों के साथ पटना साहिब से ही लड़ूंगा।’‘मैं चाटुकारिता और अवसर वादिता की राजनीति करने के लिए सियासत में नहीं आया था- शत्रुघ्न सिन्हा

‘भारतीय जनता पार्टी’ को छोड़ने का दुख भी हुआ है?

- जाहिर है जिसके साथ इतना लम्बा एसोसिएशन रहा हो उससे अलग होना अच्छा तो नहीं लगेगा। लेकिन वहां की स्थिति ऐसी हो गई थी जिनके साथ जुड़े...रहना कष्टकर था जिस पार्टी को अपने वरिष्ठतम नेताओं का सम्मान करना ना आये... सर्वश्री एल.के. आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अरूण शौरी, यशवंत सिन्हा ये सभी इस पार्टी के लिए मायने खो चुके थे। अटल जी (अटल बिहारी वाजपेयी) के समय एक कलेक्टिव डिसिजन होता था। तब वहां सच्चे मायने में डेमोक्रेसी थी। सबके मन में एक दूसरे के लिए सम्मान था । लेकिन, अब एक आदमी के गिर्द पूरी पार्टी घिर गई है ‘वन मैन शो’ और ‘ट्रू मैन आर्मी’ की  पार्टी बनकर बीजेपी रह गई। अब वहां किसी के लिए जगह नहीं है!

अब जो वहां हैं चापलूसी करके रहेंगे तभी वे खुशहाल रह सकते हैं। जी हजूरी की राजनीति करने वालों के लिए ही वहां जगह है। मैं विचारों की राजनीति करने वाला बन्दा हूं, समझौते के साथ नहीं जी सकता। मेरे अलग रहने या अब अलग हो जाने की असली वजह यही है।’

लोग समझते हैं कि पार्टी ने आपको पद नहीं दिया, इस बात से नाराज होकर आप वक्तव्य दिया करते थे?

- यह फिजूल की बात है। मुझे पद का मोह कभी नहीं था। अटलजी की सरकार में मैं दो बार मंत्री रहा। स्वास्थ और जहाजरानी जैसे महत्व के मंत्रालय में मेरे काम की सराहना खुद अटलजी कई बार किए थे। दरअसल मुझे कोई दिक्कत नहीं थी। न मैंने पद मांगा था ना टिकट मांगा था। विचार मेल नहीं खा रहे थे। कभी वहां सबकी सुनी जाती थी। पार्टी के दो योद्धा थे अटल जी और आडवाणी जी। विचारों के मंथन के बाद काम होता था। फिर पार्टी में दो लोगों का घुसना हुआ और वे पूरी पार्टी पर कब्जा कर लिये। जो उनके खिलाफ बोले, उनका दुश्मन। मैंने आडवाणी जी के लिए आवाज उठाई, उनको खटक गया। मैंने समय समय पर विरोध किया उनकी गलत नीतियों का और उनको खटकता रहा। यही वजह थी कि वे मेरी सोच से अलग होते गये और मुझे उनसे अलग होने का निर्णय लेना पड़ा।

‘मैं चाटुकारिता और अवसर वादिता की राजनीति करने के लिए सियासत में नहीं आया था- शत्रुघ्न सिन्हा

कांग्रेस में आकर राहुल गांधी की नीतियों से संतुष्ट हैं?

- अगर संतुष्ट नहीं होता तो आता क्यों? कांग्रेस पार्टी में ही सही अर्थों में लोकतंत्र बचा है। यही पार्टी सही अर्थों में देश को आगे ले जाने में सक्षम है। और जो झूठ का गुब्बारा फैलाने वाले लोग हैं उनकी तो ऐसी हवा निकलेगी कि पूछिये मत। आज देश का सभी समझदार और प्रबुद्ध वर्ग समझ चुका है कि किसके हाथ में सरकार की कमान होनी चाहिए। इसलिए लोगों को चाहिए कि छलावे करने वालों से बचें और समझकर ‘वोट’ करें। राहुल गांधी देश की नई आवाज बनकर उभरे हैं। उनका साहस, मेहनत, धैर्य देखिये, वे ही देश को नई दिशा दे सकते हैं। मेरा पूरा भरोसा कांग्रेस पार्टी की नीतियों पर है।’

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