Aarti Mishra
इस लाॅकडाउन में दुनिया मानो रुक सी गई थी...शहर मानो थम से गए थे... राहें मानो लावारिस हो गई थी...लेकिन एक चीज़ है जिसने रुकना नहीं सीखा...जिसके आगे ये महामारी भी दम तोड़ गई...क्या है वो जानना चाहेंगे आप...कलम... जी हां कलम...
जिसने लोगों के विचारों को मरने नहीं दिया...
जिसने उनके रचनात्मक दिल और दिमाग की रफ्तार को कम ना होने दिया...
एक कलम ही है जिसने ऐसे बेजान वक्त में भी जान डाल दी..
एक व्यवसायी को भी कवि बना दिया...
तो एक पत्थर दिल को भी कलाकार बना दिया...
तो कलम का कमाल मेरी ही जुबानी कुछ यूं है...
अपनी जुबान कहती है ये...
सोच को अल्फाज़ों की शक्ल देती है ये,
लोगों की कहानियों को नीलाम करती है ये
आशिकों की मोहब्बत की गवाह बनती है ये,
दिल में छिपे दर्दों का दीदार करती है ये,
गूंगे को आवाज़ देने का दम रखती है ये,
गुज़रे हुए कल को आज का आईना दिखाती है ये
तेरी गहरी खामोशियों में हमराज़ बनती है ये,
दिल से निकले जज्बातों से इंसाफ करती है ये,
इससे खिलवाड़ करने की कोशिश भी ना करना मेरे दोस्त,
क्योंकि याद रखना...
कटघरे में खड़े बन्दे की मौत से खेलने का हुनर भी रखती है ये...