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हैप्पी बर्थडे: सपनों के सौदागर, द ग्रेट शो मैन सुभाष घई

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By Sulena Majumdar Arora
हैप्पी बर्थडे: सपनों के सौदागर, द ग्रेट शो मैन सुभाष घई
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शो मैन सुभाष घई वो शख्स है जिन्होंने अपनी किस्मत की रेखाएं खुद अपने माथे पर बनाई है। उन्होंने अपने जीवन और संघर्ष में सफलता की जो मिसाल कायम की है वो उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो आसमान की ऊंचाई छूने के लिए उड़ान भरने को तैयार हैं। बचपन से ही उन्हें नाटक में काम करना, नाटक तैयार करना, स्क्रिप्ट लिखना, गीत लिखना, म्युज़िक कंपोज करना बहुत भाता था। कॉलेज तक पहुंचते-पहुंचते यह प्रतिभा एक शौक बन गया। पिता चाहते थे वे चार्टेड अकाउन्टेट बने लेकिन उनका मन तो फिल्म और कला जगत में बसता था और अपनी जिद मे वे कामयाब भी हो गए। सिनेमा जगत के नए पटाक्षेप में, मनमोहन देसाई प्रकाश मेहरा की कड़ी में जिस फिल्मकार को नए युग के शोमैन का नाम दिया गया है वो सुभाष घई ही है। आइए सुभाष घई के बर्थडे के मौके पर उनके दिलचस्प जीवनी तथा फिल्मों की झलकियां मेरे साथ-साथ आप भी देखें

सुभाष घई का जन्म 24 जनवरी 1945 को नागपुर (सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार ब्रिटिश इंडिया, अब महाराष्ट्र) के  एक सुशिक्षित पंजाबी परिवार में हुआ। पिता डेंटिस्ट थे, अपने प्रोफेशन के चलते, वे परिवार सहित दिल्ली में बस गए। सुभाष घई ने अपनी आरंभिक शिक्षा हायर सेकेंडरी तक, दिल्ली में पूरी की फिर रोहतक हरियाणा से उन्होंन स्नातक कीे डिग्री हासिल किया। पिता चाहते थे वे चार्टर्ड अकाउंटेंसी की पढ़ाई करें लेकिन सुभाष घई का दिल तो कला जगत में धूम मचाने के लिए तड़प रहा था।  उन्होंने अपने मन की बात अपने पिता से कही तो पहले वे चौंक गए फिर बाद में उन्होंने सुभाष को यह कहते हुए इजाजत दे दी कि अगर कला और फिल्म जगत में आगे बढ़ना है तो इस दिशा में सही प्रशिक्षण प्राप्त करना पड़ेगा। बस फिर क्या था, सुभाष घई ने 1963 में पुणे महाराष्ट्र के 'फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया' ज्वाइन कर ली और फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने के लिए सारे जरूरी कलाओं में  निपुण हो गए। जब उन्होंने मुंबई में कदम रखा तो उन्हें समझ में आया कि प्रशिक्षण के सारे पायदान पूर्ण करने के बावजूद यहां सबके लिए संघर्ष के पहाड़ पार करना अनिवार्य है, सफलता उन्हें कंटीली राहों और असफलता के बुरे दिन तय करने के पश्चात ही मिल सकती है। इसी संघर्ष, दर्द, तकलीफ में उलझकर कितनी ही प्रतिभाएं वापस घर लौट जाती है या फिर बुरे संगत, बुरे माहौल में फंसकर हमेशा हमेशा के लिए मिट जाते हैं, खो जाते हैं, लुट जाते है, मर जाते हैं, गुम हो जाते हैं और गुमराह हो जाते हैं। सुभाष घई प्रतिभावान थे, प्रशिक्षित थे और सबसे बड़ी बात यह है कि वे कर्मठ, दिलेर और जुझारू थे। उन्होंने फिल्मों में अपने करियर शुरू करने के लिए पहले एक्टिंग करना शुरू किया, भले ही शुरुआत मे उन्हें छोटे मोटे रोल मिले पर उन्होंने उसे स्वीकारा। सुभाष घई ने फिल्म तकदीर, आराधना, दो बच्चे दस हाथ, ग्रहण, धमकी, नाटक, में छोटी भूमिकाएं की फिर उन्हें फिल्म 'गुमराह', 'भारत के शहीद' उमंग जैसी फिल्मों में लीड रोल मिला ( सन् 70 से 75 के बीच) लेकिन वे निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखना चाहते थे। पहली बार बी बी भल्ला कृत फिल्म 'खान दोस्त' में उन्होंने सहायक निदेशक के तौर पर हाथ आजमाया। आत्मविश्वास का इजाफा हुआ तो खुद एक फिल्म निर्देशित करने की ठान ली और उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा को लीड में लेकर फिल्म 'कालीचरण' (1976) का निर्देशन किया। हालांकि वह दौर कई बड़े सुपरस्टार जैसे राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, जितेंद्र, विनोद खन्ना का था लेकिन उनका यह चुनाव सही साबित हुआ, कालीचरण सुपर डुपर हिट हो गई, उसके बाद 1978 में उन्होंने फिल्म 'विश्वनाथ' तथा 1980 में 'गौतम गोविंदा' का निर्देशन किया। 1980 के दशक के साथ सुभाष घई की मेहनत तथा किस्मत और रंग ले आई और सफलता उनके दरवाजे पर हाथ बाँधे खड़ी हो गई।

नए कलाकारों के बने मसीहा

1980 में ही उन्होंने पुणे की एक लड़की रिहाना  (मुक्ता घई) से विवाह कर लिया। वे जो भी फिल्म निर्देशित करते गए सब लगातार हिट और सुपर हिट होती चली गई जैसे 1980 में फिल्म 'कर्ज', 1981 में फिल्म 'क्रोधी', 1982 में 'विधाता'। वर्ष 1982 में उन्होंने अपना स्वतंत्र प्रोडक्शन बैनर मुक्ता आर्ट्स की स्थापना की, फिर उन्होंने एक संघर्षरत एक्टर मॉडल, जैकी श्रॉफ तथा मीनाक्षी शेषाद्रि को लेकर नए जमाने की रोमांटिक फिल्म 'हीरो' (1983) का निर्देशन किया जो सुपर डुपर हिट हो गई।  वे अब नये कलाकारों को मौका देने वाले मसीहा के रूप में जाने जाने लगे। उन्होंने 1985 में उभरते कलाकार अनिल कपूर को लेकर फिल्म 'मेरी जंग' निर्देशित की, 1986 में 'कर्मा', उसके बाद 'राम लखन' 1989, 'सौदागर' 1991 (नवोदित मनिषा कोईराला को लेकर)  तथा 'खलनायक' 1993 फिल्में निर्देशित करके वे बॉलीवुड के सफलतम चोटी के निर्देशक के रूप में स्थापित हो गए।  1995 में फिल्म 'त्रिमूर्ति' जैसी सफलतम फिल्म प्रोड्यूज़ करके उन्होंने बॉलीवुड को चमत्कृत कर दिया। अब सुभाष घई को नए जमाने का शोमैन कहा जाने लगा।

1997 में उन्होंने शाहरुख खान तथा नई अभिनेत्री महिमा चौधरी को लीड पर लेकर फिल्म 'परदेस' का निर्देशन किया, 1999 में अनिल कपूर, ऐश्वर्या राय, अक्षय खन्ना को लेकर उन्होंने फिल्म 'ताल' का निर्देशन किया जिसे इंटरनेशनल, वर्ल्ड वाइड रिलीज किया गया, यह फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट फिल्में साबित हुई। लेकिन वक्त सबका हमेशा एक सा नहीं रहता, उसे तो बदलना ही था, उनकी अगली दो फिल्में 'यादें' (2001), तथा 'किसना' (2005) नहीं चली। अब सुभाष घई थोड़ा ठहर गए और उन्होंने निर्देशन क्षेत्र से कुछ समय के लिए अपने को दूर कर लिया, इस दौरान उन्होंने फिल्म ' एतराज' (2004) 'इकबाल' (2005), '36 चाइना टाउन' (2006) तथा 'अपना सपना मनी मनी' (2008 ) का निर्माण किया जो नरम-गरम चली, अब उन्होंने फीचर फिल्मों    की तरफ से अपना ध्यान हटा कर एक नए क्षेत्र में कदम रखने का निर्णय किया। 2006 में सुभाष घई ने अपनी खुद की फिल्म इंस्टीट्यूट 'व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल' की स्थापना मुंबई में की जो 2008 मे पब्लिक कंपनी के तौर पर मशहूर हो गई।

इस फिल्म प्रशिक्षण इंस्टिटयूट में, फिल्म प्रोडक्शन, फिल्म डायरेक्शन, फिल्म एक्टिंग, फिल्म सिनेमाटोग्राफी, फिल्म एनिमेशन तथा फिल्म मेकिंग के सारे जरूरी प्रशिक्षण दिए जाते हैं। कुछ समय का ब्रेक लेकर 2008 में उन्होंने दो फिल्में 'ब्लैक एंड वाइट' तथा 'युवराज' का फिर से निर्देशन किया लेकिन यह फिल्में भी नहीं चली। कुछ और वर्षों का ब्रेक लेकर 2014 में उन्होंने फिल्म 'कांची' का निर्देशन किया जिसमें उन्होंने म्यूजिक भी दिया लेकिन अब जमाना शायद बदलने लगा था। जिस किस्म की फिल्मों का दौर आ गया था, उससे सुभाष घई जैसे संवेदनशील, क्रिएटिव महान शो मैन निर्देशक का दिल उचटना स्वाभाविक था। वे ठहर गए। वैसे बीच-बीच में वे फिल्में प्रोड्यूस करते रहें जैसी 'एक और एक ग्यारह', 'जॉगर्स पार्क', 'सम्हिता', 'डबल ट्रबल', 'हीरो'(2015 वाला) वगैरा। एक बार फिर से डायरेक्शन करने के लिए शायद वे सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं, फिलहाल के लिए सुभाष घई अपने विश्व तौर पर बेहद चर्चित, बेहद लोकप्रिय और बेहद सफल फिल्म इंस्टिट्यूट 'द व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल' की जिम्मेदारी को तन मन धन से संभालने तथा आसमान की ऊंचाई से भी ज्यादा बुलंदी तक पहुंचाने में व्यस्त है, जिसमें उनकी बेटी मेघना घई पुरी भी शामिल हैं,  (सुभाष घई की दो बेटियां है, मेघना घई पूरी तथा मुस्कान घई)।
शो मैन सुभाष घई को फिल्म 'कर्मा' (1986) के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1998 में फिल्म 'परदेस' के लिए उन्हें बेस्ट स्क्रीनप्ले अवार्ड हासिल हुआ,  2006 में सुभाष घई को, नैशनल फिल्म अवार्ड फॉर बेस्ट फिल्म ऑन अदर सोशल इश्यूज फिल्म 'इकबाल' (जिसके वे निर्माता थे) के लिए प्रदान किया गया, 2013 मे उन्हें स्किल ट्री एडुकेशन इवान्जलिस्ट ऑफ इंडिया का सम्मान प्राप्त हुआ।  2015 में उन्हें भारतीय सिनेमा में अभूतपूर्व योगदान के लिए आईफा अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। वे आईआईएमयूएन के आनरेरी बोर्ड ऑफ एडवाइजर्स के सदस्य भी हैं। उन्होंने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार को लेकर लगातार तीन फिल्में बनाई, 'विधाता' 'सौदागर', 'कर्मा'।


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