'Mast Mein Rehne Ka' Review: माँ बाप अपने बच्चो की एक अच्छी परवरिश हमेशा इस उम्मीद पर करते हैं कि जब वह बुढापे की स्टेज पर होंगे तब उनके बच्चे अपना हाथ थमा कर उनकी सेवा करेंगे. लेकिन जैसे ही बच्चे बड़े हो जाते हैं सभी अपने करियर में इस तरह बिजी होते हैं कि वह अपने माँ बाप का ख्याल ही नहीं रख पाते हैं न ही कुछ पल बैठ कर उनके साथ बिताते हैं. ऐसे में माँ पिता को अकेलापन घेरने लगता है इसके अलावा मुश्किल तब और बढ़ने लगती है जब पति पत्नी में से एक का निधन हो जाता है तब ये अकेलापन और बढ़ने लगता है. इस फिल्म में इसी टॉपिक को आधार बनाया गया है. इस फिल्म में इन्ही इमोशंस को बहुत बारीकी से दिखाने की कोशिश की गई है.यह कहानी मुंबई नगरी में रहने वाले बुजुर्गों के अकेलेपन को दर्शाती है.
कहानी
फिल्म की कहानी के बारे में बात करें तो फिल्म में 2 कहानियों को दिखाया गया है. मिस्टर कामत और प्रकाश कौर की कहानी और नन्हे और रानी भी इस कहानी में आधार बनते हैं. फिल्म में मिस्टर कामतजो अपनी पत्नी के देहांत के बाद 18 साल से अकेले रहते हैं. एक बार वह घर में बेहोश मिलते जिसके बाद पुलिस आकर उनसे पूछती है कि आखिर क्या हुआ था जिसके बाद वह बताते हैं कि उनके घर चोर आ जाता है और उस चोर ने उन्हें मारा होता है जिसकी वजह से वह बेहोश हो जाते हैं. क्योंकि उनकी कोई सोशल लाईफ नहीं होती है इसलिए पुलिस उनको सलाह देती है कि वह लोगों से मिले जुले.
वहीं दूसरी ओर कहानी में प्रकाश कौर का किरदार है जो काफी खुशमिजाज़ है. प्रकाश कौर अपने बेटे के साथ कनाडा में रह कर गुजारती हैं. लेकिन बेटे के साथ कुछ समय गुज़ारने के बाद वह मुंबई चली आती हैं. क्योंकि अपनी बहु और बेटे के साथ उनका मनमुटाव हो जाता है. प्रकाश कौर, अपने पति के देहांत के बाद अन्दर से काफी टूटा हुआ फील करती हैं लेकिन वह कभी यह इमोशन अपने बच्चों के सामने पेश नहीं करती हैं. कामतजो और प्रकाश कौर की मुलाक़ात एक दिन अचानक होती है हालांकि यह मुलाक़ात ग़लतफ़हमी से शुरू होती हैं लेकिन धीरे धीरे यह दोस्ती में बदल जाती है.
कहानी में एक और किरदार को जोड़ा गया है जिसका नाम नन्हे है, वह एक लेडीज़ टेलर है. लेकिन ज्यादा कमाई न होने के चलते वह इतना क़र्ज़ में डूब जाता है कि वह बुजुर्गों के घर जाकर चोरी करने लगता है. लेकिन इसी बीच नन्हे को ट्राफिक सिग्नल पर एक लड़की दिखती है जिसका नाम रानी होता है. फिल्म में नन्हे का किरदार ही कामत जी के घर जाकर चोरी करता है.
किरदार
फिल्म में कामत का किरदार जैकी श्राफ ने निभाया है. लेकिन कहानी में 'लाइफ इज गुड' की कुछ कुछ झलक आपको समझ में आएगी. लेकिन एक बुजुर्ग के किरदार को उन्हें अपने बेहतरीन अभिनय से काफी खूबसूरत बना दिया. लेकिन कहानी में कई ऐसे मूमेंट रहे हैं जिनमे उन्हें लोगों के द्वारा काफी बार मद्रासी कहा गया है. कहीं कहीं फिल्म में यह मूमेंट काफी इमोशनल लगता है. लेकिन कुछ प्रसंग ऐसे भी आते हैं जिन्हें देखकर लगता है कि आपको ज़िन्दगी को मौका जरुर देना चाहिए. नीना गुप्ता ने भी अपने मस्त मौला अंदाज़ में जिस तरह अपना किरदार पेश किया है वह सराहनीय है. एक्ट्रेस अपने हर किरदार में अपनी पूरी जान फूंक देती हैं.
वहीं नन्हे की भूमिका अभिषेक चौहान ने निभाई है और रानी के किरदार में मोनिका पवार का काम प्रशंसनीय लगेगा. इसके अलावा फिल्म में पंचायत सीरीज के उप प्रधान फैसल मालिक भी हैं जिन्होंने फल बेचने वाले बाबूराम का किरदार निभाया है. वहीं फिल्म में राखी सावंत का किरदार भी जोड़ा गया है जिसकी वजह से एक मूमेंट पर कहानी ट्रेक से फिसलती हुई लगती है. लेकिन उनके किरदार को कुछ इस तरह से पेश किया गया है कि वह भी कहानी के लिहाज़ से जरुरी है.
क्यों देखें
जानकारी के लिए बता दें फिल्म मुंबई जैसे महानगर की झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों के आम जीवन के बारे में भी दिखाने की कोशिश की गई है. कहानी में दूसरी ओर कामत और प्रकाश कौर के किरदार मुंबई के पॉश इलाकों में रहने वाले बुजुर्गों के अकेलेपन को दिखाने की कोशिश की गई है. वहीं कहानी में जब नन्हे का किरदार कामत के घर चोरी करने जाता है तब कामत चिओर से कहते हैं कि वह उन्हें जान से मार दें क्योंकि उस समय वह अकेलेपन के कारण काफी बोझिल सा फील करते हैं लेकिन जैसी ही उनकी ज़िन्दगी में प्रकाश आती हैं उन्हें लगता है कि ज़िन्दगी को एक बार फिर से एक नए सिरे से जीना चाहिए. यही सन्देश लेकर यह फिल्म आपको जरुर एक शिक्षा के साथ एंटरटेन करेगी.
क्यों न देखें.
हालांकि फिल्म का विषय काफी अच्छा है लेकिन अगर तकनीकी रूप से देखा जाए तो आपको यह कमजोर लग सकती है. फिल्म की एक कमज़ोर कड़ी यह भी रही कि उसे एक बड़े लेवल पर प्रोमोट नहीं किया गया जिसकी वजह से फिल्म उतनी कामयाब नहीं हो पायी जितना यह डिज़र्व करती है.