रेटिंग*
कुछ निर्देशक कलात्मकता के चक्कर में अच्छी खासी कहानी का बैंड बजा कर रख देते हैं। निर्देशक राकेश रजंन कुमार यही सब करते हुये फिल्म ‘ पहाड़गंज’की कहानी में खुद ही इतना उलझ गये कि बाद में वे उसे अंत तक नहीं संभाल पाते।
कहानी
एक स्पेनिश लड़की लॉरा कॉस्टा (लोरिना फ्रेरंको) अपने ब्वायफ्रेंड राबर्ट की तलाश में स्पेन से पहाड़गंज आती है । इसके अलावा कितनी ही और कहानीयां समानांतर तौर पर चलती रहती हैं जैसे एक बॉलीबाल कोच जिसके छोटे भाई को मार दिया गया था, कोच को पता है कि उसके भाई को ग्रहमंत्री के बदमाश बेटे जीतेन्द्र तोमर न मारा था मगर वो चाहकर भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाता । इसी चक्कर में उसे उसकी बीची छौड़ कर चली जाती है । एक और कहानी के तहत वहाड़गंज का गुंडा मुन्ना जिसे कोच दो बार मरने से बचाता है । वो उसका एहसान उतारने के लिये उसके भाई की मौत का बदला जीेतेन्द्र कोमार कर चुकाता है और विटनेस के चक्कर में उसके हाथों राबर्ट भी मारा जाता है । जब पुलिस जीतेन्द्र की मौत की जांच करने उतरती है तो उसे एक से ज्यादा कहानीयां आपस में गुंथी हुई मिलती हैं ।
डायरेक्शन
सबसे पहले तो निर्देशक की अक्ल पर तरस इसलिये भी आता हैं क्योंकि उसने फिल्मी लिबर्टी के चलते पहाड़गंज जैसे इलाके को जंहा बेशुमार होटलों के अलावा रिहाईश भी है को बैटिंग, स्मगलिंग, वेश्यावृति, राजनैतिक सांठगांठ तथा गंडागर्दी का अढ़डा दिखाया है लिहाजा निर्देशक ने जो सोच पहाड़गंज को लेकर रची हैं वो सिरे से ही नकली और मनघंडत है। शायद इसीलिये पहाडगंज के लोगों ने भी फिल्म में उनके इलाके को गलत ढंग से दिखाये जाने को लेकर फिल्म का विरोध किया था। फिल्म की पटकथा इस कदर लचर है कि फिल्म में नायिका अपना रेप हो जाने के बाद बाकायदा अपने पर ‘आइम रेप्ड’ का बोर्ड लगाकर सड़को पर घूमती नजर आती है जबकि एक विदेशी होने के नाते पुलिस का उसके साथ किया गया दुर्व्यावहार अखरता है ।
अभिनय
विदेशी युवती के तौर पर लोरिना फ्रैरंको का अभिनय औसत दर्जे का रहा, वहीं कोच की भूमिका में बृजेश जयराजन जो करते नजर आते हैंउसमें एक हद तक ही सफल हो पाते हैं। मुन्ना के रोल में सलमान खान ओवर दिखाई देता है। अन्य कालाकर भी कुछ खास करते नजर नहीं आते।
क्यों देखें
पहाडगंज जैसी फिल्मों को दर्शख दूर से ही सूंघ लेता हैं लिहाजा शक है कि वो फिल्म के आस पास भी फटकेगा।