ऐ फूलों की रानी बहारों की मलिका, जब राजेन्द्र कुमार ने Sadhna का हाथ थामा

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सन  1965 में जब फिल्म आरज़ू आई तो खासकर युवा दिलों को इस फिल्म से बहुत उम्मीद जगी। उम्मीद लगती भी क्यों न, उस दौर में राजेन्द्र कुमार और बॉलीवुड की रानी साधना, दोनों ही युवा दिलों की धड़कन हुआ करते थे।

सिनेमा हॉल में फिल्म देखते हुए दर्शकों ने तब दिल ही थाम लिया जब मुहम्मद रफी की आवाज़ में गीत - ए फूलों की रानी, बहारों की मलिका शुरु हुआ। आप इस गीत को देखें तो गौर कीजिएगा कि शुरुआत साधना के मुसकुराते हुए चेहरे और झूमते हुए बदन से होती है जहां बैकग्राउन्ड में बाग के अंदर एक फुवारा भी साधना को झूमता देख खुशी से खिल उठा है और साथ ही उसमें इन्द्रधनुष के रंग भी दिखाई दे रहे हैं।

बस यहीं पर राजेन्द्र कुमार हाथ में लाल गुलाब लिए साधना पर दिलों जान से फिदा नज़र आ रहे हैं। साधना जहां केसरिया सूट और उसपर काले कार्डिगन में नज़र आ रही हैं वहीं मुसकुराते झूमते राजेन्द्र कुमार व्हाइट शर्ट पर महरूम जर्सी पहने हैं। इस गीत को लिखते वक़्त हसरत जयपुरी ने शायद साधना को नज़र भर देखा होगा क्योंकि आप गौर करें तो पायेंगे कि गीत के हर अंतरे में उनकी दिल खोलकर तारीफ़ें लिखी गई हैं। उनके कसीदे पढ़े गए हैं। फिर पढ़ें भी क्यों न, इस गाने में साधना की खूबसूरती ही ऐसी है कि जो देखे वो तारीफ करे बिना न रह सके। फिर शंकर जयकिशन के संगीत ने इस गाने को सम्पूर्ण कर दिया है। शंकर जयकिशन की ये धुन, आज, 55 साल बाद भी उतनी ही खूबसूरत, उतनी ही रोमांस भरी लगती है जितनी पहले दिन लगी थी। फिर यहाँ तारीफ डॉक्टर और बेहतरीन फिल्ममेकर रमानंद सागर साहब की भी बनती है जो उन्होंने इतना उम्दा और ज़िंदादिल गीत डायरेक्ट किया। आप इस गाने को एक बार देखना शुरु करें तो अपनी नज़र नहीं फेर पायेंगे। फिर गीत के अंत में साधना और राजेन्द्र कुमार का नदी में मोटर बोट पर सवार हो चले जाना इस गाने को एक अलग ही लेवल पर खत्म करता है।

आप भी इस गीत का मज़ा लीजिए। 

ऐ फूलों की रानी बहारों की मलिका
तेरा मुस्कुराना गज़ब हो गया
न दिल होश में है न हम होश में हैं
नज़र का मिलाना गज़ब हो गया

ऐ फूलों की रानी बहारों की मलिका, जब राजेन्द्र कुमार ने Sadhna का हाथ थामा

तेरे होंठ क्या हैं गुलाबी कंवल हैं
ये दो पत्तियां प्यार की इक गज़ल हैं
वो नाज़ुक लबों से मुहब्बत की बातें
हमीं को सुनाना गज़ब हो गया

ऐ फूलों की रानी बहारों की मलिका, जब राजेन्द्र कुमार ने Sadhna का हाथ थामा

कभी खुल के मिलना कभी खुद झिझकना
कभी रास्तों पे बहकना मचलना
ये पलकों की चिलमन उठाकर गिराना
गिराकर उठाना गज़ब हो गया

फ़िज़ाओं में ठंडक घटा भर जवानी
तेरे गेसुओं की बड़ी मेहरबानी
हर इक पेंच में सैकड़ों मैकदे हैं
तेरा लड़खड़ाना गज़ब हो गया

ऐ फूलों की रानी बहारों की मलिका, जब राजेन्द्र कुमार ने Sadhna का हाथ थामा

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