हिंदी सिनेमा में हजारों फिल्मो में अपनी मधुर आवाज़ देने वाले रफ़ी साहब को उनके 90वें जन्म जयंती पर। वह आज भी अपनी ही धुनों में समा कर अमर है और लोग उनकी आवाज़ सुनना पसंद करते है। कई सितारें इस फरिश्ते की दिलकश, रूहानी, जज्बाती, मीठी, मखमली और शरबती उतार-चढ़ावों से भरपूत आवाज को उधार ले कर शिखर की बुलंदियों तक जा पहुंचे। वो रूहानी आवाज जो क़यामत तक ज़िंदा रहने वाली हो। जिसके दुनिया से जाने के 34 वर्षों बाद भी उन्हें कोई न भूल पाया। वो दिलकश सुरीली, मीठी, आवाज आज भी फिज़ाओ में कायम है।
आपको बता दें कि आवाज की दुनिया के बादशाह मोहम्मद रफी को पार्श्वगायन करने की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी। रफी ने अपना पहला गाना ‘सोनिये नी हिरीये नी’ पार्श्वगायिका जीनत बेगम के साथ एक पंजाबी फिल्म ‘गुल बलोच’ के लिए गाया था। दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर,राजेन्द्र कुमार,शशि कपूर, रजकुमार जैसे नामचीन नायकों की आवाज कहे जाने वाले रफी ने अपने संपूर्ण सिने कैरियर मे लगभग 700 फिल्मों के लिये 26000 से भी ज्यादा गीत गाए। रफ़ी साहब के दुनिया से जाने के बाद कई वर्षो तक उनकी बरसिया मनाई गई आज भी दीवाने उनका जन्मदिन और श्रद्धांजलि बड़ी श्रद्धा से मनाते है।
रफ़ी की आवाज़ में फिल्म ‘पगला कहीं का’ का एक गाना है जो उन्होंने बहुत ही बेहतरीन तरीके से गाया था और उस गाने को शम्मी कपूर पर फिल्माया गया है – “तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे, ओ तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे, संग-संग तुम भी गुण-गुनाओगे”. इस गाने के साथ मोहम्मद रफी भी हिंदी सिनेमा जगत में अमर हो गए।