मायापुरी अंक, 56, 1975
फिल्म ‘चलते चलते’ की डबिंग के दौरान सिम्मी से भेंट हो गई। हम कोमिला विर्क के यहां से आ रहे थे और वह विजय आनंद के डबिंग सेंट पर जा रही थी। हमने पूछा।
सिम्मी जी, आपने मेहबूब साहब जैसे महान फिल्म निर्माता के साथ अपना करियर शुरू किया था। किंतु उनकी खोज होने के बावजूद आपको जो स्थान मिलना चाहिए था, वह नही मिल सका। इसका क्या कारण है?
इसका कारण है गुटबंदी और मेरी बदकिस्मती यहां सारा काम फिल्मों के चलने पर निर्भर करता है। हाथ की सफाई चली तो लोगों ने यह उड़ा दिया कि मैं शादी के बाद फिल्म लाइन छोड़ चुकी हूं इसलिए कई फिल्में जो मुझे मिलने वाली थी, दूसरों को मिल गई। हालांकि ऐसी बात नही है सिम्मी ने कहा।
क्या आपको काम करने पर आपत्ति नही है? आमतौर से लोग शादी के बाद फिल्मों में काम करवाना पसंद नही करते। मैंने कहा।
नही, ऐसी कोई बात नहीं है। वे स्वयं बड़े कलात्मक अभिरूचि के इंसान है। उन्हें मेरी फिल्में देखकर खुशी होती है। सिम्मी ने कहा।
क्या आपने इन्हें अपनी फिल्म सिद्धार्थ दिखाई थी? उसे देखकर क्या प्रतिक्रिया मिली उनसे ? मैंने पूछा।
वे बड़े सुलझे हुए व्यक्ति हैं। आर्ट से उन्हें भी उतनी ही दिलचस्पी है जितनी कि मुझे है सिद्धार्थ देखकर उन्होंने मेरे काम की प्रशंसा की थी।
आप फिल्मों में अपने भविष्य के बारे में क्या सोचती है?
मैंने चलते हुए आखिरी प्रश्न किया।
मैं निराश नही हूं। मुझे उम्मीद है कि चलते चलते के बाद मुझे अच्छे रोल मिलेंगे और जिस दिन मुझे मेरी पसंद का भावनात्मक रोल मिल गया, मैं अपना लोहा फिर मनवा लूंगी। सिम्मी ने आशा भरे स्वर में कहा।