‘थोडा लुत्फ थोडा इश्क’ के डायरेक्टर सचिन गुप्ता से लेखक हरविंदर मांकड़ की बेबाक बातचीत
आप का मनपसंद विषय काॅमेडी ही क्यों होता है?
देखिये, आज की जिन्दगी में अगर कोई किसी को हंसा सके तो इससे बड़ा पुण्य का काम और कोई नही हो सकता। हर तरफ लोग परेशान है पर अगर वो मेरी फिल्म देखकर चेहरे पर मुस्कान ले आते हैं तो में समझता हूँ की मेरा यह फिल्म बनाना सफल हो गया।
इससे पहले भी आपने ‘परांठे वाली गली’ बनायी थी, वो भी सब्जेक्ट काॅमेडी ही था। क्या आप हमेशा काॅमेडी पर ही फोकस रखना चाहेंगे?
ऐसा नहीं है की में काॅमेडी के अलावा कोई सब्जेक्ट नहीं छूता। मैं मूलत थिएटर से जुड़ा हुआ हूँ। मेरी अपनी थिएटर कंपनी है। जहां हम हर तरह की कहानियों को लोगों के सामने लाते हैं। वहां भी मैंने देखा है की लोग हमसे उम्मीद करते हैं कि हम उनके गमों की दवा बनकर सामने आयें। वो चाहते हैं की जितना टाइम वो हमारे नाटक या फिल्म को देखे वो भी हंसते रहें और खिलखिलाते रहें। यही वजह है की मेरी यह फिल्म पूरी तरह मस्ती मूड और इश्क का मजा देने वाली है।
फिल्म में कोई बड़ा स्टार क्यों नहीं लिया गया?
बड़ा स्टार आप किसे कहते हैं। सबसे बड़ा स्टार आजकल कहानी या सब्जेक्ट होता है। कंटेंट बढि़या हो तो लोग यह नहीं देखते की सामने कौन है। राजपाल यादव और संजय मिश्र जैसे मंझे हुए कलाकार हैं इस फिल्म में। जिन्हें अब पहचान की कोई जरुरत नहीं है। उनमें प्रतिभा भरपूर है और अपने चरित्र के साथ पूरा न्याय किया है उन्होंने। सो मेरी इस फिल्म की सबसे बड़ी स्टार मेरी कहानी है।
आप थिएटर से हैं, जरा बताइए क्या फर्क है एक स्टार और अदाकार में?
दरअसल अदाकारी एक गहरा काम है। अदाकार को चेहरे से नहीं दिल से काम करना पड़ता है। यही फर्क है एक स्टार में और अदाकार में। स्टार का चेहरा बिकता है। बेशक उसे अभिनय की क ख ग न आती हो.. पर अदाकार अपनी पहचान सदियों तक बनाता है। वो खुद नहीं दिखता बल्कि कहानी का चरित्र बन जाता है। वो अपने रोल में समा जाता है। तभी लोग आज तक बलराज सहनी, मीना कुमारी और ऐसे न जाने कितने सदाबहार अदाकारों को याद करते हैं। स्टार तो न जाने कितने आते हैं और अपनी चमक खो देने के बाद लुप्त हो जाते हैं पर अदाकार हमेशा जिंदा रहता है।
आपका भविष्य में क्या करने का इरादा है?
मैंने जैसा आपको बताया हरविंदर जी, मेरा अपना थिएटर ग्रुप है। हम बहूत जल्दी दिल्ली और अन्य शहरों में अपना नया शो करने जा रहे हैं। यह एक ऐसा शो होगा जिसे देखकर आप वाह-वाह कह उठेंगे। मैं बस अपने दर्शकों से यही कहना चाहता हूँ की फिल्म हो या थिएटर आप अच्छी कहानी को सम्मान दीजिये। क्योंकि अगर आप अच्छी कहानियों वाली फिल्में पसंद करेंगे तो बाकि निर्माता भी कंटेंट पर अपना ध्यान देना शुरू करेंगे। लेखक हमारी फिल्मों की बैक बोन है। उन्हें नया लिखने का मौका मिलना चाहिए और नये सब्जेक्ट पर बनी फिल्मों को भी दर्शकों तक पहुंचना चाहिए। ताकि स्वस्थ मनोरंजन का मेरा सपना साकार हो सके।