वरुण धवन:– वह भी क्या दिन थे बचपन के की जब दीपावली का मतलब था खाना पीना, छुट्टी मनाना, पटाखे फोड़ना। पूरा परिवार मिलकर पूजा में शामिल होते थे और दोस्तों की दीपावली पार्टी में भी शामिल होते थे। अब शूटिंग के सिलसिले में कई बार देश से बाहर रहना पड़ता है तो दिवाली बहुत मिस करता हूं वरना दिवाली पार्टी मैं आज भी मनाता हालांकि आज वो बेफिक्री वाली जश्न नही होती है। बचपन में त्यौहार का मतलब ही था नानी या दादी के घर जाना और उनके लाड में सर से पाँव तक डूब जाना। जिनके भी घर जाते वे ही अपने हाथों से ऐसे ऐसे लज़ीज पकवाने बना कर खिलाते थे की उंगलियां चाटता रह जाता था। खैर वक्त को तो आगे बढ़ना ही है। आज की दीवाली मस्ती भरी तो होती है लेकिन बचपन की दीपावलियों से इसका कोई मुकाबला नही।
बचपन की दिवाली का कोई मुकाबला नही – वरुण धवन
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