मायापुरी अंक 5.1974
हमारे निर्माताओं की हालत बड़ी अजीव होती हैं उस बेचारे को सभी को खुश रखना होता। है वह विशेषरूप से हीरो के सामने तो बिछा ही रहता है। उसकी हर बात को फरमान समझ कर स्वीकार कर लेता है।
फिल्म ‘मेरे पति की पत्नी’ के निर्माता के साथ एक शाम सुनीलदत्त बैठा था। पीते-पीते उसने एकदम से मदर इंडिया का गाना न मैं भगवान हूं न मैं शैतान हूं दुनिया जो चाहे समझे मैं तो इन्सान हूं ट्यून के साथ गाया और बोला, यार यह टाइटल अच्छा है मैं भी इन्सान हूं गाना भी हिट था, पिक्चर भी हिट हो जाएगी।
निर्माता ने इतना सुना और अगले दिन डिजाइन बनवाकर ‘ट्रेड गाईड’ में विज्ञापन निकलवा दिया और फिल्म मेरे पति की पत्नी’ से ‘मैं भी इन्सान हूं बन गई। सुनीलदत्त ने ट्रेड गाईड में इश्तहार देखा तो सिर पीट लिया। बोला, यह फिल्म का नाम क्यों बदला गया?
निर्माता बोला, ‘आपने ही तो कहा था कि मैं भी इन्सान हूं अच्छा टाईटल है। सो मैंने इसे रजिस्टर करवा कर विज्ञापन दे दिया।
‘नही भई’ यह मेरे कैरेक्टर को सूट नही करेगा। नाम बदल डालो, कल अगर मैंने नशे में कह दिया कि मैं गधा हूं तो क्या आप कल वह नाम रख देंगे। सुनीलदत्त ने नाराजगी से कहा।
अगले दिन पता चला कि ‘मेरे पति की पत्नी ‘मैं भी इन्सान हूं का नारा लगाकर फिर ‘मेरे पति की पत्नी’ बन गई है।