“मैं एक स्त्री हूँ” नाम की कविता लिखने वाली आरती मिश्रा ने अपने कुछ जज़्बात कविता के रूप मैं सबसे साझा करी है।
मुझे एक स्त्री ने जनम दिया है, मगर धीरे धीरे पता चला की स्त्री एक लिंग नहीं है बल्कि एक वजूद है, एक पहचान है जो हासिल करना होता है।
इस दुनिया को बगावत करने वाले बहुत चुब्ते हैं, यह दुनिया उन्हें एक काँटे की तरह निकाल के बहार फ़ेंक देती है, मगर एक स्त्री गुलाब के फूल सा रहना का हुनर जानती है, काँटों को छुपा कर रखने का हुनर जानती है।
कोई ज़बरदस्ती अगर इस फूल को छुऐगा तोह काँटों का सामना करना होगा उससे, कुछ इस तरह से
जिस्म ढका तो है
इससे मेरी शर्म ना समझना तू
मेरे ज़ख्म देखने की तेरी अभी औकात नहीं है बस
आखें झुकी तो हैं
इससे मेरी शराफत ना समझना तू
ऐसे जानलेवा हथियार से हलक होने की तेरी औकात नही है बस
बाल बांधे तो हैं
इससे मेरी सरलता ना समझना तू
इनकीआँधियों में टिके रहने का तेरा जिगर नही है बस
ज़ुबां खामोश तोह है
इससे फ़ितरत ना समझना तू
इसके सामने हारने की अभी तेरी आदत नहीं है बस
रूह शीतल तो है
इससे आदत ना समझना तू
इसके आग में जल जाने की अभी तुझ में ताक़त नही है बस
ऐ बन्दे
एक स्त्री हूँ
इससे लाचारी ना समझना तू
इसकी अहमीयत जान ने के लिये तेरी मर्दानगी काफ़ी नही है बस
स्त्री एक वजूद है, एक पहचान है, वही हासिल करने में लगी हूँ
हाँ मैं एक स्त्री हूँ