रेटिंग ****
बचपन देश को आजाद करवाने में बीता लेकिन आजादी के बाद सारा जीवन व्यर्थ हो गया । ये व्यथा हैं एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी गौर हरिदास की जिन्हें अपने आपको स्वतंत्रता सेनानी साबित करने में तीस वर्श लगे । इस रीयल हीरो की बायोपिक निर्देशक अंनत नारायण महादेवन ने ‘गौर हरिदास दास्तान-द फ्रिडम फाइल’ नामक फिल्म में सच्चा चित्रण किया है ।
कहानी
1945 में उड़ीसा का एक बालक गौर हरि दास गांधी जी की वानर सेना में शामिल हो रेल की पटरी के किनारे किनारे दौड़ता हुआ खबरें इधर से उधर पहुंचाया करता था । बाद में करीब 90 दिन वो जेल में भी रहा । देश आजाद हुआ । गौर का परिवार मुंबई में आकर बस गया । बेटे की नौकरी इस बात पर निर्भर थी कि वो अपने पिता के स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाणपत्र यानि ताम्रपत्र दिखाये जो गौर के पास नहीं था । बाद में किस प्रकार गौर हरि को अपने आप को स्वतंत्रता सेनानी साबित करने में तीस साल लग गये । उन तीस सालों में उन्होंने क्या कुछ नहीं सहा, अपने आसपास के लोगों द्धारा किया गया अपमान, यहां तक उन्हें अपने बेटे की अविश्वास भरी नजरों का भी सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और जो हारते नहीं उनका भगवान भी साथ देते हैं । गौर हरि की मदद के लिये एक अंग्रेजी दैनिक के दो पत्रकारों रनवीर षौरी तथा तनिष्ठा चटर्जी ने साथ देने का निश्चय किया । अंत में उन्हीं के प्रयासो से गौर हरि दास अपने आपको स्वतंत्रता सेनानी साबित कर पाये।
निर्देशन
आज सो दो सो करोड़ कर रही फिल्मों के बीच एक ऐसी फिल्म बनाना, कला के प्रति पागलपन ही कहा जा सकता है लेकिन इस बात के लिये अंनत बधाई के पात्र हैं । साथ ही इस फिल्म को निर्मित करने वाले भी । अंनत ने महीनो अपनी टीम के साथ गौर हरि की जीवटता भरी जीवनी को कलम बद्ध किया । उसके बाद उसका एक ईमानदारी भरा चित्रांकन किया । उनकी ढेर सारी उस वक्त की चीजों की तरफ सिर्फ इशारा करते हुए समझाने की तकनीक अच्छी लगी । एक एक दो दो दृश्यों में भी उन्होंने सक्षम कलाकार लिये । अंत में वे गौर हरि दास्तान को प्रभावशाली ढंग से बताने में सफल रहे।
अभिनय
गौर हरि की भूमिका में विनय पाठक और कोंकणा सेन शर्मा शुरू में तो आर्टिफिशियल लगे लेकिन धीरे धीरे वे अपनी भूमिकाओं में घुसते चले गये । दोनो ने ही बहुत सशक्त तरीके से अपनी भूमिकाओं को निभाया । इसके अलावा गौर हरि की मदद करने वाले पत्रकारों में रनवीर शौरी और तनिष्ठा चटर्जी बहुत ही नैचुरल लगे खासकर रनवीर पत्रकारिता में आई पेशेवराना प्रवृत्ति का दर्द चेहरे पर बहुत ही असरदार तरीके से उभारने में सफल रहे हैं तथा इनका साथ अंत तक ढेर सारे कलाकारों ने दिया जैसे मुरली शर्मा ,विक्रम गोखले,राहुल वौरा,उपेन्द्र लिमये, असरानी, विपिन शर्मा, भरत दाभोलकर,नीना कुलकर्णी, मृणाल कुलकर्णी,विनय आप्टे तथा सिद्धार्क जाधव इत्यादि।
संगीत
फिल्म में सुप्रसिद्ध गायक व संगीतकार एल सुब्रमणयम ने एक अरसे बाद किसी हिन्दी फिल्म में संगीत दिया है । पार्श्व में उनका संगीत और उनकी पत्नि कविता कृष्णमूर्ती की मधुर आवाज कथ्य को और सशक्त बनाती है ।
क्यों देखे
पश्चिमी सभ्यता में डूबी हुई मसाला फिल्मों के बीच ऐसी फिल्म जो आजादी के बाद कृत्धन नेताओं और बेईमानी तथा भ्रष्ट प्रशासन के खिलाफ एक बार फिर एक स्वतंत्रता सेनानी द्धारा अपने हक की लड़ाई लड़ने और उसे जीत कर दिखाने की अविस्मरणीय जीवटता देखनी हैं तो ये फिल्म जरूर देखनी चाहिये ।