जिगरिया अस्सी के दशक की ,एक,ऐसी लव स्टोरी है जिसका अंत दुखद होता है। निर्माता विनोद बच्चन तथा राजू चड्डा की इस फिल्म को निर्देशित किया है राज पुरोहित ने। हालांकि उन्होंने उस दौर के वातावरण, बोलचाल तथा उस दौर के प्यार मोहब्बत को दिखाने की भरकस कोशिश की है। यहां तक उन्होंने कहानी में हीर रांझा और लैला मजनू की तरह इमोशन पैदा करने के लिएकहानी का दुखद अंत तक दिखा दिया।
हर्षवर्धन आगरे के नामचीन हलवाई वीरेन्द्र सक्सेना का इकलौता बेटा है लेकिन उसे पढ़ाई या अपने खानदानी काम में जरा भी दिचस्पी नहीं। उसे प्यार है कविता और शेरों शायरी से। एक दिन अचानक उसकी नजर एक लड़की चेरी मार्डिया पर पढ़ती है तो वो उस पर मोहित हो जाता हैं और बाद में अपने यार दोस्तों की मदद से उसे पता चलता है कि वो मथुरा के एक धनाढ्य ब्राह्मण परिवार की इकलौती बेटी राधिका है। और आगरा अपनी नानी के यहां आई हुई है। हर्ष किसी तरह राधिका को प्रभावित करने में सफल हो जाता है। लेकिन जब ये बात राधिका की नानी को पता चलती है तो वो राधिका को उसके घर मथुरा भेज देती है और फिर हर्ष के पिता को बुलाकर वार्न भी कर देती है। लेकिन हर्ष पर इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता वो राधिका को लेकर भाग जाता है। और मुंबई अपने दोस्त की मदद से जैसे ही थोड़ा बहुत सैट होता है तभी राधिका का मामा वहां आ धमकता है और वो राधिका को वापस ले आता है। और इस बार उसे शादी के लिएमजबूर कर दिया जाता है लेकिन शादी से पहले हर्ष और राधिका तो कुछ और ही करने का निश्चय कर लेते हैं।
बेशक फिल्म उस दौर की है लेकिन उस पर हिट फिल्म राझंणा का पूरा प्रभाव दिखाई देता है। एक तो अस्सी का दौरऊपर से फिल्म कीगति धीमी। हर्षवर्धन ठीक ठाक अभिनय कर जाते हैं लेकिन चेरी जितनी खूबसूरत है उसका अभिनय उतना ही साधारण रहा। सपोर्टिंग में वीरेन्द्र सक्सेना, वनिता मलिक, नवनी परिहार तथा के के रैना अपनी भूमिकाओं में ठीक रहे। फिल्म का संगीत साधारण रहा। कहने का तात्पर्य सिक्स्टीन जैसी एडवांस फिल्म बनाने वाले निर्देशक राज पुरोहित अस्सी के दशक की लव स्टोरी से प्रभावित नहीं कर पाते।
फिल्म ‘जिगरिया’ अस्सी के दशक की लवस्टोरी
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