एक लेखक के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है, एक ऐसी स्क्रिप्ट को सुनाना जिसके बारे में फिल्मस्टार को पहले से कुछ भी बताया नहीं जाता। मीडिया प्रेमी नीरज पांडे ने स्वंय इस बात को स्वीकार किया कि वह फिल्मों के रिलीज होने से पहले फिल्म के बारे में बात करना पसंद नहीं करते-
ज्योति वेंकटेश
बतौर लेखक-निर्देशक ‘ए वेडनसडे’ से लेकर ‘बेबी’ फिल्म तक की अपनी जर्नी के बारे में बताइए ?
मैं अपने आप को बिहार, कोलकाता, दिल्ली का लड़का कहता हूं। ऐसा नहीं है कि मेरा परिवार क्रिएटिव नहीं है। लेकिन मेरी पढ़ाई में कभी भी दिलचस्पी नहीं रही। लेकिन कॉलेज में मैं लिखने, बुक्स पढ़ने, फिल्में देखने का बेहद शौकीन था। सही कहूं तो उस समय मुझे इस बात का बिल्कुल भी अहसास नहीं था कि मैं मुम्बई आ कर फिल्में बनाऊंगा। मैं एक साहित्य का स्टूडेंट था और टीएनटी व कार्टून नेटवर्क देखा करता था। गणित विषय में कमजोर होने के कारण एफटीआईआई द्वारा मुझे रिजेक्ट कर दिया गया था। लेकिन अब मुझे इस बात का अहसास होता है कि अच्छा ही हुआ जो मुझे एफटीआईआई द्वारा रिजेक्ट किया गया। मुझे इसलिए रिजेक्ट किया गया था क्योंकि मैं उस समय पचास व साठ के दशक की ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ फिल्में देखा करता था। इसके बाद मुझे एक उम्मीद थी व मैंने दिल्ली छोड़ सूरत की ट्रेन पकड़ी। मेरी यही सोच मुझे मुम्बई ले गई। मैंने सूरत से मुम्बई की ट्रेन पकड़ी, मुझे याद है कि मेरे पास टिकट नहीं थी तो मैंने टीटी को रिश्वत भी दी थी।
क्या ये बात सच है कि नसीरुद्दीन शाह ने संयोग से ‘ए वेडनसडे’ फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ ली थी ?
नसीरुद्दीन शाह पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें मैंने ‘ए वेडनसडे’ फिल्म की स्क्रिप्ट सौंपी थी। हालांकि उनके मैनेजर ने मुझे बताया था कि नसीर (नसीरुद्दीन शाह) मेरी फिल्म में काम करने के इच्छुक नहीं है। उनके बेटे एक दुर्घटना का शिकार हो गए हैं और वह अभी कोई भी निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। 20 दिन बाद मैंने उन्हें फिल्म की स्क्रिप्ट सौंपी। इसके बाद नसीर (नसीरुद्दीन शाह) ने मुझे बुलाया व कहा कि उन्हें फिल्म की स्क्रिप्ट पसंद आई।

‘ए वेडनसडे’ फिल्म से पहले आपने दो फिल्में लिखी थी, लेकिन वह दोनों फिल्में अभी तक नहीं बनी ?
‘ए वेडनसडे’ फिल्म वास्तव में कल्पना के किसी भी मायने में एक पारंपरिक फिल्म नहीं है। मैं एक बहुत ही अनुशासित लेखक नहीं हूं, जो रोज ही लिखता हो। ‘ए वेडनसडे’ फिल्म मेरी तीसरी फिल्म हैं। इससे पहले मैंने एक प्रेम कहानी लिखी थी जिस पर किसी को भी उस पर पैसा लगाना महंगा पड़ सकता है। इसलिए मैंने एक छोटी सी फिल्म की कहानी लिखने का फैसला किया, यह फिल्म एक महंगी फिल्म में तब्दील होने लगी। पहले मैंने फिल्म का कलाइमैक्स लिखा उसके बाद फिल्म की कहानी। पटकथा व संवाद के साथ एक हफ्ते में फिल्म की कहानी तैयार हो गई थी। मैंने अंग्रेजी में पटकथा व संवाद हिंदी में लिखे थे।
जब आप फिल्म बनाने के लिए पूरी तैयार हो जाते हैं, तब क्या आप बॉक्स ऑफिस पर फिल्म की संभावनाओं पर विचार करते हैं ?
जब मैं फिल्म बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाता हूं, तब मैं बॉक्स ऑफिस पर अपनी फिल्म को लेकर किसी भी प्रकार की भविष्यवाणी नहीं करता। मैं दिल से फिल्म बनाता हूं, क्योंकि यह एक तरह का बिजनेस होता है जिसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता।
क्या यह सच है कि शुरू में अक्षय भी ‘स्पेशल 26’ फिल्म का हिस्सा नहीं थे ?
मेरी फिल्म ‘स्पेशल 26’ लागत और कैनवास के मामले में बड़ी थी। ‘ए वेडनसडे’ व नसीर (नसीरुद्दीन शाह) के मामले की तरह जब मैंने अक्षय के ऑफिस में फिल्म की स्क्रिप्ट भिजवाई थी तो उनके मैनेजर ने साफ तौर पर कहा कि इस फिल्म में काम करने की अक्षय की किसी भी तरह की दिलचस्पी नहीं है। इसके बाद मैंने फिल्म का नाम ‘स्पेशल 26’ से ‘स्पेशल 27’ कर दिया क्योंकि 9 नम्बर अक्षय का लकी नम्बर है। लेकिन फिर मैंने बाद में इसे ‘स्पेशल 26’ ही रहने दिया। इसके बाद इस प्रोजेक्ट पर बालाजी ने काम करना शरू किया। लेकिन एकता कपूर इससे पीछे हट गई। विक्रम जो एकता के साथ काम करते थे वह वायकॉम के साथ जुड़े व अक्षय को स्क्रिप्ट पढ़ने को कहा। इसके बाद स्क्रिप्ट पढ़ कर उन्होंने फिल्म के लिए हां कह दी। साथ ही फिल्म का नाम ‘स्पेशल 26’ ही रहा।

फिल्म एक्टर के स्क्रिप्ट पढ़ने के बजाय क्या आप फिल्म की स्क्रिप्ट सुनाने के लिए उत्सुक रहते हैं ?
किसी भी फिल्म के एक्टर को दो घंटे में फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए कहने व खुद स्क्रिप्ट सुनाने के लिए हम हमेशा ही तैयार रहते हैं। आज तक मैंने किसी और की स्क्रिप्ट को निर्देशित करने का लालच नहीं किया और नही किसी फिल्म को निर्मित किये जाने पर मैंने किसी से अपनी फिल्म को डायरेक्ट करने को कहा। मुझे लगता है कि स्क्रिप्ट केवल पढ़ने के लिए होती हैं, क्योंकि मैं एक खराब कथावाचक हूं। मेरे हिसाब से एक लेखक की सबसे बड़ी चुनौती होती है एक ऐसी स्क्रिप्ट को सुनाना जिसके बारे में सामने वाले को पहले से कुछ भी बताया नहीं जाता। कास्टिंग हमेशा से मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रही है।
ऐसी तीन बेहतरीन फिल्में कौन सी रही, जिसने आपके करियर में आपको प्रेरित किया ?
ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘गुड्डी’, फिल्म को जिस प्रकार लिखा गया वह काफी सराहनीय है, शानदार लेखन, संगीत व नाटक के लिए फ्रैंक काप्रा की फिल्म ‘ईट्स ए वंडरफुल लाइफ’ व ‘इजाज़त’ की मैं हमेशा से ही सराहना करता हूं।
एक लेखक के रूप में एक फिल्म के लिए आपका दृष्टिकोण क्या होता है ?
मैं अपनी स्क्रिप्ट दर्शकों की नजर से देखता हूं। एक बार जब मैं इस बात से आश्वस्त हो जाता हूं कि मेरा प्रोजेक्ट उस स्तर पर काम करेगा। तो मैं अपने प्रोजेक्ट को आगे ले जाता हूं। आज के दर्शक ज्यादा समझदार व उदार हैं, वह हर तरह की फिल्में देखते हैं व फिल्म के बजट व फिल्ममेकर द्वारा बनाए गए फिल्म के तरीके को भी जानते हैं।
आपने धोनी जैसी बायोपिक बनाने का चयन क्यों किया ?
जब यह प्रोजेक्ट मेरे पास आया, मुझे इसकी कहानी अच्छी लगी। इसके बाद मैंने ‘एम एस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी’ फिल्म का हिस्सा बनना तय किया। मैं क्रिकेट से बहुत प्यार करता हूं। मैं अपने जीवन का नेतृत्व नहीं करता, लेकिन मेरे जीवन में अग्रणी है। प्रत्येक फिल्म अपना खुद में एक चैलेंज है। इसके बाद मैंने इस फिल्म के लिए काम करना शुरू कर दिया। सबसे बड़ी बात तो यह रही कि दुनिया को धोनी के बारे में वो सब बताना जो वो नहीं जानते।
इसके बाद आपका आगे का क्या प्लान है ?
फिलहाल मैं सातवें आसमान पर हूं क्योंकि मेरी फिल्म ‘बेबी’ के अगले तीन महीनों में चीन में रिलीज होने की उम्मीद है। साथ ही मैं अपने हिट फिल्मों में से एक की एक फिल्म पर सीक्वल बनाने की उम्मीद कर रहा हूं। इन सब में सही एक्टर्स को फिल्म के लिए चुनना एक बड़ी समस्या है। मैं अपने उपन्यास गालिब डेंजर को फीचर फिल्म में तब्दील करने का भी प्लान कर रहा हूं। गालिब खतरा एक अंडरवर्ल्ड गैंगस्टर के बारे में है, जो गालिब की शायरी नहीं समझते।