मायापुरी अंक 11.1974
बम्बई का मौसम न हो गया, कोई फिल्मी छोकरी हो गई ! कुछ पता नही, अभी बरस रहा है, अभी साफ ! हमने फोन पर नीतू से मिलने का समय लिया तो मौसम साफ था, राजकमल स्टूडियो की ओर चले तो बरसने लगा। हम वर्षा में भीगते-भीगते स्टूडियो पहुंचे तो नीतू ने हमें मेक-अप रूम में ही बुला लिया। वही नीतू की मम्मी भी बैठी थी जो हमें बताने लगी कि कैसे उन्होंने प्रोड्यूसरों का लिहाज कर अपना फॉरेन टूर कैंसिल कर दिया तभी भड़ाक से कमरे का दरवाजा खुला खटाक से नीतू उछली और फटाक से बोली हाईई।”
“हाय !” दरवाजे पर से जानी-पहचानी आवाज आई।
हमने भी अपनी खोपड़ी घुमाई। दरवाजे पर काका ही थे। नीतू की मम्मी ने राजेश को देखते ही मुंह फुलाकर कहा “जा ओये काका मेरे नाल गल्ल न करी मैं तेरे नाल नही बोलना
काका नीतू को छोड़कर ड्रामेटिक आवाज में कहने लगा- “देखो मां जी तुसी पहले मेरी पूरी गल्ल ता। सून लो जज भी जदों कोई फैसल करदा है तां पहले मुजरिम दा पूरा ब्यान सुनदा है तुसी तां बिना मेरी गल्ल सुने ही अपना फैसला सुना दितां
नीतू की मम्मी ने अपनी फिर वही रट दोहराई “मैं नही बोलना, जा
वह कौन-सी ‘गल्ल’ थी जिसको लेकर यह रूठ-मनौव्वा चल रही थी, हमें पता नही लगा, दोनों में से कोई भी ‘गल्ल’ नही उगला वरना राजेश को और नीतू की मम्मी को कतई मालूम नही था कि हम उसका झगड़ा टेप कर रहे है।