मायापुरी अंक 7.1974
निर्माता निर्देशक कमाल अमरोही ने अपनी बहुचर्चित फिल्म पाकीजा का निर्माण कार्य सन 1961 में शुरू किया उस फिल्म का प्रदर्शन हुआ 4 फरवरी 1972 में यानी उसके निर्माण में लगभग बारह साल लग गये वस्तुत उसकी शूटिंग को शिफ्ट्स केवल 270 दिन में हुई। मतलब कि उसके उसके वास्तविक फिल्मीकरण में एक साल से भी कम समय लगा तो फिर बारह साल कैसे गुजर गयें? उसके पीछे बड़ी दिलचस्प एंव रोमांचक कहानी है जरा गौर कीजिये
फिल्म पहले ब्लैक एण्ड व्हाइट में शुरू की गयी कुछ ही दिनों बाद मीना कुमारी की राय पर फिल्म कलर में शुरू की गई
जब कलर में एक रील बन गई विचार किया गया कि उसे सिनेमास्कोप में बनाया जाय। अब तक भारत में उसके पहले जितनी भी भव्य फिल्में बनी वे सब केवस्कोप थी। सबसे पहले सही अर्थो में सिनेमास्कोप ‘पाकीजा’ ही थी, इस तरह फिर नया सिलसिला शुरू हुआ। फिल्म के बड़े कैमरामैनों ने भूल से कई रीलें आउट ऑफ फोकस कर दी। उन रीलों का फिर से शूटिंग करना पड़ा
मीना कुमारी जी छ साल तक बीमार रही। उनकी बीमारी को वजह से कई बार शूटिंग स्थागित कर देनी पड़ी
राजकुमार ने भी कमाल साहब को काफी परेशान किया> शूटिंग्स का कमाल सुबह नौ बजे होता तो वे आराम से बारह बजे सैट पर पहुंचते।
ऊटी में आउट डोर शूटिंग्स की योजना बनाई गई। जब यूनिट वहां पहुंची तो दिन मौसम मूसलाधार पानी बरसा। बीस दिन तक वहां यूनिट बेकार रही और वापस लौट आई।
भिवड़ी में जंगल में आग लगने का सीन लिया जाना था। एक पूरा जंगल खरोदा गया। पेड़ों पर काफूस बाधें गये। कैमरे काफी दूर थे। जिस आदमी को आग फूकंने का इशारा करना था, वह कुछ समझ नही पाया और सही इशारे के बगैर उसने जंगल में आग लगा दी। हफ्तों की मेहनत पर पानी फिर गया। जंगल खरीदा गया और नई व्यवस्था की गई. गोवा में शूटिंग के वक्त जिस ट्रक पर जैनरेटर रखा हुआ था- गलती से पीछे कई दिनों तक शूटिंग नही हो पाई। इन्डियन नैवी की मदद से क्रेन से ट्रक और जैनरेटर को बाहर निकाला गया।
आज जहां नटराज स्टूडियोज है वहां पहले कमाल स्टूडियोज था। वहां अचानक आग लग गयी और तीन रीलें जलकर खाक हो गयी।
पाकीजा अपने ढंग की पहली भव्य फिल्म थी। उसमें देश- काल का भी पूरा ध्यान रखा गया। पर कुछ ऐसे हादसे हुए कि देर होती ही चली गयी और इस तरह प्रदर्शित होने में उसे बारह साल लग गये।
कहानी पकीजा की
1 min
