मायापुरी अंक 44,1975
देखों, राजकुमार आ गये, इस फुसफुसाहट के साथ ही फिल्म पार्टी में नयी हलचल पैदा हो गयी और सहसा सबका ध्यान हाल के मुख्य द्वार की ओर चला गया।
मैं सामने राजसी चाल से आगे बढ़ते हुए राजकुमार को देख रहा था। ढीला ढाला हरे रंग का रेशमी पाजामा और गाउन की तरह लाल पीली लहरियों वाला लंबा चोगा, पठानी चप्पल, चीते-सी आग बरसाती हुई दृष्टि, और गर्व भरी मुस्कुराहट। इस व्यक्तित्व में आज भी राजकुमार पहले के ही तरह बांके लगा रहे थे जिसकी एक झलक पर्दे पर देखने के लिए दर्शक बेचैन रहते थे। वह आज भी वैसा ही शाही लग रहे थे जैसे वह फिल्म ‘काजल’ में थे और उस फिल्म के दृश्यों में उनके आते ही हाल तालियों की आवाज से गूंज उठता था। ‘हमराज’ में उन्होंने चरमराते सफेद बूट पहन कर अपनी शानदार चाल से जिस तरह दर्शकों को रोमांचित किया था, ठीक वैसा ही रोमांच आज उनकी पठानी चप्पलों से भी हो रहा था।
फिर मैं सोचने लगा क्या सचमुच यह वही राजकुमार हैं जिसने ‘मदर इंडिया’ में ओजस्वी भूमिका कर अपने विशिष्ट व्यक्तित्व से सबको मोह लिया था? क्या सचमुच यह वही राजकुमार हैं जो पैगाम में दिलीप कुमार के सामने उतनी ही सशक्त और प्रभावशाली भूमिका कर अभिनय से राजकुमार कहलाने लगे थे? क्या सचमुच यह वही राजकुमार हैं जिन्होंने दिल एक मंदिर में कैंसर के मरीज की अत्यंत भाव भीनी भूमिका कर राजेन्द्र कुमार को फीका कर यह सिद्ध कर दिया था कि दिलीप कुमार की टक्कर का कोई अभिनेता है तो वह राजकुमार ही है? क्या ये वही राजकुमार हैं जिन्होंने दिल अपना प्रीत पराई में स्व. मीना कुमारी के साथ अत्यंत संवेदनशील भूमिका कर दर्शकों का दिल जीत लिया था ?
हां, राजकुमार तो वही हैं जिन्होंने अपनी ओजस्वी और दर्शकों को रोमांचित करने वाली भूमिकाओं से बड़े-बड़े कलाकारों में दहशत पैदा कर दी थी। लोग कहने लगे थे कि उनसे कुछ आशंकित होकर ही देव आनंद ने उन्हें ‘ज्वेल थीफ’ से अलग कर दिया था। दिलीप कुमार ने भी उनसे टक्कर न लेने की इच्छा से ‘संघर्ष और आदमी’ की भूमिकाओं से उन्हें अलग करवा दिया था।
हां, राजकुमार तो वही हैं जिन्होंने ‘मदर इंडिया’ में गरीब किसान की दिल को छूने वाली भूमिका अभिनीत की थी। हां, यह वही राजकुमार हैं जो प्यार का बंधन में प्यार की गहराइयों को जानने वाले एक तांगेवाले बने थे। हां, यह वही व्यक्ति हैं जो ‘उजाला’ में दर्शकों को रोमांचित करने वाले गुंडे बने थे। ‘काजल’ में उन्हेंने शराबी की अदाकारी की वह आज भी चर्चा का विषय बनी हुई है। वक्त की भूमिका के बाद तो फिल्मों के कट्टर समीक्षक भी उनका लोहा मानने लगे थे और उनकी प्रशंसा में लिखने लगे थे कि राजकुमार अपने वक्त के प्रखर कलाकार हैं! मगर ‘नील’ ’कमल’ ’वासना’ ’दिल का राजा’ जैसी फिल्मों के बाद राजकुमार को दिल से चाहने वाले दर्शक भी अचम्भे में पड़ गये कि उनके अभिनय का तिलिस्म एकाएक कैसे लुप्त हो गया।? ‘पाकीजा’ कामयाब तो हो गयी पर उससे वह राजकुमार सामने नही आया जो दर्शकों के दिलों पर राज्य करता रहा था।
फिल्म समीक्षकों को भी इस बात का आश्चर्य हुआ कि जिस राजकुमार की प्रतिभा के प्रकाश के आगे दिलीप कुमार। राजेन्द्र कुमार, धर्मेन्द्र और राजेश खन्ना जैसे सुपर स्टार फीके पड़ गये, वही श्रेष्ठ कलाकार ‘खानदान’ में नायक बनने को तैयार नही हुआ और उन्होंने यह कहकर भूमिका ठुकरा दी कि लूले लंगड़े हीरो की भूमिका करने से उनका ग्लैमर समाप्त हो जायेगा। राजकुमार को चाहने वालों को भी यह बात समझ में नही आयी कि ‘गोदान’ में उन्होंने महमूद के पिता की भूमिका करते हुए पात्र के अनुरूप सफेद बाल और मूंछे लगाने से इंकार क्यों कर दिया! क्या उससे उनका अभिनय भी बूढ़ा या जर्जर हो जाता?
ऐसा लगता है जैसे राजा-महाराजा समय की धड़कन को न सुनते हुए ग्लैमर की चकाचौंध से चिपके रहें, उसी तरह राजकुमार भी हीरो का ग्लैमर नही छोड़ पाये। उसी कमजोरी के कारण वह टाइप्ड एक्टर बनने लगे। जब वह ‘काजल’ में शराबी की भूमिका में जनता की प्रशंशा प्राप्त करने में सफल हो गये तो उन्होंने दो तीन और फिल्मों में शराबी की भूमिका कर डाली और निर्माताओं से कहने लगे शराबी के पार्ट दो में नायक को शराबी बनाओं, फिर देखना क्या सितम ढाहता हूं। राजकुमार ने कभी अपना स्टाइल बदलने की कोशिश नही की। उनका जो रोल हिट हो जाता, वह उसी से चिपके रहने की कोशिश करते। इस तरह घूम-फिर कर एक ही राजकुमार चारों ओर यानि सभी भूमिकाओं में एक-से नजर आने लगे। राजकुमार अच्छा कलाकार होते हुए भी गंत्यात्मक नही बन सके और राजकुमार के प्रिय दर्शकों को भी यह कभी अच्छा नही लगा कि वह लीना चंदावरकर जैसी हीरोइन के साथ मीठे रोमांस करें जो उनके सामने बेटी की तरह लगती हैं।
फिल्मवालों को इस बात की भी शिकायत रही है कि सफलता प्राप्त करने के साथ-साथ वह आवश्यकता से अधिक उदण्ड भी हो गये। सफलता उनके सिर पर हावी हो गयी और वह अपने उपयुक्त ‘टफ’ भूमिकाओं के बदले रोमांटिक और कोमल भूमिकाओं की मांग करने लगे। दूसरे दिलीप कुमार बनने की धुन में वह फिल्मों की शूटिंग के दौरान हस्तक्षेप करने लगे जिसके चलते निर्देशकों से कई बार झड़पें हुईं। वह फिल्मी पार्टियों में शराब पीकर उल्टी सीधी बातें करने लगे। फिल्मी दुनिया के किसी भी व्यक्ति से यह बात छुपी नही रही कि वह दिलीप कुमार के बारे में कहते फिरते हैं कि दिलीप मेरे साथ काम करने से डरते हैं क्योंकि ‘पैगाम’ में मैंने उन्हें उखेड़ दिया था। ‘नील कमल’ के सैट पर उन्होंने मजाक-मजाक में मनोज कुमार से जो बुरा सलूक किया, उस पर उनकी काफी आलोचना हुई थी फिल्म की एक पार्टी में वह एक पत्रकार को पीटने पर उतारू हो गये थे। अपने अहंकार के कारण और अपनी सनक के कारण वह बदनाम हो गये और अनेक ‘निर्माता’ उन्हें अपनी फिल्मों में लेने से झिझक रहें हैं। राजकुमार की इन कमजोरियों के बावजूद उनकी ‘प्रिय प्रजा’ अब भी यह मानती रही है कि वह निस्सदेंह ऊंचे दर्जे के आर्टिस्ट हैं। आज दर्शक यह चाहते हैं कि वह निरंतर विभिन्न तरह के ओजस्वी, संवेदनशील रोमांचक से भरपूर अनोखी भूमिका की तो उनके चाहने वालों ने भी पसंद किया और दुआंए की कि फिर से अपनी शानदार भूमिकाओं से जगमगा उठे। आज भी किसी फिल्म के प्रसंग में राजकुमार का नाम लिया जाता है तो उनकी सारी सशक्त भूमिकाएं आंखो के सामने आ उठती हैं। आज भी कॉलेज की लड़कियां उन्हें दिल से चाहती हैं। सच बात तो यह है कि जनता ने अब तक राजकुमार को पदच्युत नही किया है। पर वे हैं कि वह अपने अहंकार से इस तरह पीड़ित हैं कि लगता है कि वही सब कुछ हैं। इस सब की उन्होंने अपनी वह गद्दी छोड़ दी है जिस पर ‘जनता’ ने बड़े प्यार से अभिनय का राजकुमार घोषित करते हुए उन्हें बिठाया था। राजकुमार फिर अपनी गद्दी पर आसीन हो सकेंगे?