मायापुरी अंक 19.1975
नई की अपेक्षा आज लोग पुरानी फिल्मों को अधिक पसंद करते हैं। उसका कारण यह है कि उन में अधिक ताजगी और वास्तविकता पाई जाती है। बात उन दिनों की है जब बलराज साहनी और मीना कुमारी जीवित थे और खन्डाला में फिल्म ‘पिंजरे के पंछी’ की शूटिंग कर रहे थे। निर्देशक मीना कुमारी और बलराज साहनी पर एक दृश्य फिल्मा रहे थे। दृश्य कुछ ऐसा था कि बलराज साहनी रेल की पटरियों के बीच दौड़ती हुई मीना कुमारी को बचाते हैं। इस को बैंक प्रोमैक्शन की मदद से अलग अलग ढंग से फिल्माया जाना था। यह काम लांग शॉट में डुप्लीकेट के जरिये भी फिल्मबंद किया जा सकता था। लेकिन मीना कुमारी और बलराज साहनी जैसे कलाकार डुप्लीकेट से काम लेना पसन्द नही करते थे। फिल्म बंदी के पूर्व बलराज साहनी को एक विचार आया मुंबई से पूना जाने वाली डेकन क्वीन ट्रेन खन्डाला नही जा सकती थी। और ठीक साढ़े पांच बजे उस स्थान से गुजरती थी जहां पर शूटिंग हो रही थी। बलराज साहनी ने निर्देशक से कहा सलिल दा क्यों न हम अपनी फिल्मबन्दी में डेकन क्वीन का उपयोग करें ?
“नही नही। यह बड़ा जोखिम का काम है। मैं इसकी अनुमति नही दे सकता” निर्देशक ने सुझाव रद्द करते हुए कहा।
निर्देशक से निराश हो कर बलराज साहनी ने मीना कुमारी से यही बात कही तो वह तुरंत तैयार हो गईं। कलाकारों के आगे निर्देशक को भी झुकना पड़ा इसी हिसाब से रिफलेक्टी लगा दिये गए। बलराज साहनी और मीना कुमारी रिहर्सल करने के पश्चात डेकन क्वीन की प्रतीक्षा करने लगें।
डेकन क्वीन दूर से शोर मचाती हुई आती दिखाईं दी। सूचना मिलते ही मीना कुमारी पटरियों के बीच दौड़नें लगी। और पीछे पीछे बलराज साहनी ने ठहरो ठहरो करते हुए दौड़ना शुरू कर दिया। दोनों को इस प्रकार पटरियों के बीच दौड़ता देख कर इंजन ड्राइवर उलझन में पड़ गया। वह निरंतर सीटी बजाने लगा। डेकन क्वीन गड़गड़ाती शोर मचाती दोनों के पीछे दौड़ी चली आ रही थी। बलराज साहनी ने निश्चित स्थान पर पहुंच कर मीना कुमारी को जोर से धक्का देकर पटरियों से दूर फेंक दिया। बाद में खुद भी कूद गए। रेल फर्राटे से गुजर गई। सब इस स्वभाविक दृश्य की फिल्मबंदी पर खुशी से तालियां बजाने लगें। इसके पश्चात सब लोग होटल पहुंच गए।
बलराज साहनी होटल पहुंच कर थकान दूर करने के लिए नहाने गए तो एक ख्याल बिजली की तरह उनके मस्तिष्क में कौंधा और उनकी कल्पना से ही उनके पैर कांपने लगे। अगर मैं सही समय पर मीना को पटरियों से न धकेलता तो ? और इस प्रश्न ने उन्हें झंझोड़ कर रख दिया।
जरा सी भूल से न केवल मीना बल्कि वह भी जान से हाथ धो बैठतें। उन्हें अपने ऊपर बड़ा गुस्सा आया। दूसरे की जान जोखिम में डालने का उन्हें क्या हक था ? अगर फिल्मबन्दी के समय कोई दुर्घटना हो जाती तो बलराज जी यह सोच सोच कर अपनी इस हरकत की माफी मांगने मीना कुमारी के कमरे में जा पहुंचे। देखा तो मीना घुटनो पर कोहनियां टेकें हाथों में सिर दिये बैठीं थी
“मीना जी बलराज साहनी ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।“
मीना कुमारी ने सिर उठाकर देखा उनकी आंखे लाल थी।
“क्या बात है ?बलराज साहनी ने परेशानी भरे स्वर में पूछा।
“सिर में सरदर्द है।“ मीना ने थकी हुई आवाज में कहा।
“इसका कारण शायद मैं ही हूं।
मीना जी मैं बहुत शर्मिन्दा हूं और इसलिए आप से माफी मांगने आया हूं। बलराज साहनी के स्वर में पश्चाताप साफ दिख रहा था। “मुझे न जाने नेचुरल सीन का भूत कहां से सवार हो गया था। जिसकी वजह से मैनें अपने साथ आपकी जान भी जोखिम में डाल दी थी। लेकिन मीना जी आप तो मुझे रोक सकतीं थी। सीन करने से इंकार कर सकतीं थी। आप चुप क्यों रहीं?
“आपने भी कुछ सोच कर ही कहा था ना बस इसी वजह से खामोश रहीं और फौरन तैयार हो गई।“ मीना कुमारी ने उत्तर दिया।
अब आप ही बताइयें कि कोई और आर्टिस्ट अपने काम में इतनी ईमानदारी बरतता है!