मायापुरी अंक 13.1974
राजकपूर के घर लगने वाला ‘दिवाली-मेला बहुत प्रसिद्ध है। देखते देखते इस मेले में लाखों रुपया इस हाथ से उस हाथ पहुंच जाता है। आर. के. टीम के तितर-बितर हो जाने से इस मेले में अब तो रौनक नही रही। शैलेन्द्र और जयकिशन इस मेले की जान थे। दोनों ने दुनिया से विदा ले ली। शंकर और हसरत में भी अब पहले का सा उत्साह नही रहा। राज कपूर अपनी ब्लांइड चालें चलने में इस बार भी नही चूका और जीता भी
राज कपूर की आदत है कि वह सोते हुये सपने देखते रहते हैं। जैसे ही उनके दिमाग में कोई आइडिया घुसता है, वह तुरन्त उसे सुनाने के लिए अपने असिस्टेंटों को बुला भेजता है। शंकर-जयकिशन तथा शैलेन्द्र-हसरत उनकी इस आदत को सहने के अभ्यस्त हो चुके थे। रात का कोई भी समय हो, राज साहब का फोन आते ही चारों दौड़े चले आते थे। ‘बॉबी’ के निर्माण के दिनों में राज कपूर ने एक सुबह तीन बजे लक्ष्मीकांत को अपने पास आने के लिए फोन किया तो जानते है, क्या सुनने को मिला ‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या ?
इस किस्म के नखरे पालने में दिलीप कुमार राज कपूर से थोड़े ऊपर ही है। ‘बैराग की शूटिंग चल रही थी। सैट पर दिलीप कुमार आये और आराम से -कुर्सी पर बैठ गये। तभी उनकी नजर बैकग्राउंड के लिए लगाए गये पर्दे पर पड़ी। वह काफी देर तक पर्दा देखते रहे। फिर आवाज दी “अग्निहोत्री” (दिलीप का खास चमचा)
जैसे चिराग घिसते ही जिन्न हाजिर हो जाता है, अग्निहोत्री हाजिर हो गया। दिलीप कुमार ने उसे ऑर्डर दिया “आर्ट डायरेक्टर को बुलाओ
लीजिए साहब, अगले ही पल आर्ट डायरेक्टर भी हाथ जोड़कर सामने खड़ा हो गया। अब सितारे-आजम दिलीप ने अगला आदेश दिया पर्दे का रंग परेशान कर रहा है। बदल दो।
लीजिए, सारे सैट पर हड़बड़ी मच गई। आर्ट डिपार्टमेंट के लोग इधर-भागने लगे। कुछ देर बाद पर्दा बदल दिया गया। मेक-अप रूम में बैठे दिलीप साहब को सूचना दी गई। दिलीप साहब मेक-अप रूम से आए, पर्दे को गौर से देखा और गर्दन को झटका देकर बोले इससे तो पहले वाला पर्दा ही अच्छा था कोई बात नही, आज परदे का रंग मेरे मूड से मेल नही खा रहा है। मैं जाता हूं शूटिंग कल होगी।
यह शाही फरमान जारी कर शाह दिलीप कुमार शाही शान से अपनी शाही कार की ओर बढ़ गये। तबाही हुई तो बेचारे निर्माता की। अब इतना हमें पता नही चला कि अगली बार शूटिंग में दिलीप साहब का मूड बदल गया या कोई नया पर्दा लगाया गया।