मायापुरी अंक 3,1974
‘चाँदी सोना’ की शूटिंग से वापस आने के बाद से बेचारा संजय बड़ा दुखी है। वह जिन पत्तों पर तकिया करके मॉरिशस गया था, वही उसे हवा देने लगे थे। अहमदाबाद से बम्बई शिफ्ट होने पर संजय पहला हीरो था जिसने परवीन बॉबी को अपने साथ हीरोइन लिया और दूसरे निर्माताओं से कहकह कर उसे फिल्में दिलवाई। लेकिन फल लगने वाले वृक्ष की तरह झुकने की बजाए उसने उसी को आंखें दिखानी शूरू कर दी।
कहते हैं मॉरिशस में डैनी का काम नही था किन्तु परवीन बॉबी ने अकेले जाने से इन्कार कर दिया आखिर डैनी को साथ ले जाना पड़ा। मॉरिशस में जहां सबका अलग-अलग रहने का प्रबन्ध किया गया था वहां डैनी और परवीन अलग रहने की बजाए एक साथ ही रहे और कहानी के मुताबिक जब संजय ने परवीन को पानी में तैरते हुए कुछ दृश्य फिल्माने चाहे तो परवीन ने साफ इन्कार कर दिया। संजय इस वजह से परवीन से बहुत नाराज है और बम्बई पहुंच उसी अदांज में परवीन से लड़ चुका है जैसे कभी मुमताज से लड़ा था।
इसी को कहते है हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊं !
अब आप कहिये यह दुख की बात है या नही ? संजय इसीलिए कश्मीर में अपनी पत्नी के साथ गम गलत कर रहा है।