समीर अंजान के पिता अंजान (जिसका असली नाम लालजी पांडेय था) पूरे भारत के उत्तर से अधिक हिंदी भाषा के सबसे लोकप्रिय कवियों में से एक थे। वह सुमित्रानंदन पंत, अज्ञेय और यहां तक कि वह डॉ हरिवंशराय बच्चन जैसे अन्य महान हिंदी कवियों की तरह ही लोकप्रिय थे। वह लोकप्रियता में एक नए स्तर पर पहुंच गए जहां उन्होंने ‘मधुशाला’ की एक पैरोडी लिखी। यह हरिवंशराय बच्चन द्वार लिखी गई हिंदी कविताओं का संग्रह थी। जिसे ‘मधुबाला’ नाम दिया गया। अंजान को एक दिन अहसास हुआ कि सिर्फ कविता लिखना ही काफी नहीं है, इसके बाद वह एक गीतकार बनने की उम्मीद में मुम्बई पहुंचे। मुम्बई पहुंचते ही उनके सपने जल्द ही बुरे सपने के रूप में बदल गए। शहर में रहने के लिए उन्होंने हिन्दी में ट्यूशन देना शुरू कर दिया। अंजान को पूरा विश्वास था कि एक दिन उनका सपना जरूर पूरा होगा। लेकिन उन्हें उस दिन के लिए कई सालों तक इंतजार करना पड़ा। अंजान को फिल्म ‘गोदान’ के गाने लिखने के लिए उनका पहला ब्रेक मिला, उनके गानें व काव्य काफी प्रसिद्ध हुए लेकिन फिल्म ने ज्यादा कमाल नहीं दिखाया। इसके लिए उन्हें दंडित भी किया गया, सैकड़ों फिल्मों में गाने लिखने का कोई प्रस्ताव नहीं मिला। सत्तर के दशक में कुछ अजीब संयोग से उनकी मुलाकात बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन से हुई जिससे उनका भाग्य बदल गया। उन्होंने अमिताभ बच्चन सहित अनेक सितारों के लिए गाने लिखे, विशेष रूप से प्रकाश मेहरा द्वारा बनाई गई फिल्में। संघर्ष के बाइस साल बाद उन्होंने खुद का घर बनवाया व तीन टाइम खाने का इंतजाम कर पाए। उनके साथ उनके छोटे भाई गोपाल पांडेय रहते थे जो आज इंडस्ट्री के पीआर हैं।

अंजान की जिंदगी अच्छी चल रही थी, एक दिन उन्हें अपने बेटे समीर पांडेय का खत मिला जिसने एम.कॉम की पढ़ाई पूरी की थी। उनका बेटा समीर मुम्बई आना चाहता था। पिता ने समीर को हतोत्साहित करने की बहुत कोशिश की। लेकिन समीर नहीं माने वह बनारस की ट्रेन पकड़ मुम्बई आ गए। मुम्बई आकर समीर ने अपने पिता को कहा कि वह उनके नक्शेकदम पर चल कर सॉन्ग-राइटर बनना चाहते है। पिता व अंकल ने सपनों के शहर मुम्बई के बारे में जितना हो सके समीर को उतना डराया। लेकिन समीर तो अपने ही सपनों को संजोय हुए थे। बहुत बार ऐसा भी हुआ है कि वे खुद के लिए खाने की व्यवस्था भी नहीं कर पाए।
कई बार तो ऐसा भी हुआ कि वह अपनी जिंदगी से हताश हो गए। मुझे याद है कि किस तरह संघर्षरत संगीत निर्देशक श्याम सागर समीर की कविताएं सुनने को तैयार हुए थे। श्याम सागर ने जब समीर की कविताएं पढ़ी थी तो उन्होंने बिना कुछ कहें उनकी लिखी गई कविताओं के कागज बाहर फेंक दिये। समीर पांडेय को इसी तरह के कई अन्य कड़वे अनुभवों का सामना करना पड़ा था। जब तक उन्हें उनकी पहली फिल्म ‘बेकरार’ व ‘ अब आएगा मजा ‘ में ब्रेक नहीं मिला था। उस समय वह काफी रोमांचित हुए थे यह जान कर कि उनकी पहली फिल्म में लता मंगेशकर द्वारा गाया हुआ गाना था। समीर के संघर्ष का सफर आसान होता चला गया। संगीत निर्देशकों- नदीम श्रवण, आनंद-मिलिंद, अनु मलिक के साथ उन्होंने फिल्म ‘साजन’, ‘आशिकी’, ‘दिल है कि मानता नहीं’ के लिए काम किया। समीर को सबसे बड़ी उपलब्धि तब मिली जब उन्हें फिल्मफेयर में तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। समीर का बेहतरीन सफर शुरू हो चला था जिसमें उनके रूकने की कोई गुंजाइश नहीं थी। वह पंद्रह मिनट में कोई भी गाना बना देते थे, यहां तक कि जब वह ट्रैफिक-जाम में फंसे हो या वह घर से रिकॉर्डिंग स्टूडियो जाते, हर जगह वह गाने बना देते। जल्द ही उन्होंने यह भी गिनना छोड़ दिया था क्योंकि इतने गाने लिखे जिन्हें गिनते रहना संभव नहीं हो पा रहा था।
श्री विश्वास नेरुरकर जो नौशाद, शंकर-जयकिशन, खय्याम संगीतकारों के काम के बारे में संक्षेप में वर्णन किया करते थे। नेरुरकर की कड़ी मेहनत का परिणाम था कि उन्होंने तथ्यों को एक साथ देखा वह यह अहसास किया कि गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में समीर का नाम दर्ज होना चाहिए, समीर ने अस्सी के दशक तक तीन हजार से अधिक गीत लिखे थे। समीर ने 15 दिसंबर 2015 तक 650 फिल्मों में गीत 3524 में लिखे। गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स समिति में समिति द्वारा नाम जाने के फैसले से पहले तथ्यों को रखा था। गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में बॉलीवुड के लिए कोई भी वर्ग नहीं था, लेकिन समीर के काम को देखते हुए समिति ने बॉलीवुड गीतकार के लिए एक नई श्रेणी जोड़ी जिसमें सबसे अधिक गाने लिखने वाले का नाम आना था। गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स की इस श्रेणी में समीर के नाम की घोषित किया गया। समीर के लिए यह मानना लगभग अविश्वसनीय था। उन्हें इस बात का यकीन होने में कई दिन व रातें लग गए। समीर को इस बात का विश्वास तब हुआ जब उन्हें गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स द्वारा प्रमाण पत्र मिला। उन्होंने 15 फरवरी को सन-एन- सैंड, जुहू होटल में इस खुशी को अपनों साथ सेलिब्रेट किया।
समीर पांडेय जो अब समीर अंजान है बहुत ही सरल और विनम्र गायक व कवि हैं। समीर ने अपने पिता का नाम अपने नाम के साथ जोड़ा। समीर का मानना था कि जो भी उनके पिता को ना जानता हो वह अब से उनके नाम के जरिए जानेंगे। इसलिए समीर ने अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम जोड़ा। लगभग सभी गायकों व संगीतकारों ने उनकी इस उपलब्धि के लिए बधाई दी। सभी का यही कहना था कि गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में समीर का नाम आना भारतीय फिल्म इंडस्ट्री व संगीत की दूनिया के लिए सम्मान की बात है। वह समय बहुत ही यादगार था जब फिल्म इंडस्ट्री के सभी गायक मौजूद थे। बप्पी लाहिड़ी सभी सोने के आभूषण पहने नजर आए थे। सुरेश वाडकर, अनु मलिक, आनंद-मिलिंद, साधना सरगम, अलका याग्निक, अभिजीत, शान, उदित नारायण, दानिश खान सहित अन्य गायक भी इस अवसर पर मौजूद थे। समीर जो अपनी भावनाओं को बहुत ही मुश्किलों से व्यक्त करते थे, सभी गायकों व संगीतकारों का शुक्रिया किया। इस मौके पर उन्होंने अपनी सफलता का प्रमुख श्रेय अपनी पत्नी अनिता को दिया। उन्होंने यह भी बताया कि अनिता ने बिना किसी सवाल जवाब के उनका साथ दिया कि मैं इस तरह की सैकड़ों पार्टियों का हिस्सा बना हूं लेकिन मैं उस समय किसी तरह का परमानंद महसूस नहीं कर रहा था। मुझे उस समय अपने एक दोस्त की याद आ रही थी जिसने संघर्ष जारी रखने के लिए अपने आप में अपने विश्वास को जीवित रखा, यहां तक कि उन्होंने अपने जीवन में कपड़े धोने का साबुन भी बेचा। समीर आशा भोंसले के बाद दूसरे ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने रिकॉर्ड के प्रतिष्ठित पुस्तक में एक जगह बनाई थी। क्या समीर अंजान जैसे विनम्र व्यक्ति सुकुन के हकदार नहीं थे ? जिन्हें मीडिया घेरे हुई थी, बिना सुकुन के पल दिये। इस मौके पर बप्पी लाहिड़ी के साथ समीर की फोटो भी प्रकाशित की गई थी, जिसके कैप्शन में लिखा था ‘बप्पी लाहिड़ी और समीर अंजान एक इवेंट में’ समीर व बप्पी ने एकसाथ दो सौ फिल्मों के लिए काम किया था।