निस्संदेह ही यश चोपड़ा एक ऐसे फिल्ममेकर रहे जिन्होंने सबको प्यार व इज्जत दी जिसके वह खुद भी हकदार रहे। उनकी फिल्म ‘धूल का फूल’, ‘धर्मपुत्र’ व ‘इत्तेफाक’ जो उन्होंने बहुत पहले बनाई थी इन फिल्मों को छोड़ सभी फिल्में रोमांटिक फिल्म कहलाती है। यश चोपड़ा प्यार को प्रदर्शित व रोमांस को जिंदा करने वाले एक फिल्ममेकर ही नहीं बल्कि वह कई अन्य बातों व वास्तविक जीवन में व्यक्ति के रूप में अच्छे प्रेमी भी थे।
जब वह जालंधर में स्टूडेंट थे तब भी वह फिल्मों के लिए पागल थे। उनके पिता चाहते थे कि वह इंग्लैड जाएं व वहां जाकर आईसीएस की तैयारी करें पर कहीं न कहीं यश ने अपना दिमाग फिल्मों के लिए सेट कर रखा था। वह अपने बड़े भाई बीआर चोपड़ा की सफलता से प्रेरित थे। इसके साथ ही वह कहीं न कहीं उनकी तरह बनना चाहते थे। उन्हें अपना सपना तब साकार होता दिख रहा था जब उनके पिता ने उन्हें यह कहा कि इग्लैंड जाने से पहले तुम अपने भाई के साथ मुम्बई जाकर कुछ समय बिताओ। यश ने अपने पिता की बात मान ली व फिल्मों के लिए उनके प्यार को बड़ा बढ़ावा मिला जब उन्होंने अपने बड़े भाई को फिल्मों के साथ मैजिक करते देखा। उन्होंने बहुत ही मुश्किलों से हिम्मत जुटा कर अपने भाई को अपने एंबिशन के बारे में बताया। बीआर चोपड़ा ने यह देखा कि उनका छोटा भाई फिल्मों के लिए किस कदर पागल है।

उन्होंने बिना अपने पिता को बताए यश को बतौर असिस्टेंट काम दिलवाया। बीआर चोपड़ा फिल्मों के प्रति अपने भाई के पागलपन को समझते थे व इसलिए उन्होंने यश को बतौर असिस्टेंट काम दिलवाया था। यश ने खुद को इस क्षेत्र में साबित किया व उन्हें बतौर डायरेक्टर फिल्म ‘धूल का फूल’ व ‘धर्मपुत्र’ को डायरेक्ट करने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने ‘वक्त’ फिल्म डायरेक्ट की। उन्होंने उल्लेखनीय निर्देशक के रूप में इस फिल्म को बनाया था जिसे आम जनता, वर्गों और आलोचकों द्वारा स्वीकार किया गया था। फिल्मों के लिए उनका प्यार विजयी था। यश चोपड़ा सबसे बड़े रोमांटिक फिल्म निर्माताओं में से एक बन गए व सामान्य रूप से जीवन में प्यार के लिए जाने जाते रहे। उन्होंने मेरे साथ बहुत बार फिल्मों के लिए अपने प्यार को शेयर किया था। जब यश कॉलेज में पढ़ते थे तब वह साहिर लुधियानवी की कविताएं पढ़ा करते थे व दिल से उनकी सभी कविताएं के बारे में जानते थे। वह किसी भी समय और किसी भी परिस्थिति में साहिर की लाइनों को सुना सकते थे। उनके दोस्तों ने जब उन्हें यह बताया कि उनके भाई के लिए साहिर बतौर गीतकार काम कर रहे हैं तो यश यह सुन रोमांचित हो गए थे। साहिर ने यश चोपड़ा कि बहुत सी फिल्मों के गाने लिखे थे व उनका आखिरी गाना यश जी के साथ ‘कभी-कभी’ रहा।
यश चोपड़ा दिलीप कुमार से बहुत प्यार करते थे उनकी दोस्ती दिलीप कुमार के साथ फिल्म नया दौर के समय हुई जब उन्होंने इस फिल्म के लिए बतौर असिस्टेंट काम किया था। वह दिलीप कुमार व लता मंगेशकर जी के बहुत बड़े भक्त थे। यश इनके बारे में कहा करते थे कि ‘ये दो लोग, अगर इनको कभी भी कुछ हो गया तो मैं जिंदा नहीं रहूंगा’ जीवन अपने हिसाब से चलता है यश चोपड़ा इस दुनिया से चले गए। दिलीप व लता के दिल व दिमाग में यश चोपड़ा की यादें जीवित हैं। यश ने साधना व मुमताज (अभिनेत्रियां ) जो कि उनका प्यार थी उनके बारे में मुझे बताने के लिए एक घंटे से अधिक समय ले लिया। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने साधना के साथ किस तरह टेलीफोन पर 12 घंटे बात की। फिल्म ‘आदमी और इंसान’ बनाने के समय यश मुमताज के प्यार में इस कदर दिवाने हो गए थे कि उन्होंने अपने भाई से कहा कि वह मुमताज से शादी करना चाहते हैं पर बीआर चोपड़ा इसके खिलाफ थे। जिसके कारण उनका सपना टूट गया।

दिल्ली में उन्होंने एक लड़की को देखा जो उनके भाई व परिवार वालो ने उनके लिए पसंद की थी पर यश ने इस लड़की से शादी करने के लिए इंकार कर दिया था। दूसरी बार वह लड़की से मिले तो उन्हें अहसास हुआ कि यह वही लड़की पामेला है जो बतौर एयर होस्टेस बीओएसी के साथ काम कर रही है, तब उन्हें विश्वास हुआ कि यह उन्हीं के लिए बनाई गई है। उन्होंने पामेला से शादी करने का निर्णय लिया व उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें पामेला से शादी के बाद प्यार हो गया था। यश अच्छे म्यूजिक से प्यार किया करते थे व अपने घर में ग्रेंड म्यूजिक का आयोजन भी करते थे। उनके पसंदीदा म्यूजिक कंपोजर मदन मोहन, रवि और कल्याणजी- आनंदजी रहे। यश चोपड़ा को आउटडोर शूट करने बहुत पसंद था वह कश्मीर में शूट करना का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। इसके साथ ही उनका पसंदीदा स्थान स्विट्जरलैंड था। जहां उन्होंने अपनी कुछ फिल्मों की शूटिंग भी की थी। उनकी आखिरी फिल्म ‘जब तक है जान’ थी। जो स्विट्जरलैंड मे शूट की गई थी।

यश खाने के भी बहुत शौकीन थे। उनका सामान्य नाश्ता एक दावत की तरह होता था। वह हमेशा ही अपने यूनिट का खाना इंज्वॉय किया करते थे। वह दुनिया की हर छोटी या बड़ी खाने की जगह को जानते थे। जहां वह एक बार तो जरूर ही जा चुके थे।
यश को चकाचक ऑफिस पसंद था। चाहे वो राज कमल स्टूडियो का ऑफिस हो या जुहू के विकास पार्क का ऑफिस। सारे ही ऑफिस शानदार रहे। उनका सबसे बेहतरीन ऑफिस उनके बेटे आदित्य ने डिजाइन करवाया था जो कि अंधेरी में यशराज स्टूडियो की चौथी मंजिल पर स्थित था। यह भाग्य की विडम्बना रही कि एक मच्छर ने उन्हें डंक मार दिया, जिस कारण जीवन के सबसे बड़े प्रेमियों में से एक यश चोपड़ा के जीवन का अंत हो गया।