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एआर. रहमान के जन्मदिन पर एक विशेष लेख में उनकी विनम्रता और संगीत के प्रति समर्पण को दर्शाया गया है। लेख में बताया गया है कि कैसे रहमान ने अपने करियर की शुरुआत तमिल फिल्मों से की और मणिरत्नम की फिल्म "रोजा" के साथ प्रसिद्धि प्राप्त की।
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रहमान का संगीत का सफर संघर्ष से भरा रहा है। अपने पिता की मृत्यु के बाद, उन्होंने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए वाद्ययंत्र बेचे, लेकिन इलैयाराजा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अपने ऑर्केस्ट्रा में शामिल कर लिया।
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रहमान को "मद्रास के मोजार्ट" के रूप में जाना जाता है और उन्होंने दक्षिण भारतीय और हिंदी फिल्मों में कई हिट संगीत दिए हैं। उनके संगीत ने भारतीय सिनेमा में एक नई क्रांति लाई।
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लेख में बताया गया है कि रहमान की सफलता का श्रेय उनकी मां, अल्लाह और उनके समर्थकों को जाता है। वह अपनी माँ के साथ हमेशा जुड़े रहते हैं और उनकी माँ के भोजन को सबसे अधिक पसंद करते हैं।
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रहमान का संगीत रात के समय में बनता है, जब वे प्रार्थना और अभ्यास के बाद काम करते हैं। उनका मानना है कि संगीत की देवी रात में सबसे अच्छा आशीर्वाद देती हैं।
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रहमान की विनम्रता का उल्लेख करते हुए, लेख बताता है कि उन्होंने कभी प्रतिस्पर्धा की चिंता नहीं की और हमेशा अपनी सफलता का श्रेय अल्लाह को दिया।
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लेख में रहमान के "मां तुझे सलाम" गीत का विशेष उल्लेख है, जो भारतीय मातृभूमि के प्रति उनके गहरे प्रेम को दर्शाता है। यह गीत भारतीयों के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत माना जाता है।
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लेख में रहमान के जीवन के कुछ व्यक्तिगत अनुभवों का भी उल्लेख है, जैसे कि उनके पहले पुरस्कार समारोह का अनुभव और विभिन्न संगीतकारों और निर्देशकों के साथ उनके संबंध।
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रहमान की संगीत यात्रा ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान दिलाई है, और उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिसमें ग्रैमी और ऑस्कर शामिल हैं।
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लेख में रहमान के जीवन और करियर के विभिन्न पहलुओं को छूते हुए, उनके संगीत के प्रति जुनून, विनम्रता और भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पण को उजागर किया गया है।
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