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बलराज साहनी, हिंदी सिनेमा के महानायक, अपने समय के प्रमुख अभिनेताओं में से एक थे, जिनके अभिनय ने आम लोगों को प्रभावित किया।
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उनकी मां के कारण लेखक को हिंदी फिल्मों में रुचि हुई, और साहनी उनके पसंदीदा थे। उनकी फिल्मों में 'दो बीघा जमीन', 'काबुलीवाला' और 'सीमा' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
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बलराज साहनी ने राजनीति में भी सक्रिय भागीदारी की थी। उन्होंने वीके. कृष्ण मेनन के समर्थन में भाषण दिया था, जिससे मेनन को चुनाव में जीत मिली थी।
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वे एक समर्पित कलाकार थे जिन्होंने अपनी भूमिकाओं के लिए गहन तैयारी की। 'दो बीघा जमीन' के लिए उन्होंने खुद को रिक्शा चालक के रूप में ढाला और 'काबुलीवाला' के लिए पठानों के साथ रहे।
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बलराज साहनी के जीवन में कई व्यक्तिगत त्रासदियाँ थीं। जुहू में अपने बंगले 'इकराम' के बनने के बाद, उनकी पहली पत्नी और बेटी की मृत्यु हो गई, जिससे वे टूट गए थे।
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'गर्म हवा' उनकी अंतिम फिल्म थी, जिसने उनके जीवन के तनाव को और बढ़ा दिया। इस फिल्म में उनकी बेटी की आत्महत्या का दृश्य फिल्माया गया था, जिसने उन्हें भावनात्मक रूप से प्रभावित किया।
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59 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। उनके अंतिम संस्कार में लोग बिना किसी धार्मिक संस्कार के शामिल हुए, और अज्ञात अभिनेता अमिताभ बच्चन भी वहां मौजूद थे।
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बलराज साहनी का जीवन और उनके योगदान को उनके बेटे परीक्षित साहनी ने 'द नॉनकॉनफॉर्मिस्ट' नामक जीवनी में संजोया है। उनका घर 'इकराम' अब खंडहर में बदल गया है, लेकिन उनकी यादें लोगों के दिलों में जीवित हैं।
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