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बॉलीवुड में निर्देशक और स्टार के बीच ईगो और मनमानी की बातें नई नहीं हैं। इस लेख में एक पुराने किस्से का जिक्र है जब निर्देशक विजय भट्ट और स्टार राज कपूर के बीच इसी वजह से मतभेद हो गया था।
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विजय भट्ट, जो 'राम राज्य', 'गूंज उठी शहनाई', और 'हिमालय की गोंद में' जैसी फिल्में बना चुके थे, ने एक विशेष स्क्रिप्ट तैयार की थी और उसे लेकर राज कपूर के पास गए थे। राज कपूर को कहानी पसंद आई, लेकिन उन्होंने कुछ बदलावों की मांग की।
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विजय भट्ट ने राज कपूर की मांग को ठुकरा दिया और दोनों के बीच ईगो की वजह से विवाद हुआ। राज कपूर ने फिल्म में काम करने से मना कर दिया और भट्ट ने भी कहानी में कोई बदलाव नहीं किया।
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भट्ट साहब ने फिल्म बनाने का इरादा नहीं छोड़ा और एक नए कलाकार की तलाश में जुट गए। अंततः उन्होंने एक संघर्षरत कलाकार भारत भूषण को फिल्म 'बैजू बावरा' में मुख्य भूमिका के लिए चुना।
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इस फैसले से कई लोग आश्चर्यचकित हुए, क्योंकि भारत भूषण उस समय एक जूनियर आर्टिस्ट थे। फिल्म को शुरू में फ्लॉप करार दिया गया, लेकिन धीरे-धीरे यह हिट हो गई और अंततः ब्लॉकबस्टर साबित हुई।
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'बैजू बावरा' की सफलता ने भारत भूषण को स्टार बना दिया और यह फिल्म दो साल तक थिएटर में चली। यह विजय भट्ट की अदम्य इच्छाशक्ति और उनकी कला के प्रति समर्पण का प्रमाण थी।
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फिल्म 'बैजू बावरा' की सफलता ने यह साबित कर दिया कि सही मेहनत और दृढ़ निश्चय से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है।
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यह कहानी आज भी बॉलीवुड में निर्देशक और स्टार के बीच ईगो की जंग को दर्शाती है और बताती है कि कैसे एक निर्देशक ने अपने निर्णय पर अडिग रहकर एक ऐतिहासिक फिल्म बनाई।
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