कोरोना की वैक्सीन आने को है पिछले 10 महीनों में गरीबों पर क्या गुजरी है, बताने की ज़रूरत नहीं है। इस पेंडेमिक दौर में बहुत से लोग – लोगों की सहायता के लिए आगे आए- जिनमें कुछ फ़िल्म वाले, प्रबुद्ध वर्ग, ट्रस्टी और अभिनेता भी थे।
शरद राय
एक ऐसा व्यक्ति भी था जो लगातार अपनी परवाह किये बिना स्लम- बस्तियों में दौड़ता रहा है
ऐसा ही सहयोग कार्य करने वाले लोगों में एक ऐसा व्यक्ति भी था जो लगातार अपनी परवाह किये बिना स्लम- बस्तियों में दौड़ता रहा है।
बिना एक दिन भी नागा किये, मुम्बई के झोपड़ पट्टियों में जो कुछ भी था, लेकर जानेवाले वह व्यक्ति थे सुधीर मंगर और उनके साथी।
अब, जब बाकी के सभी सहयोग- कर्मी लोग थक कर बैठ गए हैं, सुधीर मंगर का गरीबों तक पहुंचने का क्रम जारी है। वह उसी उत्साह से लोगों तक मदद पहुचाने आज तक झोपड़ पट्टियों में जाने में जुड़े हैं।
अब तो उनकी दिक्कतें और बढ़ गई हैं। ना खाने को है, ना नौकरी है, ना सरकारी सहायता है ! उनकी परेशानियां तो अब बढ़ी हैं।“ सुधीर मंगर अफसोस के साथ कहते हैं। “यह एहसास होता है जब स्लम वालों के बीच से गुजरो।
सुधीर मंगर एक लेखक हैं। वह सामाजिक दायित्व की कई छोटी मगर मीनिंगफुल फिल्में बनाये हैं। मानसिक विकलांग बच्चों के लिए बनाई गई उनकी एक शाॅर्ट फ़िल्म “तुम्हारे प्यार के हकदार हैं हम’ बेहद पसंदीदा फ़िल्म रही है।
युवकों में धूम्र पान को लेकर उनकी फिल्म “100 जव ’0’ जव 100’’ को बहुत पुरस्कार मिल चुके हैं। गौशाला विषय पर तथा कई चर्चित शख्सियतों पर बनाई गई अपनी बायोपिक- फिल्मों के लिए वह सम्मानित हो चुके हैं।
सहायता सिर्फ पैसों से नही की जा सकती, ज़रूरतें मुख्य हैं
उनकी लिखी एक किताब ’सच’ बहुत चर्चित रही है। कोरोना के इस त्रासद काल में उन्होंने उस सच को महसूस किया है जो वह लिखते रहे हैं।
“जब मैं स्लम में जाता हूं कुछ सहायता पहुचाने की नियत लेकर, लगता है महामारी ( बीमारी) ज़रूर जा रही है लेकिन अपने पीछे भुखमरी व लाचारी की बड़ी खाईं छोड़े जा रही है।
सहायता सिर्फ पैसों से नही की जा सकती, ज़रूरतें मुख्य हैं। इस सोच के साथ मंगर और उनकी टीम ने पहले साधन जुटाए। जो- ’जो कुछ’ दे सकता था उससे इकट्ठा किए। “ मैंने देखा लोग सामथ्र्य के मुताबिक आगे बढ़ कर देने वाले थे।
किसी ने पुराने कपड़े दिए, किसी ने कम्बल, किसी ने अनाज, किसी ने खाना पकाने के बर्तन दिए। उनकी भावना देख कर दिल भर आता था! खुद मुसीबत में हैं लेकिन दूसरों को मुसीबत से बचाने की इच्छा शक्ति सब मे दिखी। हम उस सामग्री को लोगों तक पहुचांने में जुड़ गए।
मेरे साथ और भी लोग जुड़ते गए। मैंने देखा पुराने कपड़े, खाने के पैकेट वगैरह ज़रूरतमंद लोगों ने सहर्ष लिया भी।“
सुधीर मंगर ने लगभग 500 स्कूलों और कालेजों में छात्रों के बीच “क्विट सिगरेट“ और “सेव वाटर“ विषय पर मोटिवेशनल लेक्चर दिया है। वह कहते हैं- “मेरे और मेरी टीम के निःस्वार्थ काम करने के पीछे कई सामाजिक-संस्थाएं हैं।
वगैर उनका साथ पाए मैं यह सब नहीं कर पाता। मैं उन सभी संस्थाओं का दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूं।“ वह असुरक्षित जानवरों के लिए भी कई शाॅर्ट फिल्में बनाए हैं। कहते हैं- अपनी फिल्म मेकिंग, लेखन, निर्देशन के दौरान मैंने असहाय तबके को देखा था।
“मेरे साथ लोग आए, मैंने किया और हम लोग सब साथ में कर रहे हैं” सुधीर मंगर
लेकिन, इस कोविड की महामारी में मैंने समर्थ लोगों को असहाय हुआ महसूस किया है।“ मदद का तरीका क्या था जो इतने लंबे समय तक वे लोग कार्य मे जुटे रह सके ? को समझने के लिए वह कागज पर लिखा चार्ट दिखाते हैं, जिसमें रोज़ रोज़ की कीगई प्लानिंग दर्ज थी।
20 मार्च से 31 मई तक सुधीर मंगर और उनके साथियों ने करीब 30 स्पॉट का चुनाव किया था जो स्लम एरिया के थे। यहां उन्होंने खिचड़ी, मास्क (न-95), राशन, पूरी भाजी, राशन- पैक, कपड़े आदि करीब 20,000 लोगों में वितरित किया था।
फिर 14 जून से पिछले 20 नवम्बर तक इनकी टीम ने अंधेरी पूर्व के साथ अंधेरी पश्चिम की स्लम एरिया (64 स्पॉट) को केंद्रित किया।
यहां भी मुख्य रूप से राशन और जीवनोपयोगी दूसरी चीजों को गरीबों तक पहुचाने का काम किया। करीब एक लाख लोगों तक हमने पहुचने की कोशिश किया है।
“हम लोगों ने मदद का सीधा रास्ता नहीं अपनाया बल्कि कहां क्या देना है इसको भी कागज़ पर प्लान बद्ध किया।’’ बताते हैं मंगर। “बाद में हमारे साथ डोनर जुटते गए।
लोग देने के लिए हमारे साथ आगे आए। लेकिन हमने मदद में कैश देने की बजाय लोगों को कहा कि दुकान पर जाओ और वहां से सामान लेकर जाओ।
इस तरह से हमने सब कुछ ट्रांसपेरेंट रखा। हमने कोरोना टेस्ट करवाए। हेल्थ वर्करों को सपोर्ट किया। लावारिस जानवरों, कुत्तों को खिलाने की व्यवस्था किया।
गरीबों के बच्चों के लिए डायपर, बिस्किट, डिटर्जेंट पावडर,नोटबुक, ग्लोब्स,मास्क के हज़ारों पैकेट्स, ब्लाइंड म्यूजिक आर्टिस्ट, कैंसर पेशेंट और हैंडीकैप्ड बच्चों के लिए राहत देने वाली सामग्री का वितरण किया है और करते जा रहे हैं।“
“यह सब इसलिए नहीं बता रहा हूं कि प्रचार लेना है। बल्कि इसलिए कि लोग जानें कि सेवा के लिए बिना साधन और बिना सामग्री लिए भी आगे बढ़ा जा सकता है।
आपकी सोच क्लियर होनी चाहिए। मकसद निःस्वार्थ होना चाहिए। देखिए लोग खुद ब खुद साथ आते हैं। मेरे साथ लोग आए, मैंने किया और हम लोग सब साथ में कर रहे हैं।“