1997 की फिल्म Pardes प्यार, संस्कृति और संगीत का एक सेलिब्रेशन हैं फिल्म की पृष्ठभूमि, प्रेम, लालसा और भारतीय संस्कृति के जीवट रंगों से बुनी गई एक शानदार दर्शन गैलेरी है जहां एक ऐसी दुनिया का निमंत्रण है जो स्वप्नआकाश की तरह असीमित है, जहां दिल, जुड़ाव के लिए तरसता है... By Sulena Majumdar Arora 09 Aug 2024 in गपशप New Update Listen to this article 0.75x 1x 1.5x 00:00 / 00:00 Follow Us शेयर सत्ताईस साल - - -, उफ! समय कैसे पलक के एक निमेष में, बस एक झपकी में गुज़र जाता है. फिर भी जब सिनेमाई अनुभवों के दायरे में देखते हैं तो लगता है, एक काल खंड गुज़र गया. भारतीय सिनेमा के इतिहास में सुभाष घई का वो बहुचर्चित और कुछ कुछ विवादास्पद फ़िल्म 'परदेस' एक चमकता हुआ पन्ना बनकर अंकित है, जिसकी चमक आज भी कम नहीं हुई है, और जिसकी उष्णता हमेशा की तरह आज भी एक कम्फर्ट फ़िल्म के रूप में देखा जाता है. फिल्म की पृष्ठभूमि, प्रेम, लालसा और भारतीय संस्कृति के जीवट रंगों से बुनी गई एक शानदार दर्शन गैलेरी है जहां एक ऐसी दुनिया का निमंत्रण है जो स्वप्नआकाश की तरह असीमित है, जहां दिल, जुड़ाव के लिए तरसता है, लेकिन संस्कृति की दीवारें पूर्व और पश्चिम को जीवन की विभिन्न धुनों की ताल पर धड़काता है . 'परदेस', 1997 में रिलीज़ हुई वो रोमांटिक ड्रामा म्यूजिकल फिल्म है जिसे प्रसिद्ध फिल्म निर्माता सुभाष घई ने भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की पृष्ठभूमि पर आधारित किया था. इसकी कथा, प्रेम, संस्कृति और पहचान के विषयों पर प्रकाश डालती है. 1997 में, जब हिंदी सिनेमा ने नए जमाने के संगीत में मधुरता की तलाश करना शुरू कर दिया था, ऐसे में बॉलीवुड के जादूगर, शाहरुख खान के साथ नवागंतुक महिमा चौधरी और अपूर्व अग्निहोत्री अभिनीत, इस फिल्म ने अपने मधुर साउंडट्रैक और सम्मोहक कथा के साथ दर्शकों के दिलों पर कब्जा कर लिया. अमरीश पुरी, आलोक नाथ और हिमानी शिवपुरी जैसे अनुभवी अभिनेताओं ने फ़िल्म को एक मजबूत ढांचा दिया. कहानी, अमेरिका में स्थित एक भारतीय व्यवसायी किशोरीलाल (अमरीश पुरी) की है, जो अपने पश्चिमी हवा में रंगे बेटे राजीव (अपूर्व अग्निहोत्री) के लिए एक भारतीय दुल्हन की तलाश करता है. आखिर अपने एक भारतीय दोस्त (आलोक नाथ) की सरल, शुद्ध, सुशील, संस्कारी बेटी गंगा (नवोदित महिमा चौधरी) उसे पसंद आ जाती है, लेकिन अपने वेस्टर्न कल्चर में डूबे शराबी और असंस्कारी बेटे को कैसे राजी करे, और गंगा के मन में भी किस तरह राजीव के लिए जगह बनाए, यह काम वो अपने एक दत्तक पुत्र अर्जुन (शाहरुख खान) पर छोड़ देता है. अर्जुन एक बेहद संस्कारी और भारतीय संस्कृति में रंगा हुआ लड़का है. अर्जुन गंगा से मिलकर राजीव के बुरे चरित्र को छिपाते हुए उसके बारे में अच्छी अच्छी बातें बताता है और दोनों को करीब लाने के लिए हर कोशिश करता है. लेकिन जब एक रात राजीव शराब के नशे में गंगा का शील हरण करने की कोशिश करता है, और विफल होने पर उसका गन्दा और भयानक रूप उजागर हो जाता है तो गंगा उसे थप्पड़ मार कर भाग जाती है. ऐसे में अर्जुन उसे हिफाजत में ले लेता है. गंगा अर्जुन के प्रेम में पड़ जाती है और अर्जुन भी गंगा से प्रेम करने लगता है. बहुत सारे ट्विस्ट और टर्न्स के बाद आखिर किशोरीलाल को सब बातों का पता चलता है और वो गंगा तथा अपने दत्तक पुत्र अर्जुन के पवित्र प्यार को स्वीकार कर लेता है. भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के सुरम्य स्थानों पर फिल्माई गई परदेस एक अद्भुत विजुअल ट्रीट साबित हुई. आइए अब परदेस मेकिंग के दौरान, पर्दे के पीछे की कुछ बातें बताएं. 1997 में रिलीज़ हुई 'परदेस' एक ब्लॉकबस्टर से कहीं अधिक थी. इस फ़िल्म ने, इसमें शामिल कई लोगों के करियर को एक महत्वपूर्ण उछाल दिया. नायक शाहरुख खान, सह नायक अपूर्व अग्निहोत्री, नायिका महिमा चौधरी, गायक कुमार शानू, सोनू निगम के साथ साथ खुद सुभाष घई के करियर को भी इस फ़िल्म ने एक नई जान दी. उन दिनों घई की 'परदेस' की यात्रा चुनौतियों से भरी थी. उनकी फ़िल्म 'त्रिमूर्ति' की व्यावसायिक विफलता के बाद, उन्हे भारी दबाव और इंडस्ट्री द्वारा उनकी काबिलियत पर संदेह का सामना करना पड़ रहा था. संदेह के आगे झुकने के बजाय, उन्होंने अपनी ऊर्जा अपने अगले प्रोजेक्ट 'परदेस' में लगा दी और उन्हे कामयाबी मिल गई. फ़िल्म की सफलता का राज इसके ध्यान से गढ़े गए पात्र, सधी हुई कथा और दिल छूने वाले गीत थे. घई ने स्टार पावर से अधिक चरित्र-चित्रण के महत्व पर जोर दिया. अर्जुन की भूमिका के लिए, उन्होंने शाहरुख खान के प्रसिध्द ऑन-स्क्रीन व्यक्तित्व को हटा कर उसे एक नया, कच्चा सा रूप दिया. शाहरुख़ ने भी उल्लेखनीय समर्पण के साथ इस चुनौती को स्वीकार किया, यहां तक कि अपने चरित्र को प्रामाणिक रूप देने के लिए उन्होने अपना पेटेंट जींस छोड़कर ट्राउसर्ज़ पहने. गंगा की कास्टिंग एक और मास्टरस्ट्रोक थी. घई को एक नए चेहरे की तलाश थी जो एक ग्रामीण लड़की की मासूमियत और उसके सपनों को आकार देने में सक्षम हो सके. गंगा की भूमिका के लिए माधुरी दीक्षित को लेने की इच्छा होने के बावजूद, घई की पारखी डाइरेक्शन दृष्टि ने एकदम नई महिमा चौधरी को पसंद किया , जिनका प्राकृतिक आकर्षण और प्रतिभा ने घई को इम्प्रेस किया. यह निर्णय घई और चौधरी दोनों के करियर के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. फ़िल्म की सफलता का श्रेय उसके संगीत को भी मिलनी चाहिए जिसने इस फ़िल्म की आत्मा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ऐसी अफवाहें भी हैं कि प्रारंभ में, घई ने एआर रहमान से संपर्क किया था, लेकिन शेड्यूलिंग विवादों के कारण उन्हें नदीम-श्रवण को चुनना पड़ा. अपनी चार्ट-टॉपिंग धुनों के लिए मशहूर नदीम श्रवण की जोड़ी ने एक ऐसा साउंडट्रैक दिया जो दर्शकों को सालों साल तक याद रहा. इस फ़िल्म के संगीत रेकॉर्डिंग पर एक खास किस्सा, इसकी क्रिएटिव प्रक्रिया के जादू पर प्रकाश डालता है. बताया जाता है कि घई को संगीत की काफी समझ होने के कारण उन्हे कोई भी गायक आसानी से खुश नहीं कर पाते थे लेकिन "दो दिल मिल रहे मगर चुपके-चुपके" गाने के लिए कुमार शानू की एक ही टेक में बेहतरीन प्रस्तुति ने घई के दिल को ऐसा छू लिया कि उन्होने उन्हे वहीं खड़े खड़े उन्हे गले लगा लिया. फ़िल्म 'परदेस', सोनू निगम की सफलता के लिए भी एक मंच के रूप में काम आया. इस फ़िल्म ने उनकी पिछली, मोहम्मद रफ़ी से प्रेरित शैली से हटाकर उन्हें एक बहुमुखी और स्वतंत्र गायक के रूप में स्थापित किया. फिल्म का संगीत तुरंत सनसनी बन गई थी . 'दो दिल मिल रहे हैं', "ये दिल दीवाना" 'जहां पिया वहां मै', 'मेरी महबूबा' और "आई लव माई इंडिया" जैसे गाने सिर्फ चार्ट-टॉपर्स से कहीं अधिक थे. वे ऐसे गाने बन गए जो एक नई मिलीनियम पीढ़ी को परिभाषित करते हैं. कविता कृष्णमूर्ति, आदित्य नारायण, के, एस चित्रा, अल्का याग्निक ने भी इस फ़िल्म में अपना मिडास टच जोड़ा. 1997, के दशक में यह फिल्म, भारत में बढ़ते अनिवासी भारतीय (एनआरआई) प्रवासी के अस्तित्व, संस्कृति और दर्द के साथ गहराई से जुड़ी हुई थी. इस फ़िल्म ने विदेश में रहने वाले भारतीयों की पहचान बनाए रखने की जटिलताओं पर उंगली रखी. यह एक ऐसा विषय था जिसने लाखों लोगों को प्रभावित किया. 'परदेस' में भारतीय और पश्चिमी संस्कृतियों के टकराव और सद्भाव को खूबसूरती से दर्शाया गया है. इसने दो दुनियाओं के बीच नेविगेट करने वाले व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों को प्रदर्शित किया, जो कई लोगों के लिए एक सच्चा अनुभव था. हमेशा की तरह इस फ़िल्म को भी सुभाष घई ने महिला प्रतिनिधित्व में एक कदम आगे रखा. गंगा के रूप में महिमा सामान्य बॉलीवुड नायिका से हटकर एक ताज़ा उदाहरण थी . उन्हें संकट में फंसी युवती के बजाय आकांक्षाओं वाली एक सरल, मासूम ग्रामीण लड़की के रूप में प्रस्तुत किया गया था. गंगा ने स्वतंत्र और महत्वाकांक्षी महिला पात्रों की एक नई लहर का प्रतिनिधित्व किया. 'परदेस' शाहरुख खान के करियर में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. जबकि वह पहले से ही एक सुपर स्टार थे, लेकिन इस फिल्म ने उनकी अभिनय क्षमताओं का एक अलग पहलू दिखाया. प्यार और कर्तव्य से जूझ रहे अर्जुन का उनका किरदार उनकी सामान्य रोमांटिक हीरो की छवि से हटकर था. और अंत में इस फ़िल्म ने अपने मेकर सुभाष घई को एक बार फिर एक मास्टर के रूप में पुनरुत्थान किया. सुभाष घई के लिए, 'परदेस' एक विजयी वापसी थी जो उनके करियर में एक मील का पत्थर बन गया. अपनी रिलीज़ पर, परदेस को मिश्रित समीक्षाएँ मिलीं. जबकि आलोचकों ने मुख्य अभिनेताओं के प्रदर्शन और फिल्म के संगीत स्कोर की प्रशंसा की, कुछ ने पाया कि पटकथा में गहराई की कमी है. फिर भी, फिल्म व्यावसायिक सफलता के रूप में उभरी और 1997 की सबसे अधिक कमाई करने वाली बॉलीवुड फिल्मों में से एक बन गई. 'परदेस' बॉक्स ऑफिस पर हिट रही, जिसने ₹10 करोड़ के बजट के मुकाबले दुनिया भर में ₹41 करोड़ (भारत में ₹35 करोड़, विदेशों में ₹6 करोड़) की कमाई की. इसने ₹3.4 करोड़ के मजबूत शुरुआती सप्ताहांत के साथ, भारत के 1997 के शीर्ष कमाई करने वालों में चौथा स्थान हासिल किया. इस फिल्म के प्रभाव को 43वें फिल्मफेयर पुरस्कारों में पहचाना गया, जहां इसे कई नामांकन प्राप्त हुए और सर्वश्रेष्ठ महिला पदार्पण (महिमा चौधरी), सर्वश्रेष्ठ महिला पार्श्व गायिका ("मेरी मेहबूबा" के लिए अलका याज्ञनिक), और सर्वश्रेष्ठ पटकथा (सुभाष घई) के पुरस्कार जीते. परदेस ने भारतीय सिनेमा की विरासत पर एक स्थाई असर छोड़ी,जिसने सिनेमा के इतिहास में एक क्लासिक के रूप में अपनी जगह पक्की कर ली है और बाद में इसे तेलुगु में "पेली कनुका" के नाम से बनाया गया. 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