चेतन आनंद जो अपनी फिल्म 'नीचा नगर' के लिये प्रसिद्ध हुए थे सालों क्रिएटिव जिन्दगी गुजारने के बाद आज भी इस बिजनेस में काम करते हुए अच्छा दर्शक गण मिलने पर अच्छी फिल्म बनाने का दावा करते हैं. 'हकीकत' 'हिन्दुस्तान की कसम', 'आखिरी खत', 'हीर रांझा', जैसी बहुचर्चित और यादगार फिल्में बनाने के बाद कई सालों तक वह अलग रहे फिल्मों की जिन्दगी से. आज वह अपना सीरियल 'परमवीर चक्र' छोटे पर्दे पर दर्शकों के लिये ले आए हैं.
चेतन आनंद छोटे पर्दे के जरिए कौनसा नया स्वाद दर्शकों को चखाएंगे?
नये सिनेमा से उन्हें नफरत है. यहाँ वह इंडियन सिनेमा में क्या सही क्या गलत जा रहा है उसके बारे में चर्चा करते हैं हमसे और बताते हैं कि पिछले चालीस सालों में किस तरह दर्शकों का टेस्ट बदल गया है. देखना होगा वह सालों बाद छोटे पर्दे के जरिए कौनसा नया स्वाद दर्शकों को चखाएंगे? चेतन जी हमें ये जानने का कौतुहल है कि फिल्मों में आने से पहले.आपकी लाईफ किस प्रकार की रही होगी?
'फिल्म डायरेक्शन से पहले मैंने जितने भी काम किये उन सबमें एक प्रकार का क्रिएशन रहा. मैं ऑल इंडिया रेडियो और ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कार्पोरेशन में ब्राडकास्टर रहा . दून स्कूल में टीचर रहने के अलावा थियेटर एक्टिविस्ट भी था. लाहौर में मैंने थियेटर का काम किया. मैं इप्टा के साथ भी रहा.
आपने अपने निर्देशन में हमेशा यादगार फिल्में बनाई 'हकीकत' 'हिन्दुस्तान की कसम' जैसी सफल फिल्में आपने बनाई मगर इन दोनों फिल्मों की आत्मा उनकी थीम एक ही जैसी थी और थीम इस चीज के रिपीटिशन की कुछ खास वजह?
ऐसी कोई खास वजह नहीं है. 1962 में ' इंडिया और चायना की जो लड़ाई हुईं थी उसके ऊपर 'हकीकत' और 'हिन्दुस्तान की कसम' 1971 में भारतीय वायुसेना ने जो कामगिरी की थी उसके ऊपंर बनाई थी मैंने मगर उसके पीछे कोई थीम रिपीट करने का इरादा नहीं था और वैसे भी 'हकीकत' के बाद मैंने 'आखरी खत' बनाई थी, जो एकदम अलग थी बोर पिंक्चर से. उसके बाद मैंने 'हीर रांझा' जैसी लव स्टोरी बनाई थी . कनीज फिल्म फेस्टीवल में भेजे जाने वाली मेरी पहली भारतीय फिल्म 'नीचा नगर' लीजिए या वीनस फिल्म फेस्टीवल में सराही जाने वाली 'आँधियाँ' लीजिए सभी एकदूसरे से अलग थी . हाँ वार थीम में मुझे नौजवानों की वीरता जरूर अपनी तरफ आकृष्ट करती है. इसीलिये मैंने सीरियल बनाया है 'परमवीर चक्र' आपका ये सीरियल छोटे पर्दे पर काफी चर्चित हो गया है . जरा उसके बारे में हमें अधिक जानकारी दीजिए.
मेरा सीरियल 'हकीकत' और 'हिन्दुस्तान की कसम' फिल्मों.से अलग है क्योंकि फिल्में इमेजनरी किरदारों, आधारित थीं और इस सीरियल के किरदार असली हैं यानि कि जो युद्ध में अधिकतर शहीद हो गए और जिन्होंने मिल्ट्री में असामान्य कामगिरी करने की वजह से 'परमवीर चक्र' हासिल किया . उनके ऊपर ये पन्द्रह एपिसोड पर्दे पर आ रहा है. हर एपिसोड 39 मिनटों का है. यह सीरियल टोटली नेशनल हीरोज का है . कौनसे फिल्मी कलाकार इसमें नेशनल हीरोज बनने जा रहे हैं -हमने पूछा था.
'इस सीरियल में काम करने वाले कुछ कलाकार हैं , अन्नु कपूर, फारूक शेख, पुनीत इस्सर, पंकजधीर, नसीरूद्दीन शाह और गुरदास मान. तो क्या आपने इसे जरा भी ड्रामेटाईज करने की कोशिश नहीं की? वो तो करनी ही पड़ती है अगर डॉक्युमेन्ट्री बनाई तो दर्शकों को देखने में इंटरेस्ट नहीं रहता. इसलिये मैं यह समझता हूँ कि वास्तविकता के ज्यादा से ज्यादा करीब रहते हुए सिच्युएशन को ड्रामेटाईज करना चाहिये. आप किस तरह इस सीरियल में वास्तविकत से तालमेल बिठाने में कामयाब हुए?
'मैंने इस बात.की तमाम कोरिश की है कि सीरियल वास्तविकता और सच्चाई पर आधारित हो . जैसे कि सीरियल में एक एपिसोड है मेजर सोम नाथ शर्मा पर आप टी.वी. पर देख चुके हैं जो आज के आर्मी चीफ जनरल वी.एन.शर्मा के बड़े भाई थे. 1947 का वाक्या है जब पाकिस्तान ने श्रीनगर एयरपोर्ट पर रेड किया. पाकिस्तानी रेडर्स आठ सौ में और सोम नाथ के साथ सिर्फ 97 लोग थे. तीन तरफ से उन पर हमला हो रहा था. मगर सोम नाथ किसी बहादुर की तरह लड़ते हुए दिन के अन्त में खत्म हुआ था. मगर उसने हवाई अड्डा बचा लिया था. यह पूरा एपिसोड उसी गाँव में शूट किया थां. जहां पर यह सब सालों पहले असलियत में हुआ था. हमें ट्रेंचेस में कुछ बुलेटस मिली थी जो हो सकता है शायद उसी समय की हो जब ये सब सच्चाई में हुआ था. आपके देव और विजय आनंद दोनों भाई फिल्म मेकिंग के साध अभिनय विधा में भी रहे मगर आपने चन्द फिल्मों में काम किया . उनमें से एक है 'काला बाजार'?
'काला बाजार' मैंने गोल्डी के लिये बनाई थी. हाँ . मैंने चन्द रोल किये फिल्मों में जैसे 'अमन' में किया मगर वो सब मैंने किन््ही परिस्थितिवश किया. वर्ना अभिनय हमेशा मेरे लिये जोक रहा. ना ही कभी मैंने उसमें खास इंटरेस्ट लिया .उन्होंने कहा आजकल की मारधाड़ वाली और सैक्सी फिल्मों के बारे में आप क्या कहेंगे?
'मैं तो यही कहूँगा कि आज की फिल्में हमारे समाज का प्रतिबिम्ब हैं. साथ में. दर्शकों का टेस्ट भी बदल गया है उन्हें इसी प्रकार की फिल्मों में रूचि है. हमें अच्छा दर्शकगण दे दो और आज भी हम अच्छी फिल्में बनाएँगे. सैक्स और .वॉयलन्स फिल्मों के लिये दर्शक, समाज और पॉलिटीशीयन्स जिम्मेदार हैं जिन्होंने बातें इस स्तर तक पहुँचने दी
इंटलेक्चुअल सिनेमा के बारे में आपका क्याकहना है?
'टू बी फ्रैंक.मैं कभी इस प्रकार के सिनेमा में विश्वास नहीं करता . आखिर तुम फिल्म चार लोगों के लिये नहीं बनाते, मासेस के लिये बनाते हो.
'इंटलेक्चुअल सिनेमा कोई क्यों देखे? जब तुम लाखों लोगों को अपना क्रिएशन दिखाना चाहते हो तो तुम्हें उनको सन्तुष्ट करना जरूरी है. जो इस प्रकार का सिनेमा कभी नहीं कर सकता.
आपको अपना सीरियल 'परमवीर चक्र' बनाते हुए किस प्रकार से काम करना पड़ा? 'हमें काफी मेहनत करनी पड़ी इस पर क्योंकि नेशनल हीरोज के बारे में डिफेन्स मिनिस्टरी के पास कोई खास जानकारी नहीं थी. करीब साल भर हम लोग ग्रुप बना के इन हीरोेज के फ्रेन्डसूए रिश्तेदार और जानकार लोगों के पास जाते रहे उनके बारे में जानकारी हासिल करने के लिये उनकी यादें ताजा करते रहे और इस तरह जानकारी हासिल करके उनकी रियल लाईफ स्टोरी बनाते रहे उन्होंने कहा.
इस तरह आपके सामने चेतनजी हीरोज के हीरो सच्चे रूप में पेश कर रहे हैं.
चेतन आनंद
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