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रंगमंच के सम्राट, सिनेमा के ध्रुवतारे: Prithviraj Kapoor को पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि!

पृथ्वीराज कपूर वह नाम हैं जिन्होंने न केवल भारतीय सिनेमा में अपने दमदार अभिनय से अमिट छाप छोड़ी, बल्कि कपूर परिवार की नींव रखकर बॉलीवुड के सबसे बड़े फिल्मी वंश की शुरुआत की. उनकी आज, 29 मई 2025 को उनकी 53वीं पुण्यतिथि है...

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Emperor of Theatre, Guiding Star of Cinema A Tribute to Prithviraj Kapoor on His Death Anniversary
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“वो कलाकार, जिनसे शुरू हुई अभिनय की विरासत, जो अब भी जीवित है!”

पृथ्वीराज कपूर वह नाम हैं जिन्होंने न केवल भारतीय सिनेमा में अपने दमदार अभिनय से अमिट छाप छोड़ी, बल्कि कपूर परिवार की नींव रखकर बॉलीवुड के सबसे बड़े फिल्मी वंश की शुरुआत की. 3 नवम्बर 1906 को जन्मे पृथ्वीराज कपूर ने अपने संघर्ष, प्रतिभा और समर्पण से वह राह बनाई जिस पर चलते हुए उनके बेटे राज कपूर, शम्मी कपूर, शशि कपूर, और आगे चलकर रणधीर, ऋषि, करिश्मा, करीना और रणबीर जैसे सितारे इंडस्ट्री में चमके.

kapoor family

पृथ्वीराज कपूर को "मुग़ल-ए-आजम" में शाहजहां की भूमिका के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है. आज, 29 मई 2025 को उनकी 53वीं पुण्यतिथि पर हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, जिन्होंने न सिर्फ अभिनय को अपनी पहचान बनाया, बल्कि कपूर खानदान को सिनेमा की विरासत सौंप दी.

अविभाजित भारत के पेशावर (अब पाकिस्तान) में जन्मे पृथ्वीराज कपूर का अभिनय से जुड़ाव कॉलेज के दिनों में उनके प्रोफेसर जय दलाल की प्रेरणा से हुआ.  उन्होंने 8 साल की उम्र में ही अभिनय की शुरूआत कर दी थी. उस समय भारत में  बोलती फिल्मों की शुरूआत नहीं हुई थी, इसलिए उन्होंने मूक (साइलेंट) फिल्मों का रुख किया और उसमें काम करने के दौरान उन्होंने खुद को खूब निखारा. इसके साथ ही उन्होंने थिएटर की दुनिया में भी कदम रखा और अभिनय की बारीकियां सीखने के बाद 1928 में मायानगरी मुंबई पहुंच गए.

Prithviraj’s love for acting

1931 में, जब भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ बनी, तो पृथ्वीराज कपूर उसके नायक बने और इतिहास रच गया. उनकी गम्भीर आवाज़, विराट व्यक्तित्व और ओजपूर्ण अभिनय ने उन्हें नायकों की भीड़ में सबसे अलग खड़ा कर दिया.

पृथ्वीराज कपूर द्वारा निभाए गए महत्वपूर्ण किरदार –

Awaara (1951)

आवारा (1951)-

इस फिल्म में कपूर परिवार के कई सदस्य शामिल थे. मुख्य भूमिका में राज कपूर थे, जिन्होंने फिल्म का निर्देशन भी किया. उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने फिल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और राज कपूर के छोटे भाई शशि कपूर ने भी फिल्म में एक युवा संस्करण के रूप में अभिनय किया. इसके अलावा, दीवान बशेश्वरनाथ कपूर (पृथ्वीराज कपूर के पिता) ने भी एक कैमियो भूमिका निभाई.

Mughal-e-Azam (1960)

मुगल-ए-आजम (1960)-

इस ऐतिहासिक रोमांस ड्रामा में पृथ्वीराज कपूर ने सम्राट अकबर की भूमिका निभाई थी. जो अब तक की सबसे बड़ी हिंदी ब्लॉकबस्टर में से एक मानी जाने वाली, मुगल-ए-आजम राजकुमार जहांगीर (दिलीप कुमार) और अनारकली (मधुबाला) की प्रेम कहानी है.

Yeh Raat Phir Na Aayegi (1966)

ये रात फिर ना आएगी (1966)-

इस मिस्ट्री फिल्म में, पृथ्वीराज कपूर ने प्रोफेसर की भूमिका निभाई थी. फिल्म में उनके साथ शर्मिला टैगोर, मुमताज, हेलेन और बिस्वजीत चटर्जी थे.

Nanak Naam Jahaz Hai (1969)

नानक नाम जहाज है (1969)-

इस ड्रामा फिल्म में पृथ्वीराज कपूर ने गुरुमुख सिंह की भूमिका निभाई थी. कहानी गुरुमुख सिंह, उनकी पत्नी और छोटे भाई 'प्रेम' के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है. 

Heer Ranjha (1970)

हीर रांझा (1970)-  

पृथ्वीराज कपूर ने इस फिल्म में राजा की भूमिका निभाई थी. फिल्म में उनके अभिनय को देखकर दर्शक हैरान थे. इस फिल्म में उनके साथ राज कुमार और प्रिया राजवंश थे. 

Kal Aaj Aur Kal (1971)

कल आज और कल (1971)-  यह फिल्म विधुर राम कपूर (राज कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती है और कैसे अपने पिता दीवान कपूर और बेटे राजेश कपूर (रणधीर कपूर) के बीच संघर्ष करते नजर आते हैं. इस फिल्म की ख़ास बात यह थी कि फिल्म में कपूर परिवार की तीन पीढ़ियों ने काम किया था.

उनकी यादगार फिल्में हैं- 

His Landmark Films Include

आलम आरा (1931) – पहली बोलती फिल्म के हीरो, सीता (1934), अलेक्जेंडर द ग्रेट, विद्यापति (1937), सिकंदर (1941), आवारा (1951), मुग़ल-ए-आज़म (1960) – अकबर का उनका किरदार आज भी अमर है, प्यार किया तो डरना क्या (1963),कल आज और कल (1971).

पृथ्वी थिएटर: एक युग का निर्माण

Prithvi Theatre: Building a Legacy

1944 में पृथ्वीराज कपूर ने अपने खून-पसीने से ‘पृथ्वी थिएटर’ की स्थापना की, जो देशभर में घूमकर नाटकों का प्रदर्शन करता था. उस दौर में यह थिएटर सामाजिक संदेशों और नए कलाकारों की जन्मभूमि बना. यहाँ से रामानंद सागर, शंकर-जयकिशन और राम गांगुली जैसे दिग्गजों ने अपनी शुरुआत की. कई बार आर्थिक तंगी में पृथ्वीराज खुद थिएटर के बाहर खड़े होकर दर्शकों से चंदा मांगते थे. उनका ऐसा करना यह दर्शाता है कि कला के प्रति = वह कितने समर्पित थे. पृथ्वी थिएटर को खड़ा करने के लिए पृथ्वीराज ने अपना सबकुछ लगा दिया था. लेकिन इससे वह इतना भी पैसा नहीं कमा पाते थे कि वह इसे गुजारा कर सकते.

सम्मान और विरासत

Honours and Legacy

पृथ्वीराज कपूर को 1969 में भारत सरकार ने कला के क्षेत्र में सम्मानित करते हुए पद्म भूषण भेंट किया. वहीँ 1972 में उन्हें (मरणोपरांत) भारतीय सिनेमा के  सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित दिया गया.

पृथ्वीराज कपूर के जीवनकाल को देखे तो उन्होंने  अपनी पूरी ज़िंदगी अभिनय को समर्पित कर दी. उनका जीवन एक मिशन था, जिसमें भारतीय थिएटर और सिनेमा को पहचान दिलाना उनका मुख्य लक्ष्य था. यही जुनून उन्होंने अपने परिवार को भी सौंपा, जो आज ‘कपूर खानदान’ के रूप में फिल्म इंडस्ट्री की धड़कन बना हुआ है.  हिंदी सिनेमा की यह सबसे पुरानी और सबसे बड़ी फिल्मी विरासत मानी जाती है 1928 से लेकर आज तक ऐसा कोई दौर नहीं रहा जब इस परिवार का कोई सदस्य फिल्मों में सक्रिय न रहा हो.  पृथ्वीराज कपूर से शुरू हुई यह परंपरा राज कपूर, शम्मी कपूर, शशि कपूर, और अब रणबीर कपूर, करीना कपूर खान, करिश्मा कपूर  तक अनवरत चल रही है—जैसे अभिनय इनके खून में बसा हो.

Prithviraj Kapoor family

जिस कलाकार ने सिनेमा को आत्मा दी, थिएटर को जीवन दिया, और अभिनय को पहचान दी—ऐसे महान पृथ्वीराज कपूर को उनकी पुण्यतिथि पर हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि.

आपका योगदान अमर है, आपकी विरासत अमिट. आप हर मंच, हर परदे, हर पीढ़ी में जीवित रहेंगे.

Prithviraj Kapoor

Prithviraj Kapoor

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