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Qamar Jalalabadi की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि

गपशप: 1917 में ओम प्रकाश भंडारी के रूप में जन्मे जलालाबादी सिर्फ शब्दों के बुनकर नहीं थे. कमर जलालाबादी की आवाज़ जो सिल्वर स्क्रीन से खुशियाँ और दुख बयाँ करती थी.

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By Asna Zaidi
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Qamar-Jalalabadi
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भारतीय सिनेमा की गीतात्मक सिम्फनी के एक अध्याय का अंत हो गया, जब 9 जनवरी 2003 को प्रिय गीतकार कमर जलालाबादी ने अंतिम सांस ली. 1917 में ओम प्रकाश भंडारी के रूप में जन्मे जलालाबादी सिर्फ़ शब्दों के बुनकर नहीं थे. वे अनगिनत फ़िल्मों की धड़कन थे, वह आवाज़ जो सिल्वर स्क्रीन से खुशियाँ और दुख बयाँ करती थी.

जलालाबादी का सफर जलालाबाद से शुरू हुआ

उनका सफ़र जलालाबाद से शुरू हुआ, जहाँ जीवन की धुन पहली बार उनके युवा दिल में उतरी. साधारण शुरुआत से, वे अनगिनत किरदारों की आवाज़ बन गए, उनके सुख, दुख और हर चीज़ को जीवन दिया. "मेरा नाम चिन चिन चू" की चंचल चुलबुली हरकतों से लेकर "आइए महबूबा, बैठिए जानेजां" की दिल को छू लेने वाली चाहत तक, उनकी कविताएँ मानवीय भावनाओं के स्पेक्ट्रम को पार करती हैं, जो हमेशा के लिए भारतीय सिनेमा के इतिहास में अंकित हो गई हैं.

वे आत्मा के लेखक थे

Qamar Jalalabadi (2)
लेकिन जलालाबादी केवल किराए के शब्दों के रचयिता नहीं थे. उनके गीतों में मानवीय स्थिति की गहरी समझ थी. उन्होंने न केवल कानों के लिए, बल्कि आत्मा के लिए लिखा, जिसमें प्रेम, हानि, आशा और वह सब कुछ शामिल था जो हमें मानव बनाता है. भव्यता से ग्रस्त दुनिया में, उन्होंने सांसारिकता में सुंदरता पाई, आम आदमी के रोजमर्रा के अनुभवों से कविताएँ गढ़ीं.

उनका जादू पीढ़ी दर पीढ़ी कायम रहा

Qamar Jalalabadi Shayari Collection | Poetistic
नौशाद और मदन मोहन जैसे संगीत के उस्तादों के साथ उनका सहयोग पौराणिक बन गया, जिसने जादू को पीढ़ियों तक पहुँचाया. "चलते चलते यूं ही वो मिल गए" और "चौदहवीं का चांद हो" जैसे गाने आज भी लिविंग रूम, रेडियो तरंगों और लाखों लोगों के दिलों में गूंजते रहते हैं, जो उनके काम की कालातीत गुणवत्ता का प्रमाण है. प्यार और लालसा की स्याही में डूबी उनकी कलम ने उन महिलाओं के चित्र बनाए जो बोल्ड और कमजोर, नाजुक और मजबूत थीं. उन्होंने उनकी इच्छाओं का जश्न मनाया, उनके दर्द को स्वीकार किया और उन्हें एक ऐसी आवाज दी जो क्रेडिट रोल होने के बाद भी लंबे समय तक गूंजती रही.

कमर जलालाबादी ने मानवीय भावनाओं की गहराई को समझा

 


क़मर जलालाबादी की विरासत सिर्फ़ उन्हें मिले पुरस्कारों में नहीं है, न ही उन फ़िल्मों में है जिनमें उन्होंने अपनी कविताएँ सजी हैं. यह इस बात में निहित है कि जिस तरह से उनके शब्द दिलों को छूते हैं, यादों को जगाते हैं और पहली बार लिखे जाने के दशकों बाद भी सांत्वना देते हैं. वह याद दिलाते हैं कि सच्ची कला समय और बाधाओं से परे होती है, मानवीय भावनाओं की गहराई में एक सार्वभौमिक भाषा खोजती है.

कमर जलालाबादी की फिल्मोग्राफी

क़मर जलालाबादीः शेर-ओ-सुख़न की ख़ूब सजाऊंगा महफ़िलें

भले ही उनकी आवाज़ की मधुरता खामोश हो गई हो, लेकिन उनके लिखे नोट्स हमारे जीवन को भावनाओं के रंगों से रंगते रहते हैं, एक सिम्फनी जो वे आने वाली पीढ़ियों के लिए छोड़ जाते हैं. कमर जलालाबादी, शांति से विश्राम करें. आपके शब्द हमेशा हमारी प्रेरणा रहेंगे.

Qamar Jalalabadi filmography

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