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लीजेंडरी निर्माता निर्देशक राज खोसला के पर्सनल सचिव श्री वेद प्रकाश श्रीवास्तव जी से मेरी कल बात ही रही थी, राज खोसला जी के इस दुनिया में पदार्पण किए हुए सौ साल होने को लेकर. उन्होने कहा, "कल्पना कीजिए, आप एक ऐसी फिल्म देख रहे हैं जिसमें आपको अंदाजा नहीं है कि आगे क्या होने वाला है. हीरो सिर्फ़ बुरे लोगों से नहीं लड़ रहा है, और नायिका सिर्फ प्यार नहीं कर रही है बल्कि फ़िल्म के हर सीन में एक ट्विस्ट है. गाने इतने खूबसूरत हैं कि पचास साल बाद भी लोग उन्हें गुनगुनाते हैं. यह हैं बॉलीवुड के इतिहास के सबसे प्रतिभाशाली और रचनात्मक निर्देशकों में से एक राज खोसला का जादू."
राज खोसला के इतने खूबसूरत हैं कि पचास साल बाद भी लोग उन्हें गुनगुनाते हैं
वेद प्रकाश जो आज खुद एक पॉप्युलर पत्रिका (मीरा भाएन्दर दर्शन) के मालिक हैं, वे किसी ज़माने में राज खोसला के निजी सेक्रेटरी थे. उन्होने बताया," राज खोसला अपने स्टाफ से बहुत प्यार करते थे, उनके खाने पीने और ट्रैवलिंग का पूरा इंतज़ाम करते थे और उसकी जिम्मेदारी उन्होने मुझे सौंप रखी थी. वे खुले हाथों से खर्च करते थे, कई बार, पार्टी शार्टी में थोड़ा ड्रिंक करने के बाद तो किसी के भी मांगने पर कुछ भी दे देते थे और तब मुझे देखना पड़ता था कि उनके पैसे मिस यूज़ तो नहीं हो रहे. कभी कभी वे मस्ती और मूड में आकर कोई गीत भी गाने लगते थे, ऐसा तब होता था जब उनके रूम में सिर्फ उनके बहुत खास दोस्त होते थे. हालांकि तब मेरी उम्र बहुत कम थी और मैं उनकी निजी महफिलों में बैठने में संकोच करता था लेकिन पर्सनल सेक्रेटरी होने के कारण मुझे हर जगह उनके साथ होने की छूट थी. राज खोसला जी ने एक बार मुझसे कहा था, " सबसे पहले मैं एक गायक हूँ और फिर निर्देशक और फिर निर्माता. अगर गायक बन जाता तो निर्माण निर्देशन में कभी न जाता."
वेद प्रकाश जी के बड़े भाई साहब शिव कुमार सरोज बॉलीवुड के जाने माने गीतकार रहें हैं, ( जिन्होने कई सुपरहिट गीत लिखे जैसे 'प्यार मांगा है तुम्ही से, न इंकार करो, खामोश जिंदगी को आवाज़ दे रहे हो ) वे रेडिओ सिलोन से एक दशक तक जुड़े हुए थे. राज खोसला भी एक म्यूजिक स्टाफ की हैसियत से ऑल इंडिया रेडियो में काम करते थे. शिव कुमार से वहीं उनकी दोस्ती हुई थी, जो बाद में वेद प्रकाश के उनके पर्सनल सेक्रेटरी होने का कारण बना.पाठकों को बता दूँ कि 31 मई 1925 को लुधियाना, पंजाब में जन्में राज खोसला शास्त्रीय संगीत सीख कर मुंबई, बॉलीवुड में गायक ही बनने आए थे और उन्होने 1947 में फ़िल्म 'रैन बसेरा' में अपनी आवाज में एक गीत 'मैं तुम्हें दिल दूँगा' भी गाया था.
वैसे तो सभी यह समझते हैं कि मुंबई आते ही राज खोसला ने लीजेंड निर्माता निर्देशक गुरुदत्त से मुलाकात की और उनके असिस्टेंट बन गए पर बात ऐसी नहीं थी. वेद प्रकाश श्रीवास्तव जी ने मुझे बताया कि राज खोसला फ़िल्म इंडस्ट्री में गायक बनने के लिए ही संघर्ष कर रहे थे, उन दिनों मुंबई कॉफी हाउस फिल्मी लोगों का अड्डा हुआ करता था. वहां राज खोसला कभी कभी कॉफी पीने जाते थे. एक बार वहीं उनकी मुलाकात अभिनेता देव आनंद से हो गई. दोनों ही पंजाब के थे. एक ही टेबल पर उन्हे कॉफी सर्व हुई और दोनों बातें करने लगे. धीरे धीरे दोनों के बीच दोस्ती हो गई. देव आनंद ने राज खोसला में कुछ खास देखा और उन्होने ही राज खोसला को गायन में स्ट्रगल करना छोड़ निर्देशन की राह पकड़ने के लिए कहा था और अपने दोस्त गुरुदत्त से मिलवाया था. राज खोसला गुरुदत्त के असिस्टेंट बन गए. उन्होंने गुरुदत्त की फ़िल्म मेकिंग देखा, सीखा और समझा कि चित्रों, संगीत और भावनाओं के साथ कहानी कैसे कही जाती है. उधर गुरुदत्त को भी कुछ ही समय में यह मालूम पड़ गया कि राज खोसला एक बॉर्न निर्देशक है. उन्होने देव आनंद से ये बात कही तो दोनों ने मिलकर राज खोसला को बतौर डाइरेक्टर पहली बार चांस देना डिसाइड किया और फ़िल्म 'मिलाप' में इंट्रोड्यूस कराया. देव आनंद और गीता बाली ने इस फ़िल्म में काम किया. फ़िल्म फ्लॉप हो गई लेकिन देव आनंद और गुरूदत्त का राज खोसला के ऊपर से विश्वास नहीं टूटा. उन्होने दोबारा उन्हे निर्देशन का मौका दिया फ़िल्म 'सी आई डी' में और इस बार राज खोसला ने बाजी मार ली और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
वेद जी ने बताया कि राज खोसला किसी एक जोनर, या एक ढर्रे की फिल्में बनाते जाना कभी पसंद नहीं करते थे. वे आँखें मूँदकर रिस्क लेते थे. उस जमाने में, (1958) में जब नायिकाओं को भोली भाली, शर्मीली रूप में प्रस्तुत की जाती थी तब उन्होने फ़िल्म 'सोलवे साल' फिल्म बनाई जिसमें नायिका को प्रेमी के साथ घर से मुंह अंधेरे भाग जाते दिखाया और सुबह पिता के जगने से पहले लौटते दिखाया. फ़िल्म 'बम्बई का बाबू' (1960) में हीरो एक घर के बेटे का खून करता है और उसी घर में खोए हुए एक और बेटे का रूप धरकर घुसता है और उसकी बहन से प्यार करने लगता है. राज खोसला ने सभी तरह की फिल्मों में हाथ आजमाया और वो सब सुपर हिट रही, बानगी देखिए :-- सी आई डी, क्राइम थ्रिलर (1958), वो कौन थी, (1964), मेरा साया (1966), अनीता (1967) ये तीनों मिस्ट्री और सस्पेंस थ्रिलर थी, फिर दो बदन (1966) 'दो रास्ते (1969) प्रेम कहानी (1975), नहले पे दहला (1976)' दोस्ताना (1980) यह सब के सब मेलो ड्रामा वाली फिल्में थी. फ़िल्म एक मुसाफिर एक हसीना (1962) उन्होने पूरी तरह से म्यूजिकल फ़िल्म बनाई, जिसमें शुरू से ही ओ पी नय्यर के सात गाने थे. राज खोसला सर ने उस जमाने (1975) में डकैतों पर फ़िल्म 'मेरा गाँव मेरा देश' बनाया जब निर्माता रोमांस और रोने धोने वाली फिल्मों को सेफ बेट मानते थे. राज खोसला की इसी फ़िल्म ने तो कालजयी फ़िल्म' शोले (1975) को प्रेरित किया. राज खोसला ने एक और सामाजिक लीक से हटकर फ़िल्म बनाई थी,' मैं तुलसी तेरे आँगन की (1978, बेस्ट फिल्म अवार्ड विजेता) और उसमें उन्होने शादीशुदा जिंदगी में दूसरी स्त्री को फेवर करते हुए उसके प्रति सिमपैथी रखी. "
वेद जी ने बताया," राज खोसला समय से आगे, सामाजिक कुरीतियों से लड़ने वाले इंसान थे. वे कभी सीधे रास्ते नहीं चले. उनके निजी जीवन में बहुत सारी निजी उलझने थी, ढेर सारे दर्द थे, लेकिन वे कभी शिकायत नहीं करते थे. जब शूटिंग खत्म हो जाती और वे फुर्सत में होते तो दर्द को चुपचाप शराब में घोलकर पी जाते. उनकी एक आदत थी, कि शूटिंग के दौरान सेट पर या जब वे ऑफिस में भी होते तो दोपहर को लंच के बाद वे थोड़ा समय अपने रूम का दरवाजा बंद करके सो जाते थे. वे मुझे बोल देते कि इस दौरान किसी को भी उनसे मिलने के लिए अन्दर ना भेजे. वक्त ने उनके साथ बहुत ना इंसाफी की. जिन्हे उन्होने मदद की, आगे बढ़ाया उन्हीं लोगों ने उन्हे पीछे धकेला. उनकी अंतिम कुछ फिल्में नहीं चली, जिससे वे खिन्न थे. उनका शरीर भी उनका साथ नहीं दे रहा था. वे मात्र 65 की उम्र में ही काफी थक चुके थे. एक दिन मैंने (वेद प्रकाश ने) खोसला जी से कहा कि मुझे कुछ दिनों की छुट्टी चाहिए, पटना (अपना गाँव) जाना है. उन्होने मुझे प्यार से देखते हुए कहा, " मुझे छोड़ के जा रहे हो? जल्दी वापस आ जाना, तुम्हारे वापस आते ही एक नई फ़िल्म घोषित करूंगा." मैंने उन्हे जल्दी वापस आने का आश्वासन दिया. मैं रिटर्न टिकट काट के ही गाँव चला गया. कुछ ही दिनों बाद मैंने गाँव से वापस आने के लिए ट्रेन पकड़ी. आधे रास्ते में, ट्रेन में बैठे- बैठे 9 जून 1991 की सुबह का अखबार खरीदा, पेपर खोला ही था कि फ्रंट पेज पर राज खोसला जी की डेथ की खबर पढी और ना जाने कितने पल मैं ज्ञान शून्य बैठा रहा, कौन सा स्टेशन आया, कौन सा गया, पता नहीं. दादर में उतर कर सीधे उनके घर गया, लेकिन तब तक सब खत्म हो चुका था.
उनकी बेटियां उमा खोसला कपूर, सुनीता खोसला भल्ला , अनीता खोसला पूरी, रीना खोसला कटारिया, सोनिया खोसला विनायक
बहुत ही अच्छी और संस्कारी है. मुझसे आज भी उनका संपर्क हैं. पिता के जीवन और उपलब्धियों पर वे एक किताब पब्लिश कर रही है. उनकी बेटी सुनीता खोसला भल्ला ने 'द राज खोसला फाउंडेशन' का भी निर्माण किया था."
राज खोसला नई शैली "नौयर" या "डार्क " सिनेमा जॉनर की फिल्मों में रुचि रखते थे जिसमें डार्क, रहस्यमय, और कॉम्प्लिकेटेड कहानियों को दिखाया जाता है, जैसे कि अपराध, भ्रष्टाचार और मनोवैज्ञानिक तनाव. यह पुराने नौयर सिनेमा की शैली को आधुनिक अंदाज में फिर से प्रस्तुत करता है, जिसमें नई तकनीक और नई सोच का इस्तेमाल किया जाता है.
राज खोसला को लेडीज़ फिल्म स्पेशलिस्ट माना जाता था. उन्होने जब भी कोई फ़िल्म बनाई उसमें नायिका को प्रमुखता दी और उन्हे बेहद खूबसूरत दिखाया. सी आई डी में वहीदा रहमान, वो कौन थी, मेरा साया में साधना (राज खोसला की फिल्मों की वजह से साधना का नाम मिस्ट्री गर्ल, उनके मरते दम तक रहा). उन्होने फ़िल्म 'दो बदन' में आशा पारेख और सिमी ग्रेवाल को बेहद प्रोमिनेंटली प्रस्तुत किया और आशा को एक गंभीर अभिनेत्री की छवि दी. राज ने फ़िल्म 'दो रास्ते' में मुमताज को, मैं तुलसी तेरे आँगन की ' में आशा पारेख तथा नूतन को बेहद खूबसूरत पेश किया.
क्योंकि राज खोसला खुद एक संगीतज्ञ, गायक, गीतकार और संगीतकार के गुण रखते थे इसलिए उन्होने अपने प्रत्येक फ़िल्म में ऐसे गाने पिरोए और ऐसे संगीतकारों को लिया कि सारे गाने अमर हो गए, मिसाल के तौर पर, "नैना बरसे रिमझिम रिमझिम, लग जा गले, जो हमने दास्तां अपनी सुनाई, नैनों में बदरा छाए, झुमका गिरा रे, नैनो वाली ने हाय मेरा दिल लूटा, तू जहाँ जहाँ चलेगा, आपके पहलू मे आकर रो दिए, नसीब में जिसके जो लिखा था, मत जइयो नौकारिया छोड़ के, भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहाँ जाय, लो आ गई उनकी याद वो नहीं आए, जब चली ठंडी हवा जब उड़ी काली घटा, मुझको ऐ जाने वफा तुम याद आए, रहा गर्दिशों मे हरदम, कैसे करूँ मै प्रेम की , तुम बिन जीवन कैसे बिता पूछो मेरे दिल से. मै देखूँ जिस ओर सखी री, सामने मेरे सावरिया, तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है, आँखों ही आँखों में इशारा हो गया, लेके पहला पहला प्यार, बूझ मेरा क्या नाम रे, अच्छा जी मै हारी, देखने में भोला है दिल का सलोना, चल री सजनी अब क्या सोचे, बहुत शुक्रिया, आप यूँ ही अगर हमसे मिलते रहे मै प्यार का राही हूँ, कुछ कहता है ये सावन, बिंदिया चमकेगी, ये रेशमी जुलफे, छुप गए सारे नज़ारे, मैं तुलसी तेरे आंगन की जैसे गीत अमर नहीं तो क्या है.
उनकी कुछ अन्य फिल्में है, काला पानी, चिराग, शरीफ बदमाश, कच्चे धागे , दो प्रेमी, दासी, तेरी मांग सितारों से भर दूँ, माटी मांगे खून, सनी, नकाब, दो चोर (निर्माता के रूप में). राज खोसला जैसे महान निर्देशक अपने पीछे अविस्मरणीय फ़िल्मों का खजाना छोड़ गए. उन्हे याद करते हुए, भारत में कई जगह, कई हॉल्स और सिनेमा घरों में उनकी फिल्मों का उत्सव मनाया जा रहा है.
Tags : Raj Khosla Birthday | Raj Khosla Birthday Special
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