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शंकर-जयकिशन के फेमस स्थित म्यूजिक हाल में संगीतकार शंकर से भेंट हुई।
मैंने उनसे पूछा, "आपने अपने 27 वर्षीय फिल्मी जीवन में अपने हिसाब से किन फिल्मों में हिट संगीत दिया है?"
हमने आज तक जिस फिल्म में संगीत दिया वह 'हिट' हुआ है। क्योंकि हमारा संगीत वक्त के साथ-साथ चलता था। इसलिए किसी एक फिल्म का जिक्र क्या करें। सारी ही फिल्में संगीत के लिहाज से हिट जा रही हैं। इसके बावजूद आज मैं यह कहने पर मजबूर हूं।
सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी।
सच है दुनिया वालों कि हम हैं अनाड़ी।।
शंकर जी ने मेरे प्रश्न के उत्तर में कहा।
"धुन बनाने में आपका क्या तरीका होता था? मतलब आप धुन पहले बनाते हैं या गीत लिखवा कर धुन बनाते हैं?" मैंने पूछा
हम अपने हिसाब से सिच्युएशन बनाकर रखते थे और उसी के आधार पर 'डमी' उन्हीं शब्दों के साथ निर्देशक को सुना कर स्वीकृत करवाया करते थे। 'डमी' शब्द भी इतने जानदार होते थे कि सुनने वाला हिल नहीं सकता थां और कभी-कभार तो ओरिजनल बोल भी ऐसे होते थे कि सुनने वाला तड़प जाता था। शंकर जी ने बताया।
"क्या कभी ऐसा भी हुआ है कि ऐन मौके पर आपको सिच्युएशन देकर गीत तैयार करने पड़े हों?" मैंने पूछा।
ऐसा कभी नहीं हुआ। हम लोग प्रायः साथ बैठ कर नई-नई धुनें सोचा करते थे। और जब भी कोई धुन तैयार हो जाती थी, गीत तैयार करके रख लेते थें 'श्री 420' का हिट गीत 'मेरा जूता है जापानी, यह पतलून इंगलिस्तानी, सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी' ऐसा ही गीत है। बैठे-बैठे दिमाग में धुन आई और शैलेन्द्र ने गीत लिख दियां राज साहब को सुनाया और सुनते ही ओ.के. कर दिया।
ऐसे ही एक रात हम लोग राज साहब के साथ बैठे थे। राज साहब ने सिच्युएशन बनाई कि एक तरफ डाकू हैं। पद्मिनी है और राजू है। दोनों आमने सामने हैं। शैलेन्द्र ने तुरंत कहा-
हम भी हैं, तुम भी हो, दोनों हैं आमने-सामने।
देख लो क्या असर कर दिया प्यार के नाम ने ।।
और वह गीत भी बड़ा हिट सिद्ध हुआ। शंकर जी ने बताया।
"कभी ऐसा भी हुआ कि गीत बनाते समय आपको अपनी धुन पसन्द रही हो और राज साहब को पसन्द न आई हो और फिर वहीं गीत हिट हो गया हो?" मैंने पूछा।
"राज साहब से ही नहीं कभी-कभार हम दोनों में भी मतभेद हो जाता था। 'श्री 420' में पानी में भीगने के समय का एक गीत था। शैलेन्द्र ने उसके लिए गीत लिखा-
रातों दसों दिशाओं से।
फिर भी कहेंगे कहानियां।।
हम न रहेंगे तुम न रहोगे।
फिर भी रहेंगी निशानियां।।
उस समय राज साहब और नर्गिस बैठे हुए थे। गीत सुनकर सबने पसन्द किया। किन्तु दसों दिशाओं की तुक मुझे पसन्द नहीं आई। मैंने बोल को कन्डम कर दिया। मुझे इस मूड में देखकर राज साहब और नर्गिस कुछ नहीं बोले जिससे मुझे लगा कि उन्हें गीत पसन्द है। राज साहब ने कहा सुनने में अच्छा लगता है। लेकिन उस वक्त मुझे वह ज़रा अच्छा नहीं लगा। अगले दिन जब फिर उस गीत पर बैठे तो मुझे भी वह अच्छा लगा और इस तरह वह गीत भी अमर हो गया। इसी प्रकार 'बूट पालिश' के गीत पर भी आपसी मतभेद हो गया थां 'बूट पालिश' में पहले तो कोई गीत ही नहीं रखा गया था। लेकिन जब फिल्म देखी तो लगा कि बिना वजह डिब्बे भर दिये गए हैं। आखिर राज साहब ने हमें बुलाया और साथ बैठकर फिल्म दिखाई जिस में ट्रेन ही ट्रेन दौड़ रही थी और बच्चा भाग रहा था। राज साहब ने कहा इसमें गानों की सिच्युएशन निकालिए। हमने कहा अगर आप डायरेक्ट करेंगे तो हम संगीत देंगे वरना नहीं। राज साहब ने जब अपनी सहमति दे दी तो हमने सिच्युएशन निकाली कि एक बुड्डे को बच्चे बड़ा प्यार करते हैं। उसे भी बच्चों से बड़ा प्यार है। उसी सिच्युएशन पर यह गीत लिखा गया था-
नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है?
मुट्ठी में है तकदीर हमारी
हमने किस्मत को बस में किया है।
गीत सुनकर जयकिशन ने कहा, इसमें वजन ही नहीं है। इसकी धुन नहीं बन सकती। राज साहब ने कहा ज़रा सोचो! और फिर हम सिर जोड़कर राज साहब के साथ बैठ गए। और जब यह गीत-
जान चाचा तुम कितने अच्छे।
तुम्हें प्यार करते सब बच्चे।
तैयार हुआ तो उसने हंगामा मचा दिया। ऐसे एक बार 'आह' के एक गीत पर राज साहब से मतभेद हो गया था। 'आह' के लिए हम गीत बना रहे थे। राज साहब के अलावा स्व. अमिया चक्रवर्ती भी मौजूद थे। हमने उन्हें गीत बनाकर सुनाया-
राजा की आएगी बारात
रंगीली होगी रात
मगन मैं नाचूंगी,
गीत अमिया चक्रवर्ती को तो अच्छा लगा किन्तु राज साहब को पसन्द नहीं आया। नापसन्द करने वालों में राज साहब थे। उन्होंने वातावरण का रुख देखकर पुनः सुनाने के लिए कहा। हमने कहा जाने दीजिए आपको पसन्द नहीं आ रहा है तो हम आपके लिए दूसरी धुन बनायेंगे। लेकिन राज साहब संगीत में बड़े निपुण हैं। उन्होंने पुनः गाना सुना और बहुत पसन्द किया। बाद में शैलेन्द्र का लिखा और लता का गाया यह गीत सर्वश्रेष्ठ गीत रहा। शंकर जी ने बताया। अभी मैं और कुछ पूछता कि मजरुह साहब आ गए। और वह दोनों गीत की तैयारी में लग गए.
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