/mayapuri/media/media_files/Y5AKqdTwWP1nAPGTJDeP.png)
-रवि
सदाशिव अमरापुरकर का परिचय अब किसी का मोहताज नहीं है. किसी भी कलाकार को अपनी पहचान बनाने के लिए एक 'हिट' फिल्म की जरूरत होती है. उस फिल्म को देखने के बाद दर्शक उस चरित्र के नाम को याद रख सकें. जी हां फिल्म 'सड़क' की महारानी. इस नाम ने सदाशिव अमरापुरकर को वो मुकाम दिलाया जो मुकाम उन्हें कई फिल्मों में काम करके हासिल नहीं हुआ. फिल्म 'सड़क' में महारानी के रोल के लिए क्या उन्होंने हिजड़ों के पास जाकर बाकायदा उनसे टेंªनिंग ली? जब ये सवाल मैंने उनसे किया तो उन्होंने कहा.'
'जी नहीं, मुझे हिजड़ों के पास जाकर, उनसे टेªनिंग लेने की कोई जरूरत महसूस नहीं हुई. क्योंकि मैंने हिजड़ों की जिन्दगी पर पहले एक 'प्ले' किया था. उस 'प्ले' में वो सारी बातें थी जो फिल्म 'सड़क' में महारानी के किरदार में थी. दूसरी बात ये थी कि मैंने बचपन में अपने गांव में एक हिजड़े को काफी नजदीक से समझा. इसके ढंग, बात करने का अंदाज, चलने का अंदाज, शादी या बच्चा होने पर पैसे मांगने का अंदाज ये सब कुछ मुझे याद था. यही सब बातें फिल्म 'सड़क' में मेरे काम आई. इस किरदार से मुझे वो नाम मिला कि आज बच्चे, जवान और बूढ़े मुझे महारानी के नाम से जानते हैं.'
'आज आप फिल्म 'सड़क' के बाद इतने व्यस्त कलाकार हो गए हैं उसके बावजूद आप 'थियेटर' के लिए वक्त कैसे निकाल लेते हैं?'
'हर इंसान अपने सुख और आराम के लिए वक्त निकालता ही है. इसी तरह मैं अपने सुख के लिए 'थियेटर' में काम करने का वक्त निकालता हूं. और वह सुख मुझे फिल्म कभी भी नहीं दे सकती. इसी सुख के लिए मैं 'थियेटर' में मुक्त में भी काम करता रहूंगा, चाहे फिल्में मेरे सामने कितना भी पैसा फैंके. दूसरी मुख्य बात यह है कि 'थियेटर' सिर्फ मनोरंजन का ही साधन नहीं समझा जाना चाहिए. इसकी काफी पहुंच है और इसका समाज सुधार के लिए भी उपयोग किया जा सकता है. जैसे निर्देशक या एक्टर बतौर हम ऐसे नाटक चुन सकते हैं जो समाज के लिए कुछ संदेश देते हैं. मैं आजकल जिस नाटक को कर रहा हूं वह 'हेलन केलर' की जीवनी पर आधारित है. यह नाटक बच्चों के सुधार के बारे में है. यदि कोई भी व्यक्ति ऐसा नाटक देखकर उससे कुछ सीखे और व्यवहार में लाए तो मैं अपने काम को सफल मानूंगा. और यही वजह है कि मैं 'थियेटर' के जरिए लोगों तक संदेश देना चाहता हूं.'
'आप फिल्मों के जरिए भी तो लाखों लोगों तक संदेश पहुंचा सकते हैं. फिर आप ऐसी फिल्में क्यों नहीं करते?'
'देखिए 'नाटक' एक छोटी सी रकम से हो जाता है जबकि फिल्म बनाने के लिए लाखों रूपए चाहिए होते हैं. दूसरी बात ये है कि हम कलाकार लोग सैट पर निर्माता के नौकर होते हैं. अगर मैं उस फिल्म में काम करने को मना करूंगा तो निर्माता मेरी जगह किसी और को ले लेगा. दूसरी बात ये भी है कि आज निर्माता ऐसी फिल्म बनाने से डरता है, क्योंकि आज दर्शकों को एक्शन, सेक्सी गीत, वगैरह पसंद है. इसलिए निर्माता ऐसी फिल्म बनाना चाहता है जो बिक सके न कि उसे घर में बैठकर खुद को फिल्म देखनी पड़े. जिस दिन कोई निर्माता ऐसा आॅफर लेकर आया जिससे समाज में सुधार हो सके, उस फिल्म में मैं 'फ्री' में काम करूंगा.'
'शूटिंग और 'थियेटर' से वक्त मिलने के बाद आप अपना कीमती वक्त कैसे गुजारते हैं?'
'मेरे ऐसे कई मित्र हैं जो किसी समाज सुधार के काम से कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं और उस दिशा में वो प्रयास भी कर रहे हैं मैं उन्हीं के बीच उनकी मदद करते हुए अपना वक्त गुजारता हूं. उस वक्त मेरी आत्मा को ऐसा सकून मिलता है कि मैं बता नहीं सकता.'
'अगर आपको एक दिन के लिए प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो आप क्या करेंगे?'
'जो बात हो ही नहीं सकती उसके बारे में कहना ही क्या?'
'कल्पना के आधार पर मान लिया जाए कि आपको एक दिन के लिए प्रधानमंत्री बनाया गया है तो आप समाज में क्या सुधार लाएगें?'
'सबसे पहले मैं गांव में बिजली, स्कूल, दवाखाना और आने जाने के लिए सरकारी बसों को इंतजाम करूंगा. उसके बाद मैं गांव में जाकर लोगों को समझाऊंगा कि इंसान की गरीबी दूर करने का साधन है 'ऐजुकेशन'. ऐजुकेशन प्राप्त करने के बाद इंसान अपने हक के लिए लड़ सकता है. अच्छी से अच्छी नौकरी हासिल कर सकता है और सबसे अहम् बात ये है कि इंसान का सब कुछ छीना जा सकता है, उसकी तालीम नहीं. शायद उस एक दिन में मैं अपने उन देशवासियों को समझा सकूं जो अनपढ़ है कि पढ़ना कितना जरूरी है.'
'आप इतना अच्छा सोचते हैं तो जरूरी है कि आप अच्छा साहित्य पढ़ते होंगे? क्या आप उन साहित्य के बारे में बताना चाहेंगे?'
'मैं ऐसी पुस्तके पढ़ता हूं जिनका रूझान साहित्यिक है जिनकी भाषा उच्चकोटि की है. मैं अक्सर साहित्य अकादमी से प्रकाशित पुस्तकें पढ़ता हूं.'
ReadMore: